Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 11 Psychology Chapter 3 मानव विकास Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Psychology Chapter 3 मानव विकास
GSEB Class 11 Psychology मानव विकास Text Book Questions and Answers
स्वाध्याय
1. निम्न प्रश्नों के उत्तर विस्तृत रूप में लिखिये ।
प्रश्न 1.
वृद्धि अर्थात् क्या ? विकास एवं परिपक्वता को समझाईये ।
उत्तर :
‘वृद्धि अर्थात् आकार, कद, वजन और शारीरिक रचना में होनेवाले परिवर्तन ।’
– ‘क्रो एन्ड क्रो’
‘एलिजाबेथ हरलोक’ के मतानुसार बालक के जन्म से पुख्तता प्राप्त करने में मस्तक में दो गुना, छाती में ढाई गुना, धड़ में तीन गुना, हाथ में चार गुना और पैर में पाँच गुना बढ़ौतरी होती है । यह परिवर्तन प्रमाणात्मक होता है । कई बार अंत:स्राव ग्रंथियों के अनियमित स्राव के कारण विकास में अवरोध उत्पन्न होते हैं । जिसके कारण शरीर की ऊँचाई, मोटाई, मस्तक, छोटा-बड़ा आदि प्रकार की विकृतियाँ होती है।
विकास : विकास की प्रक्रिया क्रमिक है लेकिन लगातार चलनेवाली प्रक्रिया है ।
– ‘स्कीनर’
विकास याने व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि सिवाय अन्य पहलुओं में वृद्धि एवं परिवर्तन ।
क्रो एन्ड क्रो के मतानुसार ‘समग्र देहतंत्र में होनेवाला परिवर्तन ही विकास है ।’
इस प्रकार शरीर के विविध अवयवों के सुग्रथन (Integration) द्वारा उम्र बढ़ने के साथ होनेवाला व्यवहार में प्रगतिशील परिवर्तन को विकास कहते हैं । विकास की संकल्पना इस तरह भी समझा सकते है कि शारीरिक वृद्धि के साथ-साथ शरीर में होनेवाले जैविक रसायनिक (Bio-Chemical) परिवर्तन के कारण विविध गुणों में होनेवाला परिवर्तन ही विकास है । जैसे मस्तिष्क की वृद्धि में होनेवाली स्मृति शक्ति, तर्कशक्ति आदि का विकास होता है । विकास वृद्धि के अलावा परिस्थिति और पर्यावरण के समग्र प्रभाव का परिणाम है ।
परिपक्वता : अर्थात् जीवित प्राणी के विविध अंग-उपांगों का सम्पूर्ण विकास करने की प्राकृतिक प्रक्रिया । 18 से 21 वर्ष तक व्यक्ति वयस्क हो जाता है । बालक जिस किसी कार्य करने के लिए जिस उम्र में योग्य हो जाता है शारीरिक एवं मानसिक रूप से उस कार्य को करने सफल होता है तो वह उसकी परिपक्वता कहलाती है । स्त्री-पुरुष के प्रजनन कोषों के द्वारा या संयोजन से फलित कोषों का भौमितिक क्रम से वृद्धि-विकास होता है । जिसके परिणाम से 280 दिन में बालक के जन्म की परिपक्वता प्राप्त होती है । छ महिने में बालक कुछ पकड़ना सीखता है । लेकिन उस समय वह लिखने की तालीम के लिए परिपक्व नहीं होता है ।
प्रश्न 2.
विकास को प्रभावित करनेवाले कारक के रूप में अनुवंश को समझाईये ।
उत्तर :
विकास को प्रभावित करनेवाले कारक मुख्य दो हैं :
(1) अनुवंश और
(2) पर्यावरण
अनुवंश : एक पेढ़ी से दूसरी पेढ़ी को मिलनेवाले जैविक लक्षण अर्थात् अनुवंश । गर्भाधान के समय माता-पिता के द्वारा सन्तान को प्राप्त होनेवाले 23-23 कुल 46 रंगसूत्र (Chromosomos) जिनमें जनीन तत्त्व होते है । ये जनीनतत्त्व (Genes) अनुवंश वाहक हैं । यही जनीनतत्त्व बालक के शरीर में कोषों की रचना में समा जाते हैं । एक ही जाति के मूलभूत कोषों में जनीनतत्त्व एकसमान होते हैं ।
मानवी के द्वारा मानवी और प्राणी के द्वारा प्राणी का ही जन्म होता है । मानव के जनीन कोषों में से मानव गर्भ (Humanembryo) रचने से गर्भ को पर्यावरण प्राप्त होने से उसका विकास होता है । जिस किसी जनीन कोषों के द्वारा जिस किसी जाति का उद्भव होता है । “Like tends to beget almost like.” मानव मानव बालक को जन्म देता है । लेकिन बालक के जन्मदाता माता-पिता जैसे सम्पूर्ण नहीं परन्तु काफी कुछ उनके जैसा होता है । एक ही माता-पिता के संतान सभी एक जैसे नहीं होते है । सभी में व्यक्तिगत भिन्नता दिखाई देती है । जनीनतत्त्व एवं उनके संयोजन के गुणधर्म और लक्षणों को दो भागों में बाँटा जा सकता है ।
(a) अप्रकट अथवा प्रच्छन्न अनुवंश (Genotype) : जनीन तत्त्व के संयोजन के जो गुणधर्म एवं लक्षण होते है वे बालक की आंतरिक रचना में होते है । वे अनुवंश प्रकार नहीं होते हैं ।
(b) प्रकट अथवा प्रभावी अनुवंश (Phenotype) : व्यक्ति के होनेवाले प्रकट लक्षण अथवा गुणधर्म प्रकट या प्रभावी अनुवंश कहलाता है । उदा. ऊँचाई, वजन, आँख का रंग, बाल, चमड़ी का रंग शारीरिक रचना आदि ।
प्रश्न 3.
