GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 1 धन्धे का स्वरूप, उद्देश्य और कार्यक्षेत्र

Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 1 धन्धे का स्वरूप, उद्देश्य और कार्यक्षेत्र Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 1 धन्धे का स्वरूप, उद्देश्य और कार्यक्षेत्र

GSEB Class 11 Organization of Commerce and Management धन्धे का स्वरूप, उद्देश्य और कार्यक्षेत्र Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प पसन्द करके लिखिए ।

प्रश्न 1.
आर्थिक प्रवृत्ति का उद्देश्य कौन-सा होता है ?
(A) सेवा
(B) वित्तीय प्रतिफल
(C) प्रेम
(D) संवेदना
उत्तर :
(B) वित्तीय प्रतिफल

प्रश्न 2.
आर्थिक प्रवृत्ति के कितने प्रकार है ? .
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर :
(B) तीन

प्रश्न 3.
धन्धे (Business) का अस्तित्व चालू रखने के लिए क्या अनिवार्य है ?
(A) अनार्थिक प्रवृत्ति
(B) देशसेवा
(C) लाभ
(D) पुनः निर्यात
उत्तर :
(C) लाभ

प्रश्न 4.
धन्धे की कार्यक्षमता का मापदण्ड कौन-सा है ?
(A) लाभ
(B) संचालन
(C) उत्पादन
(D) विक्रय
उत्तर :
(A) लाभ

प्रश्न 5.
कच्चे माल में से तैयार माल का उत्पादन हो अर्थात् कौन-से तुष्टिगुण का सर्जन होता है ?
(A) स्थान
(B) समय
(C) आर्थिक
(D) स्वरूप
उत्तर :
(D) स्वरूप

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प्रश्न 6.
धन्धे में महत्तम सम्पत्ति के सर्जन का उद्देश्य कौन-से आर्थिक लाभ के साथ सम्बन्धित है ?
(A) संचालक
(B) कर्मचारी
(C) मालिक
(D) ग्राहक
उत्तर :
(C) मालिक

प्रश्न 7.
नौकरी/रोजगार के बदले में क्या मिलता है ?
(A) वेतन
(B) फीस
(C) लाभ
(D) पूँजी
उत्तर :
(A) वेतन

प्रश्न 8.
प्राकृतिक सम्पत्ति में तुष्टिगुण शामिल करके उत्पादन करना अर्थात् क्या ?
(A) व्यापार
(B) सहायक सेवाएँ
(C) वाणिज्य
(D) उद्योग
उत्तर :
(D) उद्योग

प्रश्न 9.
कृषि, पशुपालन, मत्स्य आदि कौन-से उद्योग के प्रकार है ?
(A) प्राथमिक उद्योग
(B) गौण उद्योग
(C) तृतियक उद्योग
(D) पूँजी प्रधान
उत्तर :
(A) प्राथमिक उद्योग

प्रश्न 10.
सरकारी कर्मचारी को उनके श्रम के बदले में वेतन मिलता है तो यह कौन-से प्रकार की आर्थिक प्रवृत्ति कहलाती है ?
(A) धन्धा
(B) पेशा
(C) नौकरी/रोजगार
(D) वाणिज्य
उत्तर :
(C) नौकरी/रोजगार

प्रश्न 11.
इनमें से उद्योग के साथ सम्बन्धित है ।
(A) व्यापार
(B) नौकरी
(C) उत्पादन प्रक्रिया
(D) विनिमय
उत्तर :
(C) उत्पादन प्रक्रिया

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प्रश्न 12.
वित्तीय प्रतिफल की अपेक्षा से की जानेवाली प्रवृत्ति अर्थात् ……………………
(A) मौद्रिक प्रवृत्ति
(B) राजनैतिक प्रवृत्ति
(C) आर्थिक प्रवृत्ति
(D) अनार्थिक प्रवृत्ति
उत्तर :
(C) आर्थिक प्रवृत्ति

प्रश्न 13.
आर्थिक प्रवृत्ति के विभिन्न प्रकारों में से कौन-सी प्रवृत्ति का समावेश नहीं होता है ?
(A) धार्मिक प्रवृत्ति
(B) धन्धा
(C) पेशेवर धन्धार्थी
(D) नौकरी
उत्तर :
(A) धार्मिक प्रवृत्ति

प्रश्न 14.
इनमें से कौन-सी प्रवृत्ति आर्थिक प्रवृत्ति नहीं कहलाती ?
(A) वकील की प्रवृत्ति
(B) क्लब की प्रवृत्ति
(C) चिकित्सक की प्रवृत्ति
(D) व्यापार की प्रवृत्ति
उत्तर :
(B) क्लब की प्रवृत्ति

प्रश्न 15.
किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करके संगठन का सदस्य पद प्राप्त करके इस ज्ञान का लाभ लेनेवालों के पास से फीस वसूल करके करार अनुसार की सेवा प्रदान करना अर्थात् ………………………..
(A) पेशा
(B) वाणिज्य
(C) धन्धा
(D) नौकरी
उत्तर :
(A) पेशा

प्रश्न 16.
समाज के विभिन्न समूहों के पृथक पृथक हितों के प्रति इकाई का दायित्व अर्थात् …
(A) कानूनी दायित्व
(B) सामाजिक दायित्व
(C) नैतिक दायित्व
(D) अनार्थिक दायित्व
उत्तर :
(B) सामाजिक दायित्व

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प्रश्न 17.
वर्तमान समय में लाभ कमाने का कौन-सा उद्देश्य स्वीकार हुआ है ?
(A) कम
(B) अधिक
(B) अधिक
(C) स्थिर
(D) उचित
उत्तर :
(D) उचित

प्रश्न 18.
धन्धा (Business) का मुख्य उद्देश्य कौन-सा है ?
(A) लाभ का
(B) सामाजिक दायित्व
(C) प्रतिष्ठा का
(D) सेवा का
उत्तर :
(A) लाभ का

प्रश्न 19.
कच्चे माल पर योग्य प्रक्रिया करके मानवीय आवश्यकता के अनुसार चीजवस्तुओं का निर्माण करना अर्थात् ………………………….
(A) व्यापार
(B) थोकबंद व्यापार
(C) नौकरी
(D) उद्योग
उत्तर :
(D) उद्योग

प्रश्न 20.
चीजवस्तुओं का क्रय-विक्रय के अलावा चीजवस्तु के क्रयविक्रय में मददरूप हो ऐसी सेवाएँ अर्थात् ……………………………….
(A) धन्धा
(B) उद्योग
(C) वाणिज्य
(D) नकद व्यापार
उत्तर :
(C) वाणिज्य

प्रश्न 21.
लाभ कमाने के उद्देश्य से चीजवस्तुओं का क्रयविक्रय करने की प्रक्रिया अर्थात् ……………………………… ।
(A) धन्धा
(B) उद्योग
(C) वाणिज्य
(D) व्यापार
उत्तर :
(D) व्यापार

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प्रश्न 22.
प्रकृति के बहुत ही नजदिक रहकर उत्पादन प्रवृत्ति करें वह उद्योग क्या कहलाता है ?
(A) प्राथमिक उद्योग
(B) गौण उद्योग
(C) तृतियक उद्योग
(D) पूँजीप्रधान उद्योग
उत्तर :
(A) प्राथमिक उद्योग

प्रश्न 23.
वाणिज्य अर्थात् ……………………………….
(A) उद्योग और सेवा
(B) व्यापार और सहायक सेवाएँ
(C) थोकबंद व्यापार
(D) आन्तरिक व्यापार और विदेश व्यापार
उत्तर :
(B) व्यापार और सहायक सेवाएँ

प्रश्न 24.
स्टील उद्योग व रंग व रसायन उद्योग इनमें से कौन-सा उद्योग कहलाता है ?
(A) प्राथमिक उद्योग
(B) तृतियक उद्योग
(C) गौण उद्योग
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(C) गौण उद्योग

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए ।

प्रश्न 1.
आर्थिक प्रवृत्ति से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
आर्थिक प्रवृत्ति (Economic Activity) अर्थात् लाभ या वित्तीय प्रतिफल प्राप्त करने के उद्देश्य से की जानेवाली प्रवृत्ति ।

प्रश्न 2.
माल के उत्पादन के स्थल से ग्राहकों तक ले जाया जाए तो कौन-से तुष्टिगुण का सर्जन होता है ?
उत्तर :
स्थल/स्थान तुष्टीगुण का सर्जन होता है ।

प्रश्न 3.
पेशा (Profession)/पेशेवर धन्धार्थी का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
पेशा अर्थात् किसी क्षेत्र में विशिष्ट गुण, डिग्री, ज्ञान के द्वारा सेवा देकर फीस प्राप्त करना । जैसे डॉक्टर (चिकित्सक), वकील, सोलिसीटर, चार्टर्ड एकाउन्टन्ट आदि पेशेवर व्यक्ति कहलाते है ।

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प्रश्न 4.
नौकरी का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
नौकरी अर्थात् निश्चित आय प्राप्त करने के लिए दूसरों के द्वारा सौंपा गया कार्य । जैसे बैंक में कार्य करता हुआ लिपिक, शिक्षण कार्य करता हआ शिक्षक तथा सरकारी कर्मचारी ।

प्रश्न 5.
पेशेवर व्यक्तियों को क्या प्राप्त करना पड़ता है ?
उत्तर :
पेशेवर व्यक्तियों को पेशे के लिए विशिष्ट ज्ञान चातुर्य और पेशे हेतु आवश्यक शिक्षण प्राप्त करना पड़ता है ।

प्रश्न 6.
नौकरी/रोजगार के दो उदाहरण बताइए ।
उत्तर :

  1. बैंक में कार्यरत प्रबन्धक ।
  2. सार्वजनिक साहस की इकाई में कार्यरत अधिकारी ।

प्रश्न 7.
व्यापार (Trade) किसे कहते हैं ?
उत्तर :
व्यापार अर्थात् लाभ के उद्देश्य से दो व्यक्तियों के मध्यं वस्तु या सेवा के बदले में वस्तु या सेवा का अथवा मुद्रा के बदले में वस्तु या सेवा का विनिमय ।

प्रश्न 8.
प्राथमिक उद्योग किसके साथ संकलित होता है ?
उत्तर :
प्राथमिक उद्योग समुद्र, जमीन, हवा के साथ संकलित है ।

प्रश्न 9.
प्राथमिक उद्योग और गौण उद्योग को कौन-से मददरूप बनते है ?
उत्तर :
प्राथमिक उद्योग और गौण उद्योग को डेरी उद्योग, पेयजल उद्योग, बेकरी उद्योग मददरुप बनते है ।

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प्रश्न 10.
प्राथमिक उद्योग के दो उदाहरण बताइये ।
उत्तर :
जमीन पर कृषि, पशुपालन, मुर्गीपालन व बतखपालन

प्रश्न 11.
धन्धे (Business) में नुकसान कब होता है ?
उत्तर :
क्रय मूल्य अथवा लागत मूल्य से कम मूल्य पर वस्तु का विक्रय करने से धन्धे में नुकसान अथवा हानि होती है ।

प्रश्न 12.
धन्धे में होनेवाली मानवसर्जित जोखिम बताइए ।
उत्तर :
कर्मचारियों में हड़ताल, टेक्नोलॉजी में परिवर्तन, ग्राहकों की रूचि व माँग में परिवर्तन, राजकीय अस्थिरता, बाजार में प्रतिस्पर्धा इत्यादि जोखिमें होती है ।

प्रश्न 13.
धन्धे में होनेवाली प्राकृतिक जोखिमें बताइए ।
उत्तर :
भूकंप, बाढ़, आँधी-तूफान, अकाल इत्यादि प्राकृतिक जोखिमें होती है ।

प्रश्न 14.
तुष्टिगुण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
तुष्टिगुण अर्थात् चीजवस्तु या सेवा द्वारा उपयोगकर्ता को जो मानसिक संतोष प्राप्त हो ।

प्रश्न 15.
धन्धाकीय इकाइयाँ समाज के कौन-कौन-से वर्गों अथवा समूहों के साथ विभिन्न व्यवहार करती है ?
उत्तर :
धन्धाकीय इकाइयाँ समाज के मालिकों, ग्राहकों, कर्मचारियों, सरकार, लेनदार जैसे विभिन्न वर्गों के साथ विभिन्न व्यवहार करती है ।

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प्रश्न 16.
आर्थिक प्रवृत्तियों में से किसमें वित्तीय प्रतिफल निश्चित होता है ?
उत्तर :
नौकरी में वित्तीय प्रतिफल निश्चित होता है ।