‘जीन पियांजे’ के बोधात्मक विकास के क्रमिक एकमों को समझाईये ।
उत्तर :
व्यक्ति के जन्म से प्रारंभ होकर जीवनभर बोधात्मक विकास की प्रक्रिया चलती रहती है । स्वीस मनोवैज्ञानिक जीन पियांजे (Jean Piaget) के सिद्धांत में बोधात्मक विकास की स्पष्टता बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । जन्म से बारह वर्ष तक के क्रमिक एकमों को चार भागों में बाँटा गया है ।
(कोष्टक 3.1)
पियांजे के मतानुसार बोधात्मक विकास के एकम
उम्र | क्रमिक एकम | लक्षण |
जन्म से दो वर्ष | सांवेदनिक कारक का एकम | प्रतिक्षिप्त क्रिया करनेवाला बालक प्रतिकात्मक विचारने लगता है । संवेदनिक अनुभवों को भौतिक क्रिया के साथ जोड़कर विश्व को पहचानता है । स्थायी ख्याल का प्रारंभ । |
दो से सात वर्ष | पूर्वक्रियात्मक एकम | बालक का विचार अहमकेन्द्री होने से दूसरों का विचार नहीं करता है । विश्व को शब्द एवं प्रतिमा के द्वारा निर्देशों से समझने का प्रारंभ करता है । |
सात से बारह वर्ष | मूर्त (पदार्थलक्षी) क्रियात्मक एकम | मूर्त पदार्थ एवं घटनाओं के विषय में तार्किक रूप से विचार एवं समझ विकास होती है । पदार्थों का वर्गीकरण तथा पदार्थ में परिवर्तन होने के बाद भी उसके लक्षणों के विषय में स्थायी समझ का विकास होता है । |
बारह वर्ष से आगे अमूर्त | अमूर्त क्रियात्मक एकम | बालक अमूर्त विचार कर सकता है । उसमें तार्किक और व्यवस्थित चिंतनात्मक विचारशक्ति बढ़ती है । |
1. सांवेदनिक कारक का एकम (Sensori-Motor stage) :
जन्म से दो वर्ष जिसमें बालक विविध संवेदन एवं चेष्टाएँ देखना, सुनना, स्वाद, स्पर्श, सुंघना आदि अनुभव करता है । प्रारंभ में केवल चूसने की क्रिया करता है । इसके अलावा किसी वस्तु को तोड़ना-जोड़ना, ऊँचा करना, नीचे लाना आदि ।
2. पूर्वक्रियात्मक एकम (Pre-operational stage) : दो से सात वर्ष के बीच बालक पदार्थ का आकार एवं उसको व्यवस्थित रखना इसका ध्यान रखता है । आकार की दृष्टि से समान मानता हैं उसकी जगह दो गोलाकार में से एक लम्बगोल हो तो उसका वजन अधिक समझता है ।
3. मूर्त (पदार्थलक्षी) क्रियात्मक एकम (Concerete operational stage) : सात से बारह वर्ष हाथ में पकड़नेवाली वस्तुओं के बारे में ही सोचता है, वर्गीकरण कर सकता है । देखी गयी वस्तुओं के बारे में जवाब दे सकता है । लेकिन अहिंसा, प्रमाणिकता आदि अमूर्त विचार नहीं कर सकता है ।
4. अमूर्त क्रियात्मक एकम (Abstract operational stage) :
इस समय तर्क करने की शक्ति का विकास होता है । इस समय तार्किक-विचारणा एवं अनुमान संभव होता है । स्वच्छता, स्वतंत्रता, लोकशाही का विचार करने लगते है । परन्तु सभी इस विषय में समान समझ शक्ति नहीं रख सकते हैं ।
प्रश्न 4.