प्रश्न 17.
व्यापार संज्ञा समझाइए ।
उत्तर :
लाभ के उद्देश्य से माल और सेवाओं का लेनदेन होता हो उसे व्यापार कहते हैं ।

प्रश्न 18.
आयात व्यापार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
दूसरे देश से माल मंगाना अथवा क्रय करना अर्थात् आयात व्यापार कहते हैं ।

प्रश्न 19.
निकास/निर्यात व्यापार का अर्थ बताइए ।
उत्तर :
देश की सीमाओं के बाहर माल विक्रय किया जाये तो निर्यात व्यापार कहते हैं ।

प्रश्न 20.
विदेश व्यापार अर्थात् क्या ?
उत्तर :
देश की सीमाओं के बाहर से माल क्रय किया जाये अथवा बेचा जाये तो उन्हें विदेश व्यापार कहते हैं ।

प्रश्न 21.
पुन: निर्यात व्यापार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
किसी एक देश में से माल आयात करके सीधा ही दूसरे देश में माल बेचा जाये तो उन्हें पुनः निर्यात व्यापार कहते हैं ।

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प्रश्न 22.
व्यापार की सहायक सेवाओं के नाम बताइए ।
उत्तर :
बैंक, बीमा, परिवहन सेवाएँ, गोदाम, आढ़तिया एवं संदेशाव्यवहार आदि सभी व्यापार की सहायक सेवाएँ कहलाती है ।

प्रश्न 23.
व्यापार की सहायक सेवाओं का मुख्य कार्य क्या है ?
उत्तर :
व्यापार में आनेवाली कठिनाइयों को दूर करके व्यापार को सरल बनाने का कार्य करती है ।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए ।

प्रश्न 1.
धन्धे (Business) को आर्थिक प्रवृत्ति किस तरह कहा जा सकता है ?
उत्तर :
धन्धे को आर्थिक प्रवृत्ति इसलिए कहा जा सकता है कि धन्धा यह आर्थिक प्रवृत्ति का भाग कहलाता है । आर्थिक प्रवृत्ति में आय कमाई जाती है, धन्धे में आय के रूप में लाभ कमाया जाता है, जो कि अनिश्चित होता है, धन्धे में कई बार हानि भी हो सकती है, फिर भी वह आर्थिक प्रवृत्ति ही कहलाती है । धन्धे का ख्याल लाभ के साथ संलग्न है । इस सन्दर्भ में एक परिभाषा निम्नानुसार है । – “धन्धा अर्थात् लाभ के उद्देश्य से की जानेवाली कोई भी विधिवत् की जानेवाली आर्थिक प्रवृत्ति ।”

प्रश्न 2.
नौकरी (रोजगार) के कोई भी दो लक्षण समझाइये ।
उत्तर :
नौकरी अर्थात् बौद्धिक या शारीरिक श्रम के द्वारा आय प्राप्त करने के उद्देश्य से की जानेवाली प्रवृत्ति । नौकरी में पारिश्रमिक निश्चित रहता है । जो प्रतिदिन भुगतान किया जाता है लेकिन प्रायः मासिक दर से पारिश्रमिक दिया जाता है, जिसे हम वेतन कहते हैं । नौकरी में काम का समय निश्चित रहता है । जैसे सरकारी विभाग में काम करनेवाला क्लर्क ।

लक्षण : नौकरी के लक्षण निम्नलिखित होते हैं ।

  1. नौकरी में मुआवजा (वेतन) निश्चित होता है, जो कि निश्चित अवधि के अन्त में दिया जाता है ।
  2. नौकरी में काम का समय, नियुक्ति, योग्यता एवं निवृत्ति का समय निश्चित होता है ।
  3. नौकरी के करार के अनुसार नौकरी देनेवाला तथा नौकरी करनेवाला (कर्मचारी) दोनों ही नीति-नियमों के पाबन्द होते हैं ।
  4. नौकरी स्वतंत्र आर्थिक प्रवृत्ति नहीं है । परावलम्बी या दूसरे पर आश्रित प्रवृत्ति है ।
  5. नौकरी में काम के बदले में वेतन मिलता है ।
  6. नौकरी की प्रवृत्ति निरन्तर की जानेवाली प्रवृत्ति है ।
  7. नौकरी प्राप्त करनेवाले को कोई पूँजी निवेश नहीं करना पड़ता है ।
  8. नौकरी में निश्चित वेतन के अलावा अन्य लाभ भी मिलते है । जैसे चिकित्सा भत्था, पेन्शन आदि ।

प्रश्न 3.
धन्धे (Business) के सामाजिक दायित्व का उद्देश्य से आप क्या समझते है ?
उत्तर :
ग्राहकों में उत्पन्न जागृति, राज्य के नियंत्रण, ग्राहक शिक्षण, ग्राहक संगठनों के कारण धन्धे को अलग-अलग समूहों के हित के प्रति सजग रहने की आवश्यकता खड़ी हुई है । समाज के अलग अलग समूह या विभिन्न वर्ग जैसे कि मालिक, कर्मचारी, ग्राहक, लेनदार, सरकार इत्यादि सभी धन्धाकीय इकाई के साथ जुड़े हुए होते हैं और इन प्रत्येक समूहों का धन्धे के साथ के हित भी अलग अलग होते है । इन सभी अलग अलग समूहों के हितों का ख्याल धन्धाकीय इकाई को रखना अनिवार्य होता है । पर्यावरण की सुरक्षा, कर्मचारी कल्याण कानून, कारखाना कानून, ग्राहक सुरक्षा कानून इत्यादि का धन्धे को पालन करना पड़ता है ।

प्रश्न 4.
व्यापार की सहायक सेवाएँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर :
व्यापार की सहायक सेवाएँ इस प्रकार हैं : जैसे बैंक, बीमा, वाहन-व्यवहार, संदेशा-व्यवहार, गोदाम की सेवाएँ, प्रतिनिधि की सेवाएँ इत्यादि।

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प्रश्न 5.
उत्पादन के मुख्य साधन कौन-कौन-से होते हैं ?
उत्तर :
उत्पादन के मुख्य साधन निम्नलिखित हैं :

  1. भूमि
  2. पूँजी
  3. श्रम
  4. नियोजन-शक्ति इत्यादि ।

प्रश्न 6.
उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर :
उद्योग अर्थात् प्रकृति से प्राप्त चीज़-वस्तुओं पर मानव-श्रम अथवा यांत्रिक श्रम द्वारा योग्य प्रक्रिया करके मानव-उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करना ।

प्रश्न 7.
बैंक किस प्रकार पूँजी को तुरन्त स्थानान्तरित करते हैं ?
उत्तर :
बैंक चैक, हुण्डी, बैंक-ड्राफ्ट, पे-ऑर्डर, टेलिग्राफिक्स ट्रान्सफर, टेलिफोनिक ट्रान्सफर इत्यादि द्वारा सुरक्षित पूँजी का हस्तांतरण करते है।

प्रश्न 8.
गोदाम की सेवा किस प्रकार उपयोगी होती है ?
उत्तर :
गोदाम की सेवा के अंतर्गत मौसमी तथा तैयार माल का संग्रह किया जाता है और जब मांग उत्पन्न हो तब उसकी बिक्री की जा सकती है । इसके अलावा माल की सुरक्षा, पैकिंग हेतु गोदाम की सेवा उपयोगी होती है ।

प्रश्न 9.
प्रतिनिधि (Agent) को मिलनेवाली रकम किस नाम से जानी जाती है ?
उत्तर :
प्रतिनिधि को मिलनेवाली रकम दलाली, आढ़त, आसामी आढ़त, मारफत के नाम से जानी जाती है ।

4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर दीजिए ।

प्रश्न 1.
आर्थिक और अनार्थिक प्रवृत्ति से आप क्या समझते है ? उदाहरण द्वारा समझाइये ।
उत्तर :
आर्थिक प्रवृत्ति (Economic Activity) : आर्थिक प्रवृत्ति अर्थात् धन की प्राप्ति की अपेक्षा से की जानेवाली प्रवृत्ति । उदाहरणार्थ बैंक में काम करनेवाले क्लर्क, होटल में काम करनेवाले व्यक्तियों की प्रवृत्ति, चीज-वस्तु की बिक्री करनेवाले व्यापारियों की प्रवृत्ति, विद्यालय में पढ़ानेवाले शिक्षक की प्रवृत्ति, डॉक्टर, बकील तथा चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट द्वारा दी जानेवाली सेवा इत्यादि का उद्देश्य आय उपार्जन करना होता है । ऐसी प्रवृत्तियों को आर्थिक प्रवृत्ति कहा जाता है ।

आर्थिक प्रवृत्ति की परिभाषाएँ :
प्रो. जे. आर. हिक्स के अनुसार : “चीजवस्तु एवं सेवाओं का विनिमय द्वारा आय प्राप्त करने तथा खर्च करने की प्रवृत्ति को आर्थिक प्रवृत्ति कहते हैं ।”

प्रो. एरीक रॉल के अनुसार : “हमारी पसन्दगी की क्रियाएँ या प्रवृत्तियाँ सहज रूप से बाजार द्वारा होती है, और उनके द्वारा कम या अधिक मात्रा में वस्तु या सेवा का क्रय-विक्रय तथा विनिमय द्वारा व्यवहार करके आय या खर्च करने की प्रवृत्ति को आर्थिक प्रवृत्ति माना जाता है ।”

बिन-आर्थिक प्रवृत्ति (Non-Economic Activity) :
कुछ प्रवृत्तियाँ ऐसी होती हैं, जो प्रेम, लगाव, आवेश, ममता, धारणा, सेवा, प्रतिष्ठा इत्यादि से प्रेरित होकर की जाती हैं । इन प्रवृत्तियों का उद्देश्य धन-प्राप्ति नहीं होता है, बल्कि समाज सेवा अथवा अन्य उद्देश्य होते हैं । ऐसी प्रवृत्ति को बिन-आर्थिक प्रवृत्ति कहते हैं । जैसे रोगनिदान शिबिर में निःशुल्क सेवा देनेवाले डॉक्टर, भूकंप राहत शिविर में काम करनेवाले स्वयं सेवक, कोलेज व स्कूल में सामान्य मंत्री के तौर पर कार्य करनेवाला विद्यार्थी-प्रतिनिधि, माता द्वारा बालकों का पालन-पोषण की प्रवृत्ति इत्यादि बिन-आर्थिक प्रवृत्तियाँ हैं ।

अलग-अलग संगठनों द्वारा बिन-आर्थिक प्रवृत्तियों का संचालन किया जाता है । जैसे कि सेवा भावी संस्थाओं या मण्डलों द्वारा निःशुल्क सेवा-कार्य, शिक्षक-संघ, लायन्स क्लब, रोटरी क्लब द्वारा आयोजित रक्तदान-शिबिर, वृक्षारोपण-कार्यक्रम, बाढ़ग्रस्त अकाल या भूकंप के समय . सहायता, विद्यालय के बालकों द्वारा ट्राफिक नियमन में सहयोग इत्यादि समस्त प्रवृत्तियाँ अनार्थिक प्रवृत्तियाँ मानी जाती हैं ।

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प्रश्न 2.
पेशा (Profession) / पेशेवर धन्धार्थी का अर्थ एवं इसके लक्षण समझाइये ।
उत्तर :
पेशा (Profession) या पेशेवर धन्धार्थी : पेशा अर्थात् किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करके, उस ज्ञान का लाभ समाज के लोगों को सेवा के रूप में दिया जाता है । बदले में लोगों से फीस ली जाती है । कुछ पेशेवर व्यक्तियों द्वारा सदस्य बनना स्वैच्छिक होता हैं । जैसे डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट जो सेवा आर्थिक वस्तु के उत्पादन के साथ या उसके वितरण के साथ सम्बन्धित नहीं हैं, परन्तु मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक हैं उसे पेशेवर व्यक्ति या पेशा कहते हैं । यह स्वतंत्र आय प्राप्त करने की प्रवृत्ति है ।

प्रत्येक पेशेवर व्यक्ति को अपने पेशे में स्थापित मण्डल के नीति-नियमों (आचारसंहिता) का पालन करना पड़ता है । अगर कोई व्यक्ति अन्य किसी स्थान पर वेतनभोगी कर्मचारी के रूप में नौकरी स्वीकार करे तो उसे पेशेवर व्यक्ति नहीं परन्तु नौकरी के रूप माना जाता है।