फ्राईड के मनोजातीय विकास के सिद्धांतों को समझाईये ।
उत्तर :
फ्राईड के अनुसार विकास की अवस्थाएँ मनोजातीय (Psychosexual) विकास की ही अवस्थाएँ है । विकास की इन अवस्थाओं
के दरम्यान व्यक्ति अपने शरीर के अवयवों के द्वारा होनेवाली प्रवृत्तियों से आनंद प्राप्त करता है, जो निम्नलिखित है :
(1) मुखकेन्द्री अवस्था
(2) गुदाकेन्द्री अवस्था
(3) शिश्नकेन्द्री अवस्था
(4) सुप्त अवस्था
(5) वयस्क अवस्था (पुख्त शिश्नकेन्द्री अवस्था)
(1) मुखकेन्द्री अवस्था : जन्म से दो वर्ष की इस अवस्था में बालक मुँह के द्वारा आनन्द प्राप्त करता है । बालक होठ एवं जीभ के द्वारा उत्तेजना से सुख की प्राप्ति करता है । इस अवस्था में कुछ भी हाथ में आने से बालक मुँह में ले जाता है, चूसने का आनंद प्राप्त करता है । बाद में यह आनंद आनंद में परिवर्तन के रूप में हो जाती है जैसे पेन्सिल पेन, अन्य वस्तु मुँह में रखना, चिंगम चबाना या पान मसाला आदि की आदत मुखकेन्द्री ही है ।
(2) गदाकेन्द्री अवस्था : फ्राईड के अनुसार यह अवस्था दूसरे, तीसरे वर्ष में विकसित होती है । बालक की इस काम शक्ति को लिबिड़ो (Libido) के रूप में जाना जाता है, जो मल-मूत्र विसर्जन से जुड़ी हुई है । अवयवों के उत्तेजन से बार-बार बालक अपने जातीय अंगों का स्पर्श भी करता है । माता-पिता अनुशासन के द्वारा बालक की इन प्रवृत्तियों पर संयम करने का प्रयत्न करते है ।
(3) शिश्नकेन्द्री अवस्था : इस अवस्था में बालक की कामशक्ति उसके जातीय अंगों के उत्तेजना में केन्द्रित हो जाती है । साथ ही जातीय अंगों का विकास का भी प्रारंभ होता है । बालक अपने अंगों का स्पर्श एवं उत्तेजना द्वारा आनंद प्राप्त करता है । यह अवस्था तीन से छ वर्ष के अंतर्गत होती है । विजातीय व्यक्ति का सहयोग एवं समझ न होने से स्वयं ही आनंद प्राप्त करता है ।
(4) सुप्त अवस्था : इस अवस्था में बालक 6 से 12 वर्ष दरमियान काम शक्ति के विराम अवस्था के रूप में जाना जाता है । जिसमें बालक शारीरिक प्रवृत्ति के आनंद के बदले बौद्धिक प्रवृत्ति द्वारा आनंद प्राप्त करता है । इस अवस्था में वह अपने सम वयस्क बालकों के साथ मिलकर रहना पसंद करता है । इस अवस्था में बालक को बौद्धिक तथा सामाजिक दोनों प्रकार के विकास को वेग मिलता है, जो सुसमायोजित विकास के लिए आवश्यक है । इस अवस्था का महत्त्वपूर्ण लक्षण सजातीय आकर्षण है । जिसमें बालक लड़के व लड़कियाँ अपने-अपने सजातीय समूह में रहना पसंद करते हैं । यदि इस अवस्था में सम्बन्धों में विकृति आ जाये तो सजातीयता की विकृति उत्पन्न होती है जिसके कारण समाज में समायोजन में परेशानी उत्पन्न हो सकती है ।
(5) वयस्क (पुख्त) शिश्नकेन्द्री अवस्था : फ्राईड इस अवस्था को कामशक्ति के विकास की अंतिम अवस्था के रूप में प्रस्तुत करते हैं । यह अवस्था सामान्य रूप से तरुणावस्था से प्रारंभ होती है । लड़कों में 13, 14 वर्ष तथा लड़कियों में 12, 13 वर्ष से प्रारंभ होती है । इस अवस्था में लड़के-लड़कियाँ एकदूसरे के साथ मित्रता रखने का आकर्षण और स्थायी मित्रता हो जाय तो शादी में परिणित हो जाती है । यदि इस अवस्था में विजातीय व्यक्ति को स्वीकार कर ले तो सहज रूप से सामाजिक विकास हो सकता है अन्यथा विजातीय व्यक्ति की उपस्थिति में मानसिक प्रतिकूलता महसूस करते है ।
प्रश्न 5.