लक्षण : पेशे के निम्नलिखित लक्षण होते हैं :

  • पेशेवर प्रवृत्ति स्वतंत्र आय कमाने की प्रवृत्ति है ।
  • पेशेवर प्रवृत्तियाँ मानवीय आवश्यकता के साथ सम्बन्ध रखती हैं ।
  • पेशेवर धन्धार्थी वेतनभोगी कर्मचारी भी बन सकते हैं, जैसे सरकारी अस्पताल में काम करनेवाले डॉक्टर ।
  • पेशेवर व्यक्तियों की फीस का प्रमाण अलग-अलग होता हैं । यह उनकी कुशलता, योग्यता, विशिष्ट ज्ञान, संशोधन, कभी एवार्ड की प्राप्ति, अनुभव इत्यादि के आधार पर भी मिलती है । जैसे BAMS या MBBS डॉक्टर की अपेक्षा M.D. एम.डी. डॉक्टर की फीस अधिक होती है ।
  • पेशेवर व्यक्तियों का प्रतिफल अथवा मुआवजा अनिश्चित होता है ।
  • पेशेवर व्यक्तियों का वस्तु के उत्पादन तथा वितरण के साथ सीधा सम्बन्ध नहीं होता है ।
  • पेशेवर व्यक्तियों को अपने पेशे में स्थापित मण्डल (बार काउन्सिल ऑफ इण्डिया, मेडिकल काउन्सल ऑफ इण्डिया) के नीति नियमों का पालन करना पड़ता है ।

प्रश्न 3.
व्यापार और वाणिज्य का अर्थ समझाकर दोनों के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
व्यापार (Trade) का अर्थ : व्यापार अर्थात् लाभ के उद्देश्य से दो व्यक्तियों के मध्य वस्तु अथवा सेवा के बदले में वस्तु या सेवा का अथवा वित्त के बदले में वस्तु या सेवा का विनिमय । यदि आप विक्रेता के पास से पुस्तक क्रय करें अर्थात् पुस्तक के क्रय के दौरान रुपया भुगतान करों तो वस्तु के बदले में वित्त का विनिमय हुआ कहलाता है । यदि आप बस या रेलवे की टिकिट खरीद करके बस या रेलवे में मुसाफरी करो अर्थात् वित्त के बदले में सेवा का विनिमय हुआ कहलाता है ।

वाणिज्य (Commerce) का अर्थ : वाणिज्य अर्थात् व्यापार और व्यापार की सहायक सेवाएँ । इन सेवाओं में बैंक, बीमा, परिवहन सेवाएँ, संदेशा व्यवहार, गोदाम और आढ़तिया, प्रतिनिधि, विज्ञापन व पैकिंग की सेवाएँ इत्यादि सेवाओं का समावेश होता है ।
स्वाध्याय प्र.

मुद्दा व्यापार (Trade) वाणिज्य (Commerce)
अर्थ 1. व्यापार में क्रय व विक्रय की प्रवृत्तियों का समावेश किया जाता है । 1. वाणिज्य में व्यापार के अलावा उसकी सहायक सेवाओं का समावेश होता है ।
कार्यक्षेत्र 2. व्यापार का कार्य-क्षेत्र सीमित होता है । 2. वाणिज्य का कार्य-क्षेत्र विशाल होता है, जिसमें व्यापार का समावेश होता है ।
पक्षकार 3. व्यापार में दोनों पक्षकार एक-दूसरे से नजदीक तथा परिचित होते हैं। 3. वाणिज्य में दो व्यक्ति या पक्षकार एक-दूसरे से अपरिचित तथा दूर होते हैं ।
समावेश 4. व्यापार में वाणिज्य का समावेश नहीं होता है । 4. वाणिज्य में व्यापार का समावेश होता है ।
आवश्यक 5. व्यापार के लिए विनिमय आवश्यक है । 5. वाणिज्य के विकास के लिए व्यापार आवश्यक है ।
सहायक 6. वाणिज्य की अनुपस्थिति में व्यापार सीमित बनता है। 6. वाणिज्य की सहायता से व्यापार विस्तृत तथा विशाल बनता है ।
विनिमय 7. व्यापार में प्रत्यक्ष रूप से विनिमय किया जाना संभव बनता है। 7. वाणिज्य में प्रत्यक्ष तथा परोक्ष दोनों तरीके से विनिमय संभव हुआ है ।
नाशवान वस्तुएँ 8. व्यापार में शीघ्र नष्ट होनेवाली वस्तुओं का विनिमय दूर के स्थानों तक संभव नहीं है । 8. वाणिज्य में आनुषंगिक सेवाओं की सहायता से नाशवान वस्तुओं का विनिमय दूर-दूर तक के स्थलों तक संभव बनता है ।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय कपड़ा निगम N.T.C. (National Textile Corporation Ltd.) का क्या उद्देश्य होता है ?
उत्तर :
भारत में अशक्त और बन्द होनेवाली मिलों के मजदूर एवं कर्मचारी बेकार न हों और उनका रोजगार बना रहे, इसलिए सरकार के द्वारा National Textile Corporation Ltd. की स्थापना की गई है ।

प्रश्न 5.
आर्थिक प्रवृत्ति के प्रकार बताइए ।
उत्तर :
आर्थिक प्रवृत्ति के निम्नलिखित तीन प्रकार होते हैं :

  1. नौकरी
  2. पेशा
  3. धन्धा ।

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प्रश्न 6.
बिना लाभ के उद्देश्यवाली इकाइयों के नाम दीजिये ।
उत्तर :
बिना लाभ के उद्देश्यवाली इकाइयों के नाम निम्नलिखित हैं :

  1. भारतीय रेलवे
  2. भारतीय डाक-तार विभाग
  3. गुजरात राज्य मार्ग परिवहन निगम (G.S.T.C.)
  4. अहमदाबाद म्युनिसिपल ट्रान्सपोर्ट सर्विस (AMTS)
  5. गुजरात राज्य वित्त निगम (GSFC)

प्रश्न 7.
आर्थिक प्रवृत्ति का अर्थ उदाहरण द्वारा समझाइए ।
उत्तर :
चीज़-वस्तुओं एवं सेवाओं के विनिमय द्वारा आय प्राप्त करने एवं खर्च करने की प्रवृत्ति को आर्थिक प्रवृत्ति के रूप में जाना जाता है । जैसे विभिन्न प्रकार के धन्धे, नौकरी एवं पेशे ।

प्रश्न 8.
बिन-आर्थिक प्रवृत्ति का अर्थ उदाहरण द्वारा समझाइए ।
उत्तर :
वित्तीय मुआवजे की अपेक्षा बिन सेवा, ममता, प्रतिष्ठा से प्रेरित होकर कार्य, बिना मुआवजे के करना बिन-आर्थिक प्रवृत्ति कहलाती है । जैसे बिना मूल्य रोगी का उपचार, भूकंप व अकाल के समय में सेवा की भावना से किए गए राहत-कार्य, ब्लड डोनेशन कैम्प, देश की सेवा का कार्य इत्यादि ।

प्रश्न 9.
आर्थिक प्रवृत्ति के प्रेरक बल कौन-से हैं ?
उत्तर :
आर्थिक प्रवृत्ति के प्रेरक बल निम्नलिखित हैं । जीवन-निर्वाह आवश्यकताओं को पूरा करना, सम्पत्ति का संग्रह, सुखी सम्पन्न जीवन, आराम एवं सुविधाएँ प्राप्त करना इत्यादि आर्थिक प्रवृत्ति के प्रेरक बल माने जाते हैं ।

प्रश्न 10.
बिन आर्थिक प्रवृत्ति के प्रेरक बल कौन-से हैं ?
उत्तर :
बिन आर्थिक प्रवृत्ति के प्रेरक बल देश सेवा, समाज सेवा, प्रतिष्ठा प्राप्त करना, इच्छा, निजी विचारधारा, रिवाज़, धर्म, शौक (रुचि) इत्यादि बिन आर्थिक प्रवृत्ति के प्रेरक बल माने जाते हैं ।

प्रश्न 11.
धन्धाकीय प्रवृत्तियों का वर्गीकरण कितने प्रकार से होता है ?
उत्तर :
धन्धाकीय प्रवृत्तियों का वर्गीकरण तीन प्रकार से होता है :

  1. व्यापार
  2. वाणिज्य
  3. उद्योग

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प्रश्न 12.
उद्योग के लक्षण बताइए ।
उत्तर :
उद्योग के लक्षण निम्न है :

  1. उत्पादन
  2. आर्थिक प्रवृत्ति
  3. कच्चे माल के स्वरुप में परिवर्तन
  4. विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन
  5. तृष्टिगुण में वृद्धि
  6. मानव श्रम
  7. प्राकृतिक सम्पत्ति व यांत्रिक साधनों का उपयोग ।

प्रश्न 13.
अर्थशास्त्र की दृष्टि से आर्थिक प्रवृत्ति किसे कहा जाता है ?
उत्तर :
अर्थशास्त्र की दृष्टि से चीज़-वस्तु का उत्पादन, विनिमय, वितरण एवं उपभोग से सम्बन्धित प्रवृत्तियों का समावेश आर्थिक प्रवृत्ति के रूप में किया जाता है ।

प्रश्न 14.
सामाजिक जिम्मेदारी के क्या उद्देश्य होते हैं ?
उत्तर :
सामाजिक जिम्मेदारी का उद्देश्य समाज के अलग-अलग कर्मचारियों, अंशधारियों, ग्राहकों, लेनदारों, प्रतिस्पर्धी, सरकार सभी के हितों को ध्यान में रखकर कार्य करना इत्यादि सामाजिक जिम्मेदारी का उद्देश्य होता है ।

प्रश्न 15.
महत्तम सम्पत्ति के उद्देश्य से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
जिसमें महत्तम सम्पत्ति अर्थात् धन्धे की शुद्ध सम्पत्ति की कीमत अधिक से अधिक हो वह परिस्थिति ।

प्रश्न 16.
सामाजिक जिम्मेदारी अर्थात क्या ?
उत्तर :
सामाजिक जिम्मेदारी अर्थात् समाज में विविध वर्गों के हित को ध्यान में रखकर धन्धे के उद्देश्य को पूर्ण करना और समाज के सम्पूर्ण कल्याण के लिए धन्धे का संचालन करना ।

5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक दीजिए ।

प्रश्न 1.
धन्धे (Business) से आप क्या समझते हैं ? धन्धे के उद्देश्य समझाइये ।
उत्तर :
धन्धा (Business) का अर्थ : धन्धा शब्द यह अंग्रेजी शब्द ‘Busy’ शब्द से आया है । जिसका अर्थ होता है ‘व्यस्त’ रहना अथवा सतत प्रवृत्तिमय (कार्यशील) रहना । कोई भी धन्धा लाभ और सम्पत्तियाँ प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है । धन्धा का सम्बन्ध लाभ के साथ होता है । फिर भी कई बार हानि भी हो सकती है फिर भी आर्थिक प्रवृत्ति ही मानी जाती है ।

व्याख्या :

  1. “धन्धा अर्थात् लाभ कमाने के उद्देश्य से की जानेवाली कोई भी कानूनी रूप से की जानेवाली आर्थिक प्रवृत्ति ।”
  2. प्रो. डिक्सी के मतानुसार : “धन्धा अर्थात् लाभ के उद्देश्य से की जानेवाली कोई भी आर्थिक प्रवृत्ति ।”
  3. श्री ल्यूइस हेन्री के मतानुसार : “धन्धा में वस्तुओं के क्रय विक्रय द्वारा सम्पत्ति (धन) उत्पन्न करने अथवा प्राप्त करने के उद्देश्य से की जानेवाली मानवीय प्रवृत्ति है ।”
  4. “धन्धा अर्थात् चीज-वस्तुओं एवं सेवाओं को लाभ के उद्देश्य से विक्रय के लिये किया जानेवाला उत्पादन एवं क्रय से सम्बन्धित सभी प्रवृत्तियाँ ।”

धन्धे के उद्देश्य :
धन्धे का प्राथमिक उद्देश्य लाभ कमाना होता है इसके बावजूद भी ग्राहकों का जागृत होना, राज्य के नियंत्रण व बदलती हुई परिस्थिति के कारण धन्धे के एक से भी अधिक उद्देश्य स्वीकारे गये हैं । धन्धे के उद्देश्यों को दो भागों में बाँटा गया है :
I. आर्थिक उद्देश्य, II. सामाजिक उद्देश्य

I. धन्धे के आर्थिक उद्देश्य :
धन्धे के आर्थिक उद्देश्य निम्नानुसार होते है :

(1) लाभ का उद्देश्य : धन्धा लाभ के उद्देश्य से की जानेवाली आर्थिक प्रवृत्ति हैं । अधिकतर व्यापारी एवं उत्पादक द्वारा लाभ के उद्देश्य से धन्धाकीय प्रवृत्तियाँ की जाती हैं । लाभ धन्धे के प्रेरक बल के समान है, धन्धे की कार्यक्षमता का मापदण्ड है । अगर किसी व्यापारिक इकाई में लाभ न मिले तो ऐसी इकाई को चलाने के लिए कोई भी तैयार नहीं होता । धन्धे में अधिकतम लाभ कमाना पुरानी विचारधारा है, लेकिन वर्तमान में अधिकतम लाभ के स्थान पर योग्य लाभ प्राप्त करने का उद्देश्य रखा गया है ।

धन्धे में योग्य एवं.उचित लाभ लेने से धन्धा स्पर्धा में अधिक समय तक टिक सकता है, धन्धे में व्यक्ति प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है । उचित लाभ के उद्देश्य से ग्राहकों की संख्या में वृद्धि होती है । धन्धे का एक मात्र उद्देश्य लाभ कमाना ही नहीं होना चाहिए, परन्तु दूसरे अन्य उद्देश्य भी होने चाहिए, इसके सन्दर्भ में संचालन-निष्णात उर्विक के मतानुसार : “जिस प्रकार जीवन का एक मात्र उद्देश्य खाना खाकर पेट भरना ही नहीं होता, ठीक इसी तरह धन्धे का भी एक मात्र उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता ।”

(2) महत्तम सम्पत्ति सर्जन करने का उद्देश्य : अधिकतर धन्धों में धन्धा की सम्पत्ति की कीमत अधिक से अधिक हो यह देखना होता है । विभिन्न धन्धा अथवा कम्पनी स्वरूप में समस्त लाभ लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि कुछ लाभ को सम्पत्तियों को क्रय करने में लगाना चाहिए । महत्तम सम्पत्ति का उद्देश्य दीर्घकालीन उद्देश्य है । मंदी के समय आकस्मिक परिस्थितियों में लाभ प्राप्त करने का उद्देश्य कम करके धन्धे में सम्पत्ति और प्रतिष्ठा बनाये रखकर भविष्य में धन्धे को आगे बढ़ाने की नीति अपनानी पड़ती है ।

(3) अन्य आर्थिक उद्देश्य : अन्य आर्थिक उद्देश्यों में धन्धे की आर्थिक प्रगति और विकास करना, बाजार का विस्तार करना, उपलब्ध साधनों का अधिक से अधिक श्रेष्ठ उपयोग करना तथा आधुनिक तकनिकी को अपनाना इत्यादि ।

II. धन्धे के सामाजिक उद्देश्य :
धन्धे की ओर से समाज के विभिन्न वर्गों को लाभ हो इसके लिए कई सामाजिक उद्देश्यों को महत्त्व दिया जाता है । किसी भी धन्धे का अस्तित्व समाज के बिना सम्भव नहीं । समाज है तो धन्धा है । इसलिए धन्धा का लाभ के अलावा के उद्देश्यों के महत्त्व को स्वीकारा गया है । धन्धे के सामाजिक उद्देश्य निम्नानुसार है :

(1) सामाजिक जिम्मेदारी पूर्ण करने का उद्देश्य : धन्धा समाज के विभिन्न वर्गों के साथ रहकर किया जाता है । जैसे ग्राहकों, मालिकों, कर्मचारियों, सरकार, देनदार, लेनदार इन सभी वर्गों के प्रति जिम्मेदारी को निभाते हुए आगे बढ़ने का उद्देश्य धन्धे का होना चाहिए । इसके अलावा धन्धार्थी द्वारा प्रदूषण नियंत्रण, कर्मचारी कल्याण नियम, कारखाना अधिनियम, गुमास्ता धारा अधिनियम का पालन, प्राकृतिक प्रकोप में मदद करना, कर्मचारी बीमा-योजना लागू करना, आरोग्य-सेवा इत्यादि सभी नियमों का पालन करते हुए आगे बढ़ना अर्थात् सामाजिक जिम्मेदारी ।

(2) रोजगार प्रदान करने का उद्देश्य : भारत में सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या रोजगार की हैं । इसके लिए रोजगार के नये-नये अवसर उत्पन्न करना तथा चालू रोजगार बन्द हों इस उद्देश्य से कई धन्धाकीय इकाइयाँ स्थापित हैं । जैसे राष्ट्रीय कपडा निगम National Textile Corporation (N.T.C.) संस्था द्वारा दुर्बल मिलें बन्द न होने पाएँ अत: ऐसी दुर्बल मिलों के NTC संस्था अपने अधिन ले लेती है जिसमे रोजगार बना रहता है । खादी ग्रामोद्योग बोर्ड द्वारा अधिक पिछड़े विस्तारों में औद्योगिक इकाई स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन देना, गुजरात । राज्य लघु उद्योग निगम के द्वारा छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन देकर रोजगार बढ़ाना, पिछड़े क्षेत्रों में जहाँ आर्थिक विकास नहीं हुआ है वहाँ औद्योगिक इकाइयाँ प्रारम्भ करना अर्थात् रोजगार को बढ़ाना । कई बार उद्योगपतियों को अपने देश का ऋण अदा करने की जिम्मेदारी से प्रेरित किया जाता है, जिसमें देश के लोगों को रोज़गार का अवसर प्रदान करने का उद्देश्य होता है ।

(3) गुणवत्तावाली वस्तुएँ और सेवा प्रदान करने का उद्देश्य : धन्धे का उद्देश्य होता है कि समाज के लोग अपनी आवश्यकताएँ सन्तुष्ट कर सके तथा आसानी से उपलब्ध हो सके ऐसी गुणवत्तावाली वस्तुएँ और सेवाएँ प्रदान करने का उद्देश्य होता है । जैसे रसोई में उपयोग में लाये जानेवाले मसाले, पेय पदार्थ और खाद्य पदार्थों का उत्पादन करनेवाली इकाइयों को उच्चतम गुणवत्ता के स्तर अथवा नियमों का पालन करना चाहिए । सामाजिक उद्देश्य प्रदान करनेवाली धन्धाकीय इकाइयाँ उचित मूल्य पर वस्तुएँ और सेवाएँ प्रदान करने के लिए तैयार रहती है । जैसे ग्राहकों को वस्तुएँ विक्रय के पश्चात् घर तक पहुँचाना, वस्तुओं की व्यवस्था करना इत्यादि ।

(4) व्यापारिक रीति-रिवाजों का उचित रूप से निभाने का उद्देश्य : धन्धे के लिए कई गलत/अयोग्य रीति-रिवाज माने जाते है. जैसे वस्तुओं की कालाबाजारी, वस्तुओं को संग्रह करना, असत्य मार्ग दर्शानेवाले विज्ञापन देना । ऐसे कार्य धन्धे की ओर से नहीं किये जाने चाहिए । आवश्यकतावाली वस्तुओं की कृत्रिम कमी उत्पन्न नहीं करना चाहिए । ग्राहकों और समाज के कल्याण हेतु धन्धाकीय इकाइयाँ उचित/योग्य रूप से व्यापारिक रीति-रिवाज निभाने का उद्देश्य रखती है ।

(5) अन्य उद्देश्य : अन्य सामाजिक उद्देश्यों में

  1. इकाई द्वारा समाज में प्रतिष्ठा बनाना
  2. उत्पादन क्षेत्र में नये-नये संशोधन करना
  3. राष्ट्र के आर्थिक विकास में सहायक बनना और इसके लिये सरकार को सहकार देना
  4. कर्मचारियों प्रोत्साहित हो ऐसी कल्याणकारी योजनाएँ अमल में लाना ।
  5. उत्पादकता की ऊँची दर सिद्ध करना
  6. प्रतिस्पर्धा में टिके रहना, स्पर्धा में आगे आने के लिए नई वस्तुओं का विकास करना आदि धन्धे के अन्य उद्देश्य होते है ।

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प्रश्न 2.
धन्धा (Business) के लक्षण/विशेषताएँ समझाइये ।
उत्तर :
धन्धे के लक्षण : धन्धे के लक्षण निम्नालिखित हैं :

1. लाभ का उद्देश्य : धन्धे में लाभ का उद्देश्य होता है । व्यापारी कम कीमत में वस्तु क्रय करके अधिक कीमत में वस्तु का विक्रय करते हैं जिससे उसे लाभ प्राप्त होता है । व्यापारी चाहे किसी भी प्रकार का धन्धा करे फिर चाहे वह माल या सेवा का उत्पादन हो या फिर व्यापारी प्रवृत्ति हो लाभ कमाने की इच्छा रखता है । जिस धन्धे में लाभ प्राप्त करने की कोई शक्यता न हो उस व्यापार को कोई करना नहीं चाहेगा । लाभ धन्धे की जीवन-रेखा के समान है । यदि धन्धे में लाभ बन्द हो जाता हैं तो धन्धा बन्द होने की संभावना हो जाती है ।

2. जोखिम तथा अनिश्चितता : धन्धे में जोखिम तथा अनिश्चितता का तत्त्व निहित है । आग, दुर्घटना, चोरी, हड़ताल, लूटपाट, दंगे, मांग में कमी, रूचि या फैशन में परिवर्तन, भूकंप, आँधी, तूफान, तकनीक में परिवर्तन, प्रतिस्पर्धा जैसे अनेक जोखिमों के कारण लाभ के स्थान पर कई बार नुकसान होने की संभावना रहती है ।

3. तुष्टिगुण का सर्जक : धन्धा तुष्टिगुण का सर्जन करता है । तुष्टिगुण अर्थात् वस्तु एवं सेवाओं से उपभोक्ताओं को संतुष्टि प्रदान करने का गुण । वस्तु के स्वरूप बदलने से स्वरूप – तुष्टिगुण, एक स्थान से दूसरे स्थान पर माल के स्थानान्तरण करने से स्थल – तुष्टिगुण, किसी निश्चित समय तक माल का संग्रह करके उसकी मांग होने पर वितरण करने से माल के समय-तुष्टिगुण का निर्माण होता है ।

4. प्रवृत्तियों का सातत्य : धन्धे में प्रवृत्तियों का सातत्य होना चाहिए । धन्धाकीय प्रवृत्तियों में नियमितता होना आवश्यक है । फैक्टरी (कारखाना), कम्पनी, दुकान, गल्ला, लारी, अनाज का व्यापारी, दूध की डेयरी इत्यादि द्वारा विभिन्न प्रवृत्तियाँ निरन्तर की जानी चाहिए ।

5. आर्थिक प्रवृत्ति : धन्धा आर्थिक प्रवृत्ति का एक भाग है । आर्थिक प्रवृत्ति में मुआवजा प्राप्त करने का उद्देश्य होता है । उसी प्रकार धन्धाकीय प्रवृत्ति में लाभ के रूप में मुआवजा प्राप्त किया जाता है ।

6. विनिमय : धन्धे में वस्तु एवं सेवाओं अथवा वस्तु एवं सेवा के बदले में मुद्रा का विनिमय होता है जिसमें दो पक्षकार होते हैं । क्रेता – सेवा प्राप्त कर्ता, विक्रेता – सेवा देनेवाला ।

7. वस्तु एवं सेवा : धन्धे में वस्तु एवं सेवाओं का विनिमय देखा जाता है । वस्तुएँ दृश्य होती हैं, जिन्हें हम देख सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं । जैसे वाशिंग मशीन एक वस्तु है ।

8. वित्त की आवश्यकता : धन्धे के लिए प्रारम्भ से अन्त तक वित्त की आवश्यकता रहती है । कारखाने में कच्चे माल में से तैयार माल का उत्पादन करने, व्यापारी को माल क्रय करने के लिए वित्त की आवश्यकता रहती है ।