एरिक-ऐरिक्सन के जीवन विकास के क्रमिक एकमों को समझाईये ।
उत्तर :
एरिक्सन के विकास के सिद्धांत फ्राईड के ख्यालों पर आधारित है, जो निम्नलिखित है :
(1) विश्वास विरुद्ध अविश्वास
(2) स्वायत्तता विरुद्ध शर्म और शंका
(3) पहलवृत्ति विरुद्ध दोष भावना
(4) उधमशीलता विरुद्ध लघुता
(5) स्व पहचान विरुद्ध भूमिका में असमंजस
(6) आत्मीयता विरुद्ध अकेलापन
(7) उत्पादकता विरुद्ध निष्क्रियता
(8) सुग्रथितता विरुद्ध हताशा
आगे इनकी क्रमश: चर्चा करेंगे ।
(1) विश्वास विरुद्ध अविश्वास : बालक के जीवन के प्रथम वर्ष में अविश्वास की भावना उत्पन्न होती है । शारीरिक सुख चैन की भावना एवं भय की भावना पर आधारित है । यदि बालक की आवश्यकताओं के प्रति माता-पिता सजग हो तो बालक में विश्वास उत्पन्न होता है । बालक में दुनिया के प्रति सुन्दर एवं शांति की भावना उत्पन्न होती है ।
(2) स्वायत्तता विरुद्ध शर्म एवं शंका : शिशु के दूसरे वर्ष के प्रारंभ में बालक में संकल्पना एवं स्वतंत्रता का भाव उत्पन्न होता है तो वह स्वयं अपना ध्यान रखता है । यदि उसे रोका जाय तो या शिक्षा की जाय तो वह शर्मिला, शंकाशील एवं संकोचशील बनने की संभावना रहती है । माता-पिता को समझपूर्वक सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए ।
(3) पहलवृत्ति विरुद्ध दोष की भावना : शिशु जब बालमंदिर में पढ़ने जाता है तब अपनी वस्तुओं का ध्यान रखना, अन्य बच्चों से झगड़ने में सामना करना, अपनी जिम्मेदारी की भावना तथा अपने आप उपाय करना इस स्थिति में माता-पिता को उनके कार्य में बिना विक्षेप के निरीक्षण करना चाहिए नहीं तो उसमें दोष की भावना उत्पन्न होती है ।
(4) उधमशीलता विरुद्ध लघुता : प्राथमिक शाला के समय में बालक नये ज्ञान प्राप्त करना, बौद्धिक शक्ति का विकास तथा अपनी क्षमता के अनुसार परिणाम प्राप्त न हो तो लघुता ग्रन्थि उत्पन्न होती है । इस समय शिक्षक उसकी क्षमता में विश्वास व्यक्त कर प्रोत्साहित करे यह आवश्यक है ।
(5) स्व पहचान विरुद्ध भूमिका के विषय में असमंजस : तरुणावस्था या मुग्धावस्था के समय बालक अपने व्यक्तित्व की पहचान के लिए क्या करना चाहिए आगे भविष्य के प्रश्नों के विषय में माता-पिता की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । उसे मार्गदर्शन दें तथा स्व अनुभवों के द्वारा उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन एवं योग्य मार्गदर्शन प्रदान करे अन्यथा बालक असमंजस, भूमिका रहित एवं अनिर्णित स्वभाववाला बन सकता है ।
(7) उत्पादकता विरुद्ध निष्क्रियता : मध्यवस्था में व्यक्ति व्यवसाय में स्थिर होने का प्रयास करता है तथा स्थिर सम्बन्ध एवं जीवन हेतुपूर्ण बने ऐसे संजोग न होने पर, निष्फलता प्राप्त होने पर स्थगितता या निष्क्रियता की ओर आगे चला जाता है ।
(8) सुग्रथितता विरुद्ध हताशा : जीवन की पहले की अवस्था में व्यक्ति प्रवृत्तिहीन होने से स्वयं जीवन के लेखा-जोखा, सफलता निष्फलता को देखकर सफल रहा हो तो संतोष और निष्फल रहा हो तो नकारात्मक भावना, विषाद एवं हताशा अनुभव करता है । इस एकम में व्यक्ति हकारात्मक विचार एवं मुश्किलों का सामना स्वस्थ्य मस्तिष्क द्वारा करे तो जीवन का विकास अच्छी तरह हो सकता है ।
प्रश्न 6.