प्रश्न 3.
‘समाज बिना धन्धे का अस्तित्व सम्भव नहीं ।’ धन्धे के सामाजिक उद्देश्य के संदर्भ में विधान समझाइये ।
उत्तर :
उपरोक्त विधान सत्य है । क्योंकि धन्धा समाज का एक अंग है । समाज के विभिन्न वर्गों के साथ उसका व्यवहार होता है । जैसे मालिक, ग्राहक, कर्मचारी, सरकार, लेनदार इत्यादि । इन सभी वर्गों का हित अलग-अलग होता है । तथा इन सभी के प्रति । धन्धे का सामाजिक दायित्व होता है । जो इकाई इन सभी वर्गों के प्रति दायित्व नहीं निभाती वो इकाई समाज में दीर्घ अवधि तक नहीं टिक सकेगी ।

समाज है तो धन्धा है, समाज नहीं तो धन्धा नहीं, अत: धन्धे की ओर से विभिन्न नियम/कानून का पालन करना चाहिए जैसे प्रदूषण नियंत्रण, कर्मचारी कल्याण नियम, कारखाना कानून, कर्मचारी बीमा योजना, ग्राहक सुरक्षा कानून आदि । इसके उपरांत रोजगार के अवसर प्रदान करना, उच्च गुणवत्तावाली वस्तुएँ तथा सेवाएँ प्रदान करना, व्यापारिक रीति-रिवाजों को निभाना और संशोधन को बल देना तथा राष्ट्र के विकास में सहायक बनना ऐसी कई योजनाएँ धन्धे की ओर से अमल में लाया जाना चाहिए । इस तरह कहा जाता है कि यदि धन्धे की ओर से समाज के प्रति दायित्व नहीं निभाया जायेगा तो वह इकाई दीर्घ अवधि तक टिक नहीं पायेगी तथा समाज बिना धन्धे का अस्तित्व सम्भव नहीं ।

प्रश्न 4.
धन्धाकीय जोखिम से आप क्या समझते है ? धन्धाकीय जोखिम के कारण समझाइये ।
उत्तर :
धन्धाकीय जोखिम का अर्थ : विभिन्न धन्धाकीय इकाइयों में लाभ की अनिश्चितता अथवा हानि या नुकसान होने की आशंका बनी रहती है, जो भविष्य में इकाई के लाभ को प्रभावित करती है, जिसे धन्धाकीय जोखिम के रूप में जानते है ।
धन्धाकीय जोखिमों के सामने का प्रतिफल अर्थात् लाभ । धन्धे में दो स्वरूप की जोखिमें रहती है ।
(A) प्राकृतिक जोखिम
(B) मानवसर्जित जोखिम

(A) प्राकृतिक जोखिम : प्राकृतिक जोखिम, जैसे कि भूकंप, बाढ़ आदि धन्धे के विकास को बाधाएँ पहुँचाती है । धन्धे की सम्पत्तियों को नष्ट करते है अथवा नुकसान पहुंचाते है । ऐसी जोखिमों पर धन्धे का कोई नियंत्रण नहीं रहता है ।

(B) मानवसर्जित जोखिम : मानवसर्जित जोखिमों के कारण से धन्धे का विकास रुकता है तथा धन्धे में नुकसान सहन करना पड़ता है, जैसे कि कर्मचारियों की हड़ताल, टेक्नोलॉजी में परिवर्तन, ग्राहकों की रुचि-अभिरूचि और मांग में परिवर्तन, राजकीय अस्थिरता, बाजारं में स्पर्धा का जोखिम ।

धन्धाकीय जोखिम का कारण :
धन्धाकीय इकाइयों में दो प्रकार के जोखिम देखने को मिलते हैं, जिनमें प्राकृतिक जोखिम एवं मानवसर्जित जोखिम के कारण निम्नलिखित होते हैं :

  • तकनीकी में परिवर्तन होने से धन्धे में जोखिम रहता है । यंत्र, साधन या कम्प्यूटर लाया गया हो, लेकिन अधिक सुविधावाला यंत्र, साधन तथा कम्प्यूटर हो जाने से पुराने साधन तथा कम्प्यूटर अप्रचलित बन जाते हैं । जैसे कम्प्यूटर के पुराने पंच कार्ड किसी काम के नहीं रहते ।
  • मांग की अनिश्चितता के कारण भी धन्धे में जोखिम रहता है, कभी माँग (Demand) में वृद्धि होती है तो कभी मांग में कमी । जैसे ओलम्पिक अथवा क्रिकेट वर्ल्डकप मैच के दौरान टेलिविझन की माँग में एकाएक वृद्धि होती है ।
  • धन्धे में दो प्रतिस्पर्धी कम्पनियों के बीच स्पर्धा का भी पूर्ण जोखिम होता है । स्पर्धा से विज्ञापन (Advertising) खर्च अधिक होता है, जिसके परिणामस्वरूप लाभ में कमी होती है एवं अन्य स्पर्धी कम्पनियों के प्रवेश होने से कीमत में कमी करनी पड़ती है ।
  • धन्धे में आर्थिक जोखिम भी बाधक होता है, जैसे तेजी-मंदी, ब्याज की दर में घट-बढ़, खर्च में वृद्धि, महँगाई भत्ता (D.A.) बढ़ने से वेतन में वृद्धि, बिजली की दर में वृद्धि, कर की दर में वृद्धि होने से अधिक भुगतान करने का जोखिम रहता है ।
  • कानून/नियम : सरकार विभिन्न प्रकार के कानून/नियम बनाती है, जैसे प्रदूषण नियम, ग्राहक सुरक्षा कानून, श्रमसंघ कानून, कारखाना कानून इत्यादि । लेकिन उपरोक्त सभी कानून धन्धे के लिए जोखिम भी खड़ी करते है । जैसे न्यूनतम वेतन अधिनियम और कारखाना है । कानून/अधिनियम आदि धन्धाकीय इकाइयों को कई निर्णय लेने में रुकावट डालते है ।
  • भौतिक जोखिम : धन्धे में उपयोग में ली जानेवाली सम्पत्तियों को नुकसान होने से भौतिक जोखिम खड़ी हो जाती है । जैसे यंत्र और साधन काम करते हुए बन्द हो जाये, वहन के दौरान माल को नुकसान पहुंचे तब भौतिक जोखिम खड़ी हो जाती है ।

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प्रश्न 5.
धन्धा, पेशा (पेशेवर धन्धार्थी) और नौकरी (रोजगार) के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
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प्रश्न 6.
उद्योग का अर्थ एवं इसके प्रकार समझाइये ।।
उत्तर :
उद्योग (Industry) का अर्थ : मानवीय आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए कच्चे माल पर विविध प्रक्रियाएँ करके उत्पादन करके तुष्टिगुण प्रदान करने की प्रक्रिया अर्थात् उद्योग । जैसे लकड़ी में से फर्निचर का निर्माण, कच्चे माल रूई में से कपड़े का उत्पादन । उद्योगों का वर्गीकरण/प्रकार :
(1) प्राथमिक उद्योग
(2) गौण उद्योग
(3) तृतियक उद्योग

(1) प्राथमिक उद्योग (Primary Industry) : ऐसे उद्योग मूलभूत उद्योग कहलाते है । ये समुद्र, जमीन और हवा के साथ सम्बन्धित है । प्रकृति पर आधारित रहकर उत्पादन प्रवृत्ति होती है । जैसे कृषि, पशुपालन, मुर्गा व बतख पालन व मत्स्य पालन आदि ।

(2) गौण उद्योग/सहायक उद्योग (Secondary Industry) : ऐसे उद्योगों में विविध प्रकार के यंत्र और टेक्नोलॉजी की सहायता – ली जाती है । प्राकृतिक सम्पत्ति को उपभोग योग्य बनाकर ग्राहकों तक पहुँच सके इस हेतु की जानेवाली प्रक्रिया अर्थात् गौण उद्योग जैसे रासायनिक खाद, रंग और रसायण उद्योग और स्टील उद्योग इत्यादि ।

(3) तृतियक उद्योग : (Tartiary Industry) : प्राथमिक और गौण उद्योगों को सहायता और सेवा प्रदान करने के अलावा ग्राहकों के अधिक निकट होते हैं, प्राथमिक उद्योग व गौण उद्योग द्वारा जो उत्पादन किया जाता है, उन पर विविध प्रक्रियाएँ करके ग्राहकों के लिए वस्तुओं को अधिक उपयोगी बनाते है । जैसे डेरी उद्योग, पेय-पदार्थ के उद्योग, बेकरी उद्योग । तृतियक उद्योगों में परिवहन (वाहनव्यवहार), बैंक, बीमा, गोदाम, आढतिया, सूचनासंचार इत्यादि सेवाओं का भी समावेश होता है ।

कृषि द्वारा धान्य, उदाहरण – गेहूँ का उत्पादन किया जाए तो प्राथमिक उद्योग । गेहूँ में से मेंदा (आटा) तैयार करनेवाला उद्योग वह गौण उद्योग । मेंदे में से ब्रेड, पांऊ व बिस्किट का उत्पादन अर्थात् तृतियक उद्योग ।

प्रश्न 7.
वाणिज्य (Commerce) का अर्थ, परिभाषाएँ एवं महत्त्व स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
वाणिज्य का अर्थ : धन्धाकीय प्रवृत्ति में वाणिज्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है । जिस प्रकार उद्योग में चीज़-वस्तु के आकार तथा स्वरूप में परिवर्तन करके उसकी उपयोगिता में वृद्धि की जाती हैं, उसी प्रकार वाणिज्य के विभिन्न सहायक सेवाओं द्वारा वस्तु के स्थल तथा समय उपयोगिता में वृद्धि की जाती है । व्यापार में वस्तु के बदले वस्तु तथा वस्तु के बदले मुद्रा का विनिमय केन्द्र-स्थान में हैं । यह विनिमय प्रवृत्ति सरल एवं विस्तृत बन सके इसके लिए सहायक (आनुषंगिक) सेवाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है ।

“वाणिज्य का आशय व्यापार के अलावा उसकी सहायक सेवा से है ।”
“उत्पादक द्वारा उत्पादित चीज़-वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने की प्रवृत्तियों का योग अर्थात वाणिज्य ।”

वाणिज्य की परिभाषाएँ (Definitions of Commerce) :
(i) बकनोल के मतानुसार : “वस्तु तथा सेवाओं की वितरण-प्रक्रिया अर्थात् वाणिज्य ।”

(ii) पोलकर के मतानुसार : “वाणिज्य में माल तथा सेवाओं के विनिमय से सम्बन्धित सभी सेवाओं का समावेश होता हैं ।”

(iii) प्रो. जेम्स स्टीफन्स के मतानुसार : “वाणिज्य अर्थात् वस्तु के विनिमय में अवरोध रूप ऐसी व्यक्ति-सम्बन्धी कठिनाइयाँ (एजेन्ट या आढ़तिया द्वारा), स्थल-सम्बन्धी कठिनाइयाँ (परिवहन द्वारा), समय-सम्बन्धी कठिनाइयाँ (माल-संग्रह द्वारा) एवं धन के लेनदेन की कठिनाइयाँ . (बैकिंग द्वारा) दूर करने के लिए आवश्यक कार्यों का समूह ।”

संक्षेप में वाणिज्य अर्थात् व्यापार एवं व्यापार की सहायक सेवाएँ जैसे बैंक, बीमा, वाहन-व्यवहार, गोदाम, संदेशा-व्यवहार एवं आढ़तिये की सेवा का समावेश होता है ।

वाणिज्य का महत्त्व (Importance of Commerce) :
वाणिज्य का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है । जहाँ संभव नहीं होता है वहाँ भी वाणिज्य की प्रवृत्ति सम्भव बन पाई है । जहाँ वर्ष भर बर्फ रहती है फिर भी वहाँ वाणिज्य की प्रवृत्ति देखने को मिलती है । विश्व के किसी एक देश में तैयार हुई चीज़-वस्तु वाणिज्य की सहायता से अनेक देशों में पहुँचाना सम्भव बना हैं । भारत की चाय का स्वाद विश्व भर के लोग ले सकते हैं । ब्राजील की कॉफी का स्वाद भारत के लोग प्राप्त कर सकते हैं । जर्मनी एवं जापान में बने हुए केलक्युलेटर या विद्युत के साधन भारत के लोग उपयोग में ले सकते हैं ।