विकास की प्रक्रिया में अनुवंश के अलावा अन्य प्रभावित करनेवाले कारकों को समझाईये ।
उत्तर :
विकास की प्रक्रिया में अनुवंश के अलावा निम्न कारकों का महत्त्वपूर्ण योगदान है :
(1) जैविक कारक
(2) बोधात्मक कारक
(3) सामाजिक कारक ।
(1) जैविक प्रक्रिया : विकास की प्रक्रिया में मुख्य आधार जनीन तत्त्व पर आधारित है । यह जैविक प्रक्रिया है । जिसमें माता पिता के द्वारा अनुवंश जनीन तत्त्वों के रूप में प्राप्त होता है ।
उदा. शरीर का बढ़ना, मधुमेह का रोग होना, हृदय रोग होना यह जैविक प्रक्रिया के एक भाग के रूप में दिखायी देता है ।
(2) बोधात्मक प्रक्रिया : विकास में होनेवाले कितने ही परिवर्तन चिन्तन, अनुभूति, समस्या समाधान की समझ, भाषा प्रयोग आदि मनोव्यापारों के साथ जुड़े होते है । इस प्रक्रिया को बोधात्मक प्रक्रिया कहते हैं । उपस्थित संजोगों में व्यक्ति का व्यवहार, व्यक्ति के निराकरण के दरम्यान भाषा का प्रयोग उसमें इस तरह की बातें प्रतिबिम्बित होती है ।
उदा. रास्ते में किसी व्यक्ति के वाहन के टकराने से उग्र स्वभाव की व्यक्ति ‘अन्धा है दिखाई नहीं देता’ ऐसा कहेगा, शांत स्वभाव का व्यक्ति माफी मांग लेता है । ऐसी घटना में अलग-अलग व्यक्ति अपने बोधात्मक विकास के अनुसार भाषा का उपयोग करते है । एक ही प्रश्नपत्र में हरेक छात्र के जवाब एक जैसे नहीं होते हैं । अत: व्यक्ति बोधात्मक विकास के अनुसार क्रिया करता है ।
(3) सामाजिक आवेगिक प्रक्रिया : व्यक्ति के विकास में सामाजिक पर्यावरण का भी योगदान होता है । एक ही माता-पिता की दो सन्तानें अलग-अलग पर्यावरण में लालन-पालन होने से दोनों के अलग-अलग गुण लक्षण दिखाई देते है । दो जुड़वा बालकों में एक का पालन-पोषण भारत में और एक का अमेरिका में हुआ हो तो एक ही अनुवंश मिलने के बाद भी दोनों के सामाजिक आवेगिक प्रभाव अलग-अलग दिखाई देता है । दो बालकों में भावना भेद रखने पर भी दोनों के व्यक्तित्व में भी प्रभाव दिखाई देता है । इस तरह बालक के विकास में सामाजिक आवेगिक प्रभाव दिखाई देता है ।
2. संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये ।
(1) विकास प्रक्रिया :
उत्तर :
विकास की प्रक्रिया जीवनभर चलनेवाली प्रक्रिया है । विकास के लिए बुद्धि अनिवार्य है । शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तनों के संयोजन से विकास होता है । विकास सर्वांगी होता है । विकास का मापन प्रत्यक्ष नहीं परोक्ष रूप से हो सकता है । अनुवंश एवं पर्यावरण विकास को प्रभावित करते है । विकास एकपूर्णता एवं परिपक्वता की तरफ की गति है । विकास शारीरिक घटना नहीं परन्तु मानसिक व्यापार द्वारा क्रियाशील इच्छित वर्तन करने की शक्ति है । विकास जीवित शरीर में अमुक अंतिम परिस्थिति के प्रति लगातार होनेवाला परिवर्तन है ।
(2) पियांजे का पूर्वक्रियात्मक एकम :
उत्तर :
मनोवैज्ञानिक पियांजे ने बोधात्मक विकास के क्रमिक चार एकम प्रस्तुत किये है जिनमें से उपरोक्त एकम एक है । दो से सात वर्ष की उम्र में पियांजे इस एकम को मानते हैं । इस अवस्था में बालक पदार्थ के आकार एवं उसे निश्चित जगह पर या योग्य स्थान पर रखना केन्द्रबिन्दु समझता है ।
पदार्थ के वजन का अनुपात नहीं लगा सकता है । बाह्य आकार के आधार पर उनकी समानता समझता है । लेकिन दो पदार्थों में उनका आकार अलग-अलग हो तो उन्हें अलग-अलग समझना है । एक गोल तथा एक लम्बगोल हो तो लम्बगोल को अधिक वजनवाला समझ लेता है ।
(3) सामाजिक आवेगिक प्रक्रिया :
उत्तर :
व्यक्ति के विकास में सामाजिक आवेगिक क्रिया का महत्त्वपूर्ण योगदान है । माता-पिता के दो बालकों का अलग-अलग पर्यावरण में पालन-पोषण हो तो दोनों के गुण-लक्षण अलग-अलग दिखाई देते है । घर में और किसी संस्था में घोषित बालकों के वर्तन (व्यवहार) अलग-अलग होते है । दो समान अनुवंश प्राप्त एक ही माता-पिता की संतानों का अनुवंश अलग-अलग स्थान भारत दूसरा अमेरिका का हो तो सामाजिक-आवेगिक प्रभाव अलग दिखाई देते है । या दो बालकों में भावना का भेद रखा जाने पर । भी उसका प्रभाव सीधा उनके व्यक्तित्व पर दिखाई देता है ।
(4) दुर्गानन्द सिंहा का प्रतिमान :
उत्तर :
दुर्गानन्द सिंहा ने बालकों के विकास के मुख्य तीन विभाग किये हैं । घर, पाठशाला एवं समवयस्क समूह । उपरोक्त तीनों विभाग बालकों को शारीरिक, सामाजिक तथा अन्य व्यक्तियों के साथ आंतरक्रिया एवं बाह्य चेष्टाओं के लिए आवश्यकताएँ पूर्ण करना है ।
उसका विस्तार आवास स्थल का भौतिक, भौगोलिक, सामाजिक स्तर (जाति, धर्म, मान्यताएँ) तथा बालक को प्राप्त होनेवाली सुविधाओं तक का है । इन तमाम पर्यावरण की घटनाओं का प्रभाव बालक के विकास के प्रकट लक्षणों में दिखाई देता है । प्रथम प्रभाव बालक का घर, भौतिक अवकाश और सामग्री वहाँ का पर्यावरण रहन-सहन, सुख-सुविधाएँ खेलकूद के साधन, अड़ोस-पड़ोस के लोग आदि उसके बाद बालक पाठशाला जाता है । उसकी पाठशाला, शिक्षक, माध्यम शिक्षक एवं विद्यार्थी के सम्बन्ध व अभ्यास के विषयों का प्रभाव बालक पर पड़ता है । उसके बाद समवयस्क मित्रों में, स्कूल के मित्र, घर के पास के मित्र, उनका रहनसहन, उसका भोजन, कपड़े, विचारों की आंतरक्रिया तमाम प्रकार के बालक का संस्थाकीय सन्निवेश तत्त्वों का प्रभाव बालक पर पड़ता है । जिसकी आकृति 3.2 में प्रभाव देखा गया है ।
(5) कोहलवर्ग के नैतिक विकास के सिद्धांत :
उत्तर :
व्यवहार की नैतिकता एवं अनैतिकता के विषय में कोहलबर्ग ने बालक से वयस्क व्यक्ति के निर्णयों के अलग-अलग एकमों से पसार होकर संशोधन द्वारा निम्न निष्कर्ष प्रस्तुत किये ।
एक बीमार स्त्री मृत्यु के करीब थी । डॉक्टर ने उसका निरीक्षण करके कहा कि यह एक दवा से बच सकती है जिसे बनानेवाला एवं बेचनेवाले व्यक्ति दवा बनाने में 200/- डॉलर खर्च किये । अब उसमें से थोड़ी दवा देने के लिए 2000/- डॉलर मांग रहा था । बीमार स्त्री के पति ने लोगों से उधार मांग कर आधे पैसे देकर दवा की मांग की तथा आधे पैसे बाद में देने को कहा परन्तु डॉक्टर ने कहा कि मैंने यह दवा पैसे कमाने के लिए बनायी है मैं ऐसे नहीं दे सकता ।
बीमार स्त्री के पति ने दुकान तोड़कर दवा ले ली । कहानी पढ़ने के बाद कोहलवर्ग ने प्रयोग पात्रों से प्रश्न किया कि दवा चुराना योग्य था या अयोग्य ।
प्रथम पूर्व नैतिक कक्षा में बदला या शिक्षा की दृष्टि से व्यवहार की योग्यता निश्चित की जाती है । दूसरी परम्परागत कक्षा में व्यवहार दूसरे लोगों को कैसा लगेगा ? उसे योग्य या अयोग्य माना जाता है । जिसका नैतिक विकास स्वयं स्वीकार करनेवाला तीसरी कक्षा तक हुआ हो ऐसा व्यक्ति नैतिक सिद्धांतों का अंतरीकरण करता है । समाज का हित किसमें है ? उसके आधार पर व्यवहार की योग्यता निश्चित करता है । इस तरह कोहलवर्ग ने नैतिकता का त्रिस्तरवाद सिद्धान्त दिया । तीनों स्तरों का एकदूसरे पर प्रभाव दिखाई देता है । जिसके द्वारा बालक का समग्र नैतिक विकास होता है । यह विकास परागति (उल्टी दिशा में) प्रभाव नहीं पड़ता । बौद्धिक विकास प्राप्त बालक अविकसित दिशा में वापस नहीं जाता है ।
3. निम्न प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिये ।
प्रश्न 1.
अनुवंश अर्थात् क्या ?
उत्तर :
गर्भाधान के समय माता-पिता के द्वारा सन्तान को प्राप्त 23-23 = 46 रंगसूत्र । जिनमें जनीनतत्त्व होते है । यही जनीनतत्त्व अनुवंश के वाहक हैं ।
प्रश्न 2.
प्रकट (प्रभावी) अनुवंश क्या है ?
उत्तर :
उँचाई, वजन, आँखों का रंग, बाल, चमड़ी का रंग, शारीरिक गठन उपरोक्त व्यक्ति के प्रकट लक्षण या गुणधर्म प्रकट अनुवंश है ।
प्रश्न 3.
अप्रकट अनुवंश किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जनीन तत्त्वों के संयोजन से बालक के गुण एवं लक्षण तथा जो आंतरिक रचना होती है जो अनुवंश के द्वारा प्रकट नहीं होती उसे अप्रकट या प्रच्छन्न अनुवंश कहते हैं ।
प्रश्न 4.
विकास को स्पष्ट करनेवाले सिद्धांतों को समझाईये ।
उत्तर :
विकास एक गुणात्मक परिवर्तन है । परिपक्वता के लक्ष्य की ओर ले जानेवाली, क्रमबद्ध, सुसंवादी और प्रगत्यात्मक परिवर्तन है ।
- विकास क्रमिक प्रक्रिया है ।
- विकास लगातार चलनेवाली प्रक्रिया है ।
- विकास पूरे देहतंत्र का परिवर्तन है ।
प्रश्न 5.