वाणिज्य के कारण शीघ्र नष्ट होनेवाली वस्तु का अधिक समय तक उपयोग किया जा सकता है तथा दूर-दूर तक के स्थानों तक उपयोग के लिए संभव बनाया जाता है । जैसे कश्मीर में उत्पादित सेव भारतभर के लोग खा सकते हैं । अहमदाबाद में तैयार किया गया आइसक्रीम तथा खाने की वस्तुएँ राजकोट, सुरत, भावनगर या महेसाना के बस स्टेण्ड या रेलवे स्टेशन पर प्राप्त कर सकते हैं । अहमदाबाद से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र गुजरात के सभी गाँव तथा अन्य राज्यों तक उसी दिन पहुँचाये जाते हैं । नाशवंत वस्तुएँ जैसे कि दूध, शाक-सब्जी, अण्डा, फल, मांस, मछली इत्यादि के स्थानान्तरण तथा संग्रह में वाणिज्य की सेवा महत्त्वपूर्ण है ।

जैसे-जैसे वाणिज्य का विकास होता गया, वैसे-वैसे मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ती गई । इन सभी आवश्यकताओं की तुष्टि हेतु उत्पादन उसके आसपास नहीं होने से कुछ वस्तुओं के लिए अन्य राज्यों अथवा देशों पर आश्रित होना पड़ता है । वाणिज्य की सहायक सेवाओं के कारण ही ऐसी चीज़-वस्तुएँ दूसरे प्रदेश या राष्ट्र से प्राप्त करना सम्भव बना है । मनुष्य नई-नई चीज़-वस्तुओं का उपयोग करके जीवन सरल व सुविधापूर्ण बना सकते हैं ।

वाणिज्य की सहायक सेवाओं के द्वारा तकनीक, यंत्र, कच्चा माल तथा खनिज पदार्थों का स्थानान्तरण सम्भव होने से देश के विभिन्न उद्योगों को बल मिलता है । इसके अलावा वाणिज्य की सहायक सेवाओं में असंख्य लोगों को रोजगार सुलभ बना है । तथा बाजार का विकास सम्भव बनता है । सांस्कृतिक आदान-प्रदान संभव बना है । देश तथा दुनिया की समृद्धि-वाणिज्य की आभारी है । वर्तमान समय में कृषि-विकास भी वाणिज्य पर आधारित है, विभिन्न यंत्रों द्वारा उत्पादन तीव्र, कम खर्चीला तथा अधिक प्रमाण में तैयार होना संभव हुआ है ।

वाणिज्य की सहायक सेवाएँ नहीं हो तो भी विनिमय हो सकता है । किन्तु उसकी सेवा से विनिमय का कार्य सरल तथा तीव्र बनता है । जिससे यह सेवा अनिवार्य नहीं अपितु सहायक सेवा है । इस तरह से हम कह सकते हैं कि वाणिज्य का महत्त्व बहुत अधिक होता है ।

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प्रश्न 8.
वाणिज्य किसे कहते हैं ? इसके लक्षण स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
वाणिज्य अर्थात् व्यापार एवं व्यापार की सहायक सेवाएँ । वाणिज्य के लक्षण निम्नलिखित हैं :

  • विनिमय : वाणिज्य का प्रारम्भ व्यापार से होता है । व्यापार में चीज़-वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय होता है । वस्तु या सेवा के विनिमय की प्रवृत्ति नियमित रूप से होनी चाहिए ।
  • सहायक सेवाएँ : वाणिज्य में व्यापार में सहायक सेवाओं का समावेश होता है । जैसे – बैंक, बीमा, गोदाम, वाहन-व्यवहार, संदेशाव्यवहार, एजेन्ट इत्यादि ।
  • आर्थिक प्रवृत्ति : वाणिज्य की प्रवृत्ति एक आर्थिक प्रवृत्ति है, आर्थिक प्रवृत्ति में वित्तीय आय प्राप्त की जाती है । व्यापार में लाभ के रूप में आय प्राप्त की जाती है । जैसे माल के संग्रह के बदले किराया लिया जाता है ।
  • सेवा का सातत्य : वाणिज्य के विकास का आधार उसकी सहायक सेवाओं से है, ये सेवाएँ सतत एवं नियमित प्राप्त होनी चाहिए । जैसे रेलवे, बैंक, बीमा कम्पनी इत्यादि ।
  • योग्य कीमत : आनुषंगिक सेवाओं की कीमत चीज़-वस्तु की कीमत की तुलना में योग्य एवं कम होनी चाहिए ।
  • मांगलक्षी : वाणिज्य की सेवाएँ मांगलक्षी होनी चाहिए । अगर सहायक सेवाएँ मांगलक्षी न हो तो वाणिज्य का विकास नहीं हो सकता ।
  • समय तथा स्थल की उपयोगिता में वृद्धि : वाणिज्य की प्रवृत्ति द्वारा वस्तुओं की स्थल-उपयोगिता तथा समय-उपयोगिता में वृद्धि होती है । जैसे नदी में पड़ी हुई रेत वाहन-व्यवहार की सेवा द्वारा भवन-निर्माण-स्थल तक लाने से उसकी स्थल उपयोगिता में वृद्धि होती है ।

गरम कपड़े का उत्पादन वर्ष भर होता है । किन्तु उसे संग्रह करके सर्दी की ऋतु में बाज़ार में रखने से उसकी समय उपयोगिता में वृद्धि होती है ।

प्रश्न 9.
व्यापार Trade का अर्थ, परिभाषाएँ एवं लक्षण समझाइए ।
उत्तर :
व्यापार का अर्थ : Meaning of Trade : मनुष्य जब जंगली अवस्था में था तब वह अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ सीमित होने से वह अपनी आवश्यकताओं को स्वयं संतुष्ट कर सकता था । उस समय विनिमय या व्यापार का कोई अस्तित्व नहीं था । कृषि की खोज के कारण श्रम-विभाजन संभव हुआ, तथा मनुष्य अपनी आवश्यकताएँ संतुष्ट करने के लिए एक-दूसरे पर आश्रित बना । जिससे विनिमय का उद्भव हुआ । प्रारम्भ के समय में वस्तु तथा सेवा के बदले में वस्तु एवं सेवा का विनिमय होता था । लेकिन मुद्रा की खोज होने से वस्तु तथा सेवा के बदले मुद्रा का विनिमय होने लगा है ।

व्यापार का अर्थ होता है, लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से चीज़-वस्तुओं का क्रय एवं विक्रय । व्यापार में दो पक्षकार होते हैं :
(1) वस्तु या सेवा देनेवाला (विक्रेता)
(2) वस्तु या सेवा प्राप्त करनेवाला (क्रेता) ।

व्यापार की परिभाषाएँ (Definitions of Trade) :

  1. प्रो. सावकार के अनुसार : “व्यापार अर्थात् वस्तु के बदले में वस्तु या सेवा की अथवा धन के बदले में वस्तु या सेवा का लेनदेन अथवा विनिमय ।”
  2. कोन्स्टन्सई एम विल्ड के अनुसार : “व्यापार अथवा लाभ प्राप्ति के उद्देश्य से माल का क्रय-विक्रय ।”
  3. श्री ल्युइस हेन्री के अनुसार : “व्यापार अर्थात् ऐसी मानवीय प्रवृत्ति जिसमें वस्तु के क्रय-विक्रय की प्रवृत्ति द्वारा धन-प्राप्ति का उद्देश्य सार्थक किया जाता है ।”

व्यापार के लक्षण : व्यापार के लक्षण निम्नलिखित हैं :
1. विनिमय : व्यापार में विनिमय आवश्यक है । इसमें वस्तु एवं सेवा के बदले में वस्तु या सेवा अथवा वस्तु एवं सेवा के बदले में मुद्रा का विनिमय होता है । जैसे किसान द्वारा अनाज के बदले में जूते प्राप्त करना । दरजी कपड़ा सिलने के बदले में कुंभार से मिट्टी के बर्तन प्राप्त करे, मुद्रा के बदले में फ्रीज खरीदना इत्यादि ।

2. मालिकी परिवर्तन : व्यापार से वस्तु या सेवा की मालिकी (स्वामित्व – ownership) में परिवर्तन होता हैं । वस्तु का विक्रय होने से बेचनेवाले से वस्तु की मालिकी का अधिकार खरीदनेवाला प्राप्त करता है ।

3. दो पक्षकार : व्यापार में दो पक्षकारों का होना अनिवार्य होता है । दो पक्षकार नहीं तो व्यापार संभव नहीं बन सकता । कभी कोई एक व्यक्ति अकेला व्यापार नहीं कर सकता । इसलिए व्यापार में क्रेता एवं विक्रेता दो पक्षकार होने अनिवार्य हैं ।

4. आर्थिक प्रवृत्ति : व्यापार भी एक आर्थिक प्रवृत्ति है । आर्थिक प्रवृत्ति में जैसे मुआवजा प्राप्त किया जाता है, ठीक इसी तरह व्यापार में मुआवजे के रूप में लाभ प्राप्त किया जाता है ।

5. विकल्प : व्यापार के अन्तर्गत विकल्प होते हैं । व्यापार में वस्तु के विकल्प में वस्तु या सेवा ली जा सकती है तथा वस्तु या सेवा के विकल्प में मुद्रा ली जाती है ।

6. सातत्य : व्यापार की प्रवृत्ति में सातत्य होना अनिवार्य है । केवल एक या दो बार क्रय या विक्रय होने से व्यापार नहीं कहलाता । अर्थात् क्रय-विक्रय सतत होना चाहिए ।

प्रश्न 10.
व्यापार के प्रकार समझाइए ।
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[I] आंतरिक व्यापार (Internal Trade) :
देश की सीमा के अन्दर विभिन्न शहरों के बीच तथा विभिन्न राज्यों के बीच होनेवाले व्यापार को आन्तरिक व्यापार कहते हैं । जैसे पंजाब का गेहूँ गुजरात में लाना, कश्मीर के सेव अहमदाबाद में लाना तथा जूनागढ़ की केसर केरी बैंगलोर भेजना आदि ।

आन्तरिक व्यापार दो भागों में बाँटा गया है :
1. थोक व्यापारी
2. फुटकर व्यापारी ।

1. थोक व्यापारी (Whole sale Trader) : थोक व्यापार अर्थात् जब बड़े पैमाने में माल या सेवा का विक्रय किया जाये । जिसमें उत्पादक के पास से व्यापारी बड़े पैमाने में खरीदी करके फुटकर व्यापारी को थोडी-थोडी मात्रा में माल का विक्रय करते हैं ।

2. फुटकर व्यापारी (Retail Trader) : जब माल या सेवा का ग्राहक की आवश्यकता के अनुसार उसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में विक्रय किया जाय तो उसे फुटकर व्यापारी के नाम से पुकारा जाता है ।

[II] विदेशी व्यापार (Foreign Trade) :
देश की सीमा के बाहर अन्य किसी भी देश के साथ होनेवाले व्यापार को विदेशी व्यापार कहते हैं । जैसे भारत से चाय इग्लैण्ड भेजना, भारत के व्यापारी द्वारा जर्मनी के व्यापारी के पास से टेलिविजन हेतु कलर ट्यूब मँगाना उसे विदेश-व्यापार कहा जायेगा । विदेश- . व्यापार को तीन भागों में बाँटा गया है :

  • आयात व्यापार (Import Trade) : ऐसा व्यापार जिसमें एक देश के व्यापारी द्वारा दूसरे देश के व्यापारी से माल मंगाये तो उसे आयात व्यापार कहते हैं । जैसे भारत में जापान से यंत्र मँगाना ।
  • निर्यात व्यापार (Export Trade) : जब एक देश के व्यापारी द्वारा अपना माल दूसरे देश के व्यापारी को भेजता अथवा विक्रय करता है, तब उसे निर्यात व्यापार कहते हैं । जैसे गुजरात के आम जर्मनी भेजना है ।
  • पुन: निर्यात (निकास) व्यापार (Re-Export Trade) : अन्य देशों से माल मँगाकर सीधे ही उस माल को किसी दूसरे देश को निर्यात किया जाय उसे पुन: निर्यात व्यापार कहते हैं । उदाहरण के रुप में यंत्र मुम्बई के बन्दरगाह पर मँगाकर उस यंत्र को श्रीलंका भेजना ।

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6. निम्न विधान समझाइए :

प्रश्न 1.
लाभ धन्धे की जीवन-रेखा के समान है ।।
उत्तर :
मनुष्य की जीवन-रेखा उसका हृदय है । अगर हृदय अपना कार्य करना बन्द कर दे तो मनुष्य जिन्दा नहीं रह सकता है, ठीक इसी तरह धन्धे में लाभ होना बन्द हो जाय तो धन्धा लम्बे समय तक नहीं टिक सकता । अन्त में उसे बन्द करना पड़ सकता है । कर्मचारियों को वेतन, अंशधारियों को लाभांश, प्रतिदिन होनेवाले प्रशासनिक खर्च, वितरण-खर्च, यंत्रों एवं सम्पत्तियों की सुरक्षा एवं विकास हेतु खर्च करना पड़ता हैं जो कि लाभ पर ही आधारित होता है । इसलिए लाभ नहीं होगा तो धन्धे में हानि (LoSS) होती रहेगी । अत: धन्धे का अस्तित्व लम्बे समय तक नहीं रह सकता, इसलिए हम यह कह सकते हैं कि लाभ यह धन्धे की जीवन-रेखा के समान हैं ।

प्रश्न 2.
धन्धा सतत चलनेवाली प्रवृत्ति है ।
उत्तर :
धन्धा लाभ के उद्देश्य से की जानेवाली आर्थिक प्रवृत्ति है । यह प्रवृत्ति सतत-निरन्तर होनी चाहिए । वर्षभर के दौरान केवल एक दो बार खरीदी अथवा बिक्री का सौदा हो जाय व उसमें से लाभ मिल जाय तो धन्धाकीय प्रवृत्ति नहीं कहलाती है । जैसे दवाइयों का विक्रेता यदि एक अथवा दो बार दवाई की बिक्री करे तो धन्धा नहीं कहलायेगा । दवाई विक्रेता के द्वारा वर्ष भर नियमित तौर पर दवाइयों की बिक्री करना ही धन्धा कहा जायेगा अर्थात् हम कह सकते हैं कि धन्धा एक सतत चलनेवाली प्रवृत्ति है ।

प्रश्न 3.
पेशेवर व्यवसायियों की फीस का प्रमाण अलग-अलग होता है ।
उत्तर :
प्रत्येक पेशेवर धन्धार्थी का अपने-अपने क्षेत्र में विशिष्ट गुण, डिग्री (पदवी) प्राप्त करना अनिवार्य होता हैं । इन कुशलताओं के द्वारा सेवा प्रदान कर व्यक्ति या पेशेवर व्यक्ति आय करता है । प्रत्येक पेशेवर व्यक्ति की अपनी शैक्षणिक योग्यता तथा प्रशिक्षण अलग-अलग प्रकार का होता है, जिसके आधार पर पेशेवर व्यक्ति फीस वसूल करता है । इसके अलावा एक ही प्रकार के पेशे में भी अनुभव, कार्यशक्ति, कार्य की कमी, विशिष्ट डिग्री, प्रतिस्पर्धा इत्यादि अलग-अलग होने से सभी व्यक्तियों की फीस का प्रमाण
अलग-अलग होता है ।

प्रश्न 4.
सहकारी मण्डली सेवा के उद्देश्य के लिए स्थापित की जाती है ।
उत्तर :
सहकारी मण्डली का मुख्य उद्देश्य सेवा का होता है, लाभ का नहीं । इस संस्था की ओर से अपने सदस्यों का आर्थिक एवं सामाजिक उत्कर्ष सिद्ध करने के लिए सेवा प्रदान करती है । ये सदस्यों को राजगार प्रदान करती हैं । उचित कीमत पर वस्तुओं की आपूर्ति हो सके ऐसी व्यवस्था करती हैं । अर्थात् हम कह सकते हैं, कि सहकारी मण्डली सेवा के उद्देश्य से स्थापित की जाती है ।

प्रश्न 5.
आर्थिक प्रवृत्तियाँ धन्धा तथा वाणिज्य को गतिशील रखती हैं ।
उत्तर :
व्यापार तथा वाणिज्य में वस्तु के उत्पादन से लेकर उसके उपयोग तक की समग्र प्रवृत्तियों का समावेश होता है । उसमें व्यापार की सहायक सेवाएँ जैसे बैंक, वाहन-व्यवहार, बीमा, संदेशा-व्यवहार, गोदाम व प्रतिनिधि इत्यादि का भी समावेश किया जाता है । व्यापारिक लेन-देन की प्रवृत्ति, माल एवं मुसाफिरों का स्थानान्तरण करने के लिए वाहन-व्यवहार की प्रवृत्ति, संदेशा-व्यवहार की प्रवृत्ति, जोखिम के सामने रक्षण की प्रवृत्ति, माल के संग्रह की प्रवृत्ति तथा प्रतिनिधि की सेवा की प्रवृत्ति इत्यादि सभी आर्थिक प्रवृत्तियाँ वाणिज्य की प्रवृत्ति से ही प्रारम्भ रह सकती हैं । इस तरह आर्थिक प्रवृत्ति व्यापार एवं वाणिज्य को गतिशील रखती है ।

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प्रश्न 6.
लाभ धन्धे का एक मात्र उद्देश्य नहीं है ।
उत्तर :
धन्धा लाभ के उद्देश्य से चलता है परन्तु केवल लाभ कमाना ही धन्धे का एक मात्र उद्देश्य नहीं होता । वर्तमान परिस्थिति के अनुसार धन्धे के लाभ के उपरान्त अन्य उद्देश्य भी स्वीकृत हो रहे हैं, जैसे महत्तम सम्पत्ति का सर्जन करना, उचित कीमत पर सेवाएँ देने का उद्देश्य, रोजगार बढ़ाना अथवा बनाये रखने का उद्देश्य, सामाजिक जिम्मेदारी निभाना, प्रतिष्ठा बनाना, देश के विकास में योगदान देना इत्यादि अनेक उद्देश्य स्वीकार किये गए हैं । इस सन्दर्भ में उर्विक के मतानुसार : “जिस प्रकार जीवन का एक मात्र उद्देश्य खाना खाकर पेट भरना ही नहीं होता, ठीक इसी तरह धन्धे का एक मात्र उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता ।”

प्रश्न 7.
लाभ धन्धे का हार्द हैं ।
उत्तर :
धन्धाकीय प्रवृत्ति का मुख्य और अन्तिम उद्देश्य लाभ का है । लाभ किसी भी धन्धे का लक्ष्य हैं । जिस प्रवृत्ति में लाभ कमाने की
वृत्ति न हो उसे धन्धाकीय प्रवृत्ति नहीं कहा जा सकता । व्यापारी किसी भी प्रकार का धन्धा करे फिर वह माल या सेवा का उत्पादन हो या व्यापारी प्रवृत्ति हो व्यक्ति लाभ कमाने की इच्छा रखता है । अगर धन्धे में लाभ कमाने की शक्यता न हो, तो कोई भी व्यक्ति धन्धा करने के लिए आगे नहीं आयेगा । इसलिए लाभ धन्धे के हार्द के समान है ।

प्रश्न 8.
सामाजिक दायित्व का उद्देश्य वर्तमान समय में क्यों अनिवार्य बन गया है ?
उत्तर :
सामाजिक जिम्मेदारी का ख्याल बड़ी औद्योगिक इकाई के संदर्भ में प्रचलित बना है । बड़ी इकाइयाँ यदि केवल लाभ के उद्देश्य से चलाई जायँ तो वह समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है । ऐसी इकाइयों द्वारा समाज के विविध हितों को ध्यान में रखकर कार्य किया जाना चाहिए । इसलिए वर्तमान समय में सामाजिक दायित्व का उद्देश्य समाज के हितों की रक्षा करना भी अनिवार्य बन गया है ।

प्रश्न 9.
वाणिज्य का अर्थ व्यापार की अपेक्षा विशाल अर्थ में है ।
उत्तर :
वाणिज्य का अर्थ व्यापार की अपेक्षा विशाल अर्थ में है, उपरोक्त विधान सत्य है, क्योंकि व्यापार का अर्थ होता है वस्तुओं का क्रयविक्रय करके आय कमाना । जबकि वाणिज्य का अर्थ होता है, व्यापार एवं व्यापार की आनुषंगिक सेवाएँ जैसे बैंक, बीमा, वाहन
ना, वाहन- व्यवहार, संदेशा-व्यवहार, गोदाम की सेवा, प्रतिनिधि की सेवा इत्यादि । व्यापार के अन्तर्गत वस्तुओं की खरीदी एवं बिक्री के माध्यम द्वारा विनिमय संभव है । जबकि वाणिज्य के अन्तर्गत उत्पादित वस्तुओं को अन्तिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने की प्रवृत्तियों का समावेश होता है ।

व्यापार में वाणिज्य का समावेश नहीं होता है । जबकि वाणिज्य में व्यापार का समावेश होता है, क्योंकि व्यापार वाणिज्य का एक अंग है ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वाणिज्य का अर्थ व्यापार की अपेक्षाकृत विशाल होता है ।

प्रश्न 10.
उद्योग वस्तु की स्वरूप-उपयोगिता में वृद्धि करता है ।
उत्तर : उद्योग अर्थात् जमीन में से इच्छित वस्तुओं को खोदकर निकालना, मानवीय तथा यांत्रिक श्रम की मदद से मानव-उपयोगी हो ऐसे
स्वरुप में परिवर्तित करने को उद्योग कहा जाता है । इसके लिए उत्पादन के चार साधन जमीन, श्रम, पूँजी एवं व्यवस्थाकीय ज्ञान
की मदद से प्रकृति-प्रदत्त वस्तु का स्वरूप बदलकर उसे मानव-उपयोगी बनाया जाता है ।

प्रश्न 11.
आनुषंगिक सेवा के बिना व्यापार अधूरा है ।
उत्तर :
व्यापार अर्थात् चीज-वस्तुओं का विनिमय । चीज़-वस्तुओं के विनिमय करने की प्रवृत्ति में व्यापारी प्रवृत्ति वाणिज्य के धड़कते हृदय के समान है । इस प्रवृत्ति में सहायक होने के लिए आनुषंगिक सेवाएँ बैंक, बीमा, वाहन-व्यवहार, संदेशा-व्यवहार, गोदाम एवं प्रतिनिधि जैसे व्यापार की सहायता प्रदान करनेवाली प्रवृत्ति भी वाणिज्य के कार्यक्षेत्र के एक भाग की तरह है । आनुषंगिक सेवाओं के बिना व्यापार की कल्पना नहीं की जा सकती है ।

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प्रश्न 12.
वाणिज्य समग्र विश्व को गतिशील रखता है ।
उत्तर :
वस्तु को जमीन में से खोदकर निकालना, उस पर प्रक्रिया कर यंत्रों एवं मनुष्य की मदद से स्वरूप में परिवर्तन करना और तैयार माल ग्राहकों तक पहुँचाने का कार्य वाणिज्य का है । वाणिज्य की प्रवृत्ति में व्यापार और अन्य सहायक सेवाओं का समावेश होता है । इन प्रवृत्तियों के कारण समस्त विश्व गतिशील रहता है और इसे गतिशील रखने का कार्य वाणिज्य करता है ।

प्रश्न 13.
जैविक उद्योग में व्यक्तिगत देख-रेख आवश्यक है ।
उत्तर :
जैविक उद्योग या संवर्धन उद्योग में सजीवों को पाला जाता है । इसमें फल-फूल के मूल, वृक्ष, बीज, मुर्गी-पालन, मत्स्य-पालन, बतख पालन, पशु-पालन इत्यादि शामिल हैं । इनकी नस्ल में भी सुधार किया जाता है । इन सभी की व्यक्तिगत देख-रेख रखना आवश्यक होता हैं । व्यक्तिगत देखरेख के बिना रोग का फैलाव, गन्दगी का बढ़ना इत्यादि दूषणों से इन जीवों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है । इसलिए जैविक उद्योग में व्यक्तिगत देखरेख रखना अनिवार्य होता है ।

प्रश्न 14.
वाणिज्य को मनुष्य की प्रगति का बैरोमीटर कहा जाता हैं ।
उत्तर :
वाणिज्य मनुष्य-जीवन का एक अनिवार्य अंग बन गया है । व्यापार का क्षेत्र कोई एक शहर या देश तक मर्यादित न रहकर समस्त विश्व एक बाजार बन गया है । आधुनिक मनुष्य-समाज के अस्तित्व का आधार वाणिज्य पर है । आधुनिक समय में मनुष्य स्वयं की विविध आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकता है । एवं स्वयं की सुख-सुविधाओं में वृद्धि करता है । यह वाणिज्य के आभारी हैं । इसीलिए वाणिज्य को मनुष्य की प्रगति का बैरोमीटर कहा जाता है ।