पियांजे के मतानुसार विकास के बोधात्मक एकमों के नाम लिखिए ।
उत्तर :
- सांवेदनिक कारक – जन्म से दो वर्ष
- पूर्व क्रियात्मक कारक – दो से सात वर्ष
- मूर्त (पदार्थलक्षी) कारक – सात से बारह वर्ष
- अमूर्त क्रियात्मक कारक – बारह वर्ष के बाद
प्रश्न 6.
पूर्वक्रियात्मक एकम का पियांजे के आधार पर उदाहरण दीजिये ।
उत्तर :
दो से सात वर्ष के दरम्यान बालक समान आकारवाली वस्तुएँ या पदार्थ को एकसमान समझता है । परन्तु आकार बदलने पर। वह नहीं समझ सकता है । यदि गोलाकार के साथ एक लम्ब गोलाकार हो तो उसका वजन अधिक समझने लगता है ।
प्रश्न 7.
फ्रॉईड के मनोजातीय विकास के सिद्धांतों की अवस्था के नाम लिखिए ।
उत्तर :
- मुखकेन्द्री अवस्था
- गुदाकेन्द्री अवस्था
- शिश्नकेन्द्री अवस्था
- सुप्त अवस्था
- वयस्क शिश्नकेन्द्री अवस्था ।
प्रश्न 8.
मुखकेन्द्री अवस्था किसे कहते हैं ?
उत्तर :
जन्म से दो वर्ष के समय के दौरान बालक मुँह के द्वारा आनंद प्राप्त करता है । जीभ, होठ के द्वारा अंगूठा चूसना या मुँह में रखकर उत्तेजना द्वारा आनंद प्राप्त करता है ।
प्रश्न 9.
गुदाकेन्द्री अवस्था किसे कहते हैं ?
उत्तर :
दूसरे, तीसरे वर्ष में कामशक्ति लिबिड़ो (Libido) के रूप में पहचानी जाती है, जो मल-मूत्र विसर्जन से जुड़ी हुई है ।
प्रश्न 10.
एरिक-एरिक्सन के जीवन विकास के सिद्धांत लिखिये ।
उत्तर :
- विश्वास विरुद्ध अविश्वास
- स्वयत्तता विरुद्ध शर्म-शंका
- पहेलवृत्ति विरुद्ध दोष की भावना
- उद्यमशील विरुद्ध लघुता
- स्व पहचान विरुद्ध भूमिका में असमंजस
- आत्मीयता विरुद्ध अकेलापन
- उत्पादकता विरुद्ध निष्क्रियता
- सुग्रथितता विरुद्ध हताशा ।
प्रश्न 11.
दुर्गानंद सिंहा के प्रतिमान के आधार पर बालक के विकास पर प्रभाव डालनेवाले कारक ।
उत्तर :
दुर्गानन्द सिंहा के प्रतिमान के आधार पर बालक के विकास पर निम्न कारकों का प्रभाव है :
- सामान्य भौतिक पर्यावरण
- संस्थाकीय रचना
- सामान्य सुविधा
4. निम्न प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिये ।
प्रश्न 1.
वृद्धि अर्थात् क्या ?
उत्तर :
वृद्धि अर्थात् शरीर के कद, आकार और रचना में होनेवाला परिवर्तन ।
प्रश्न 2.
विकास अर्थात् क्या ?
उत्तर :
विकास एक गुणात्मक परिवर्तन है, जो परिपक्वता के लक्ष्य की ओर ले जानेवाली क्रमबद्ध, सुसंवादी और प्रगत्यात्मक परिवर्तन है ।
प्रश्न 3.
परिपक्वता अर्थात् क्या ?
उत्तर :
परिपक्वता अर्थात् जीवित प्राणी के विविध अंग-उपांगों का सम्पूर्ण (सर्वांगी) विकास सिद्ध करने की प्राकृतिक प्रक्रिया है ।
प्रश्न 4.
विकास को प्रभावित करनेवाले कारक ?
उत्तर :
विकास पर प्रभाव डालनेवाले मुख्य दो कारक है :
- अनुवंश और
- पर्यावरण ।
प्रश्न 5.
जैविक प्रक्रिया किसे कहते हैं ?
उत्तर :
विकास मुख्य रूप से जनीन तत्त्वों पर आधारित है, जो एक जैविक प्रक्रिया है ।
प्रश्न 6.
पर्यावरण का प्रभाव अर्थात क्या ?
उत्तर :
व्यक्ति के विकास पर जो स्थान, भौगोलिक परिस्थिति में व्यक्ति निर्वाह करता है उसका प्रभाव पड़ता है ।
प्रश्न 7.
बोधात्मक विकास का सिद्धांत कौन से मनोवैज्ञानिक ने प्रदान किया ?
उत्तर :
‘पियांजे’ नामक मनोवैज्ञानिक ने बोधात्मक विकास का सिद्धांत प्रदान किया है ।
प्रश्न 8.
नैतिक विकास के सिद्धांत किस मनोवैज्ञानिक ने दिया ?