प्रश्न 15.
आंतरिक व्यापार की अपेक्षाकृत विदेश-व्यापार अधिक मुश्किल होता है ।
उत्तर :
आन्तरिक व्यापार देश की सीमाओं के मध्य होता है, जिसमें वित्तीय व्यवहार, वाहन-व्यवहार, भाषा, व्यक्तिगत सम्पर्क इत्यादि के रुप में कोई मुश्किल नहीं होती है । जबकि विदेश-व्यापार देश की सीमाओं के बाहर किया जाता है । अर्थात् अन्य देशों के साथ किया जाता है, ऐसी परिस्थिति में सरकारी नियंत्रण, आयात-निर्यात लाइसन्स, वित्तीय व्यवस्था, भाषा, बैंकिंग, वाहन-व्यवहार जैसी अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं । इसलिए कहा जा सकता है कि आन्तरिक व्यापार की अपेक्षाकृत विदेश-व्यापार मुश्किल होता है ।

7. अन्तर स्पष्ट कीजिए :

प्रश्न 1.
आर्थिक प्रवृत्ति एवं बिन आर्थिक प्रवृत्ति :

आर्थिक प्रवृत्ति (Economic Activity) बिन-आर्थिक प्रवृत्ति (Non-Economic Activity)
1. आर्थिक प्रवृत्ति अर्थात् लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से की जानेवाली प्रवृत्ति । 1. बिन-आर्थिक प्रवृत्ति अर्थात् ऐसी प्रवृत्ति जिनका उद्देश्य लाभ कमाना न हो ।
2. आर्थिक प्रवृत्ति का उद्देश्य आर्थिक लाभ प्राप्त करना होता है। 2. बिन-आर्थिक प्रवृत्ति का उद्देश्य आर्थिक लाभ प्राप्त करना नहीं होता है ।
3. आर्थिक प्रवृत्ति के मुख्य तीन प्रकार होते हैं : (1) धन्धा (2) पेशा (3) नौकरी 3. बिन-आर्थिक प्रवृत्ति को किसी भी भाग में विभाजित नहीं किया गया है ।
4. आर्थिक प्रवृत्ति का प्रमाण अधिक देखने को मिलता है । 4. बिन-आर्थिक प्रवृत्ति का प्रमाण अपेक्षाकृत कम देखने को मिलता है ।
5. आर्थिक प्रवृत्ति में आय की अनिश्चितता एवं हानि का भय बना रहता है । 5. बिन-आर्थिक प्रवृत्ति में ऐसा कोई जोखिम नहीं रहता है ।

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प्रश्न 2.
नौकरी एवं धन्धा :

नौकरी (Employment) धन्धा (Business)
1. नौकरी अर्थात् बौद्धिक, मानसिक या शारीरिक श्रम द्वारा आय प्राप्त करना । 1. धन्धा अर्थात् लाभ के उद्देश्य से की जानेवाली लेन-देन की कोई भी आर्थिक प्रवृत्ति ।
2. नौकरी करने का उद्देश्य निश्चित वेतन प्राप्त करना होता है । नौकरी करनेवाला निश्चित आय प्राप्त करता है । 2. धन्धे का उद्देश्य लाभ कमाना होता है । धन्धे में मालिक आय के रूप में लाभ प्राप्त करता है ।
3. नौकरी करनेवाले मालिक की इच्छानुसार अथवा आदेशा-नुसार कार्य करना पड़ता है । 3. धन्धा करनेवाले स्वयं की इच्छानुसार कार्य करते हैं ।
4. नौकरी में शारीरिक एवं मानसिक सेवा पूर्ण करने का समावेश होता है । 4. धन्धे में उद्योग और वाणिज्य का समावेश होता है ।
5. नौकरी में आय के रुप में वेतन निश्चित एवं नियमित मिलता है । 5. धन्धे में आय के रूप में लाभ अनिश्चित होता है, कई बार नुकसान भी सहन करना पड़ता है ।
6. नौकरी-समय के दौरान नौकरी करनेवाले को जोखिम नहीं उठाना पड़ता है । 6. धन्धे में चोरी, आग, दुर्घटना, लूटपाट इत्यादि जोखिम होते हैं जिसे मालिक स्वयं सहता है ।
7. नौकरी में समय-मर्यादा निश्चित रहती है । 7. धन्धे में समय-मर्यादा निश्चित नहीं रहती है ।

प्रश्न 3.
नौकरी (Employment) एवं पेशा (Profession) :

नौकरी (Employment) पेशा (Profession)
1. निश्चित आय प्राप्त करने के लिए दूसरों के द्वारा सौंपा गया कार्य अर्थात् नौकरी । 1. किसी क्षेत्र में विशिष्ट डिग्री, विशिष्ट ज्ञान, विशिष्ट कुशलता प्राप्त कर उसकी सेवा लोगों को देकर फीस प्राप्त करना अर्थात् पेशा ।
2. नौकरी में कार्य या सेवा के बदले में वेतन मिलता है । 2. पेशे में सेवा के बदले में फीस मिलती है ।
3. नौकरी में निश्चित वेतन निश्चित समय पर मिलता हैं । 3. पेशे में फीस की आय अनिश्चित होती है । उसका आधार पेशेवर व्यक्तियों के ज्ञान व कुशलता पर रहता हैं ।
4. नौकरी करनेवाले को उसके मालिक के द्वारा सौंपे गए कार्य को करना होता है । 4 पेशेवर व्यक्ति स्वयं के ज्ञान व अनुभव के आधार पर सेवा देता है ।
5. नौकरी परावलम्बी प्रवृत्ति हैं । 5. पेशा स्वतन्त्र प्रवृत्ति है ।
6. नौकरी करनेवाले व्यक्ति को वेतन के अलावा ग्रेच्युटी, पेन्शन, प्रोविडन्ड फण्ड, बोनस इत्यादि मिलते हैं । 6. पेशेवर व्यक्ति को फीस की आय के अलावा किसी भी तरह की आय प्राप्त नहीं होती ।
7. नौकरी करनेवालों की सामाजिक प्रतिष्ठा कम होती है । 7. पेशेवर व्यक्तियों की सामाजिक प्रतिष्ठा अधिक होती है ।
8. शिक्षण-संस्था, बैंक, बीमा कम्पनी, कारखाना-मिल, उद्योग-धन्धा अथवा अन्य स्थान पर अलग-अलग पद पर काम करके वेतन प्राप्त करनेवाला नौकर के रूप में पहचाना जाता हैं । 8. डॉक्टर, वकील, चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट, इंजीनियर इत्यादि व्यक्ति पेशेवर व्यक्ति के रूप में पहचाने जाते हैं ।

प्रश्न 4.
धन्धा (Business) एवं पेशा (Profession) :

धन्धा (Business) पेशा (Profession)
1. धन्धा अर्थात् लाभ के उद्देश्य से की जानेवाली कोई भी आर्थिक प्रवृत्ति । 1. किसी व्यक्ति द्वारा अपने विशिष्ट गुण, डिग्री, ज्ञान के द्वारा सेवा देकर फीस प्राप्त करना अर्थात् पेशा ।
2. धन्धा करनेवाले को उत्पादन या वितरण की प्रवृत्ति करनी पड़ती है । 2. पेशेवर व्यक्ति स्वयं की विशिष्ट सेवा लोगों को देता है ।
3. धन्धे का मुख्य उद्देश्य लाभ प्राप्त करना होता है । 3. पेशेवर व्यक्तियों का मुख्य उद्देश्य सेवा प्रदान कर फीस के रूप में आय प्राप्त करना होता है ।
4. धन्धे के लिए कोई विशेष प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है । 4. पेशेवर व्यक्तियों की निश्चित योग्यता तथा निश्चित प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है ।
5. धन्धा करनेवाले का स्वयं का मण्डल हो या न भी हो उसे किसी नियम का पालन करना अनिवार्य नहीं होता है । 5. पेशेवर व्यक्तियों के स्वयं के मण्डल होते हैं । ऐसे मण्डल के द्वारा निश्चित नीति-नियम का पालन करना होता है ।
6. धन्धे का विज्ञापन किया जा सकता हैं । 6. पेशेवर व्यक्तियों का प्राय: विज्ञापन नहीं किया जा सकता है ।

प्रश्न 5.
लाभ, वेतन एवं फीस :

लाभ (Profit) वेतन (Salary) फीस (Fees)
1. क्रय-विक्रय के बदले में प्राप्त वित्तीय आय को लाभ कहते है । 1. मालिक द्वारा तय की गई शर्तों के अधीनस्थ शारीरिक एवं मानसिक काम के बदले में मिलनेवाला वित्तीय मुआवजा अर्थात् वेतन । 1. निश्चित ज्ञान, डिग्री, कुशलता द्वारा दी जानेवाली सेवा के बदले में मिलनेवाली आय अर्थात् फीस ।
2. लाभ धन्धा करनेवाले को मिलता है। 2. वेतन नौकरी करनेवाले को मिलता है । 2. फीस पेशेवर व्यक्ति को मिलती है ।
3. लाभ हमेशा अनिश्चित होता है। 3. वेतन निश्चित होता है । 3. फीस निश्चित होती है ।
4. लाभ नियमित नहीं मिलता हैं । 4. वेतन नियमित मिलता है । 4. फीस सेवाओं की नियमितता पर आधारित है ।
5. लाभ प्राप्त करने हेतु जोखिम उठाने पड़ता है । 5. वेतन प्राप्त करने के लिए शारीरिक अथवा मानसिक श्रम करना पड़ता है । 5. फीस प्राप्त करने के लिए सलाह सूचन की सेवा देनी पड़ती है ।
6. लाभ वस्तु एवं बाजार के परिबल के आधार पर होता है । 6. वेतन का आधार संस्था के नीति-नियमों पर होता है । 6. फीस का आधार पेशेवर व्यक्तियों के ज्ञान एवं कुशलता पर है ।

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8. निम्न संज्ञाएँ समझाइए :

प्रश्न 1.
नौकरी (Employment) :
उत्तर :
नौकरी अर्थात बौद्धिक, मानसिक या शारीरिक श्रम के बदले में आय प्राप्त करने के उद्देश्य से की जानेवाली प्रवृत्ति अर्थात नौकरी ।

प्रश्न 2.
पेशा (Profession) :
उत्तर :
पेशा अर्थात किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करके उस ज्ञान का लाभ समाज के लोगों को सेवा के रूप में देना व बदले में
फीस प्राप्त करना ।

प्रश्न 3.
TEIT (Business) :
उत्तर :
लाभ के उद्देश्य से की जानेवाली कोई भी प्रवृत्ति अर्थात् धन्धा । इसमें मिलनेवाले मुआवजे को लाभ कहते हैं, जो कि अनिश्चित होता है।

प्रश्न 4.
सामाजिक जिम्मेदारी :
उत्तर :
सामाजिक जिम्मेदारी अर्थात् समाज के प्रति जिम्मेदारी को निभाते हुए कार्य करना ।

प्रश्न 5.
आर्थिक प्रवृत्ति (Economic Activity) :
उत्तर :
चीज़-वस्तुओं के विनिमय द्वारा आय प्राप्त करने एवं खर्च करने की प्रवृत्ति को आर्थिक प्रवृत्ति कहते हैं । आर्थिक प्रवृत्ति अर्थात् धन कमाने के उद्देश्य से की जानेवाली प्रवृत्ति ।

प्रश्न 6.
बिन-आर्थिक प्रवृत्ति (Non Economic Activity) :
उत्तर :
ऐसी प्रवृत्तियाँ जिसके पीछे प्रेम, लगाव, ममता, आवेश या भावना होती है, इन प्रवृत्तियों का उद्देश्य धन-प्राप्ति नहीं होता ।

9. निम्नलिखित संक्षिप्त रूपों के विस्तृत रूप लिखिए :

1. B.S.N.L.
Bharat Sanchar Nigam Limited

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 1 धन्धे का स्वरूप, उद्देश्य और कार्यक्षेत्र

2. N.T.C.
National Textile Corporation Limited

3. M.T.N.L.
Mahanagar Telecom Nigam Limited

4. G.S.T.C.
Gujarat State Transport Corporation Limited

5. A.M.T.S.
Ahmedabad Municipal Transport Services

6. G.S.F.C.
Gujarat State Finance Corporation

7. A.M.C.
Ahmedabad Municipal Corporation

8. C.A.
Chartered Accountant

9. MBBS
Bachelor of Medicine and Bachelor of Surgery

10. M.D.
Doctor of Medicine

11. M.N.C.
Multinational Company/Corporation

12. B.D.S.
Bachelor of Dental Surgery

13. M.D.S.
Master of Dental Surgery

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