उत्तर :
‘कोहलवर्ग’ नामके मनोवैज्ञानिक ने नैतिक विकास का सिद्धांत प्रदान किया है ।
प्रश्न 9.
विश्वास विरुद्ध अविश्वास एकम की चर्चा किस मनोवैज्ञानिक ने की है ?
उत्तर :
‘एरिक एरिक्सन’ नाम के मनोवैज्ञानिक ने उपरोक्त एकम की चर्चा की है ।
प्रश्न 10.
अमूर्त क्रियात्मक एकम किस उम्र में (वर्ष) में दिखायी देता है ?
उत्तर :
बारह वर्ष के बाद अमूर्त क्रियात्मक का एकम दिखायी देता है ।
प्रश्न 11.
बोधात्मक विकास कब से कब तक होता है ? ।
उत्तर :
व्यक्ति की बोधात्मक विकास की प्रक्रिया जन्म से प्रारंभ होकर जीवनपर्यंत तक चलती रहती है ।
प्रश्न 12.
व्यक्ति की विकास की अवस्था फ्राईड के अनुसार क्या है ?
उत्तर :
फ्राईड के अनुसार ‘मनोजातीय’ अवस्था ही व्यक्ति की विकास की अवस्था है ।
प्रश्न 13.
एरिक एरिक्सन के अनुसार जीवन विकास के कितने सोपान है ?
उत्तर :
एरिक्सन के अनुसार जीवन विकास के आठ सोपान है ।
प्रश्न 14.
बालक में दोष की भावना कब उत्पन्न होती है ?
उत्तर :
बालमंदिर के अध्ययन के दौरान बालक की प्रवृत्ति पर अधिक नियंत्रण करने से दोष की भावना उत्पन्न होती है ।
5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर योग्य विकल्प पसंद करके लिखिये ।
प्रश्न 1.
‘वृद्धि अर्थात् कोषीय गुणाकार’ ऐसा किसने कहा ?
(अ) क्रो एन्ड क्रो
(ब) फ्रेन्ड
(क) ऑलपोर्ट
(ड) वॉटसन
उत्तर :
(ब) फ्रेन्ड
प्रश्न 2.
विकास को गुणात्मक परिवर्तन किसने कहा ?
(अ) क्रो एन्ड क्रो
(ब) फ्रेन्ड
(क) ऑलपोर्ट
(ड) हरलोक
उत्तर :
(ड) हरलोक
प्रश्न 3.
विकास को प्रभावित करनेवाले कारक कितने है ?
(अ) एक
(ब) दो
(क) तीन
(ड) चार
उत्तर :
(ब) दो
प्रश्न 4.
व्यक्तियों में दिखनेवाले प्रकट लक्षण कैसा अनुवंश है ?
(अ) प्रभावी
(ब) प्रच्छन्न
(क) निर्णायक
(ड) मजबूत
उत्तर :
(अ) प्रभावी
प्रश्न 5.
दुर्गानन्द सिन्हा ने बालक के विकास को कितने भागों में बाँटा है ?
(अ) एक
(ब) दो
(क) तीन
(ड) चार
उत्तर :
(क) तीन
प्रश्न 6.
जिन पियांजे ने विकास के कितने क्रमिक एकम दर्शाये है
(अ) तीन
(ब) चार
(क) पाँच
(ड) छ
उत्तर :
(ब) चार
प्रश्न 7.
मूर्त क्रियात्मक एकम किस वर्ष में दिखाई देता है ?
(अ) 5 से 7
(ब) 7 से 12
(क) 7 से 13
(ड) 5 से 9
उत्तर :
(ब) 7 से 12
प्रश्न 8.
नैतिक विकास की तीन कक्षाएँ किसने दर्शायी ?
(अ) पियांजे
(ब) एरिक्सन
(क) कोहलवर्ग
(ड) फ्राईड
उत्तर :
(क) कोहलवर्ग
प्रश्न 9.
उद्यमशीलता विरुद्ध लघुता की चर्चा किसने की ?
(अ) पियांजे
(ब) एरिक्सन
(क) कोहलवर्ग
(ड) फ्राईड
उत्तर :
(ब) एरिक्सन
प्रश्न 10.
मनोजातीय विकास का सिद्धान्त किसने दिया ?
(अ) पियांजे
(ब) फ्राईड
(क) एरिक्सन
(ड) कोहलवर्ग
उत्तर :
(ब) फ्राईड
प्रश्न 11.
स्व पहचान किस अवस्था में होती है ?
(अ) तरुणावस्था
(ब) किशोरावस्था
(क) युवावस्था
(ड) वयस्क अवस्था
उत्तर :
(अ) तरुणावस्था
प्रश्न 12.
सुप्त अवस्था कौन से समय में होती है ?
(अ) 1 से 2
(ब) 6 से 12
(क) 12 के बाद
(ड) 2 से 6
उत्तर :
(ब) 6 से 12
प्रश्न 13.
गुदाकेन्द्री अवस्था किस नाम से जानी जाती है ?
(अ) लिबिड़ो
(ब) मुग्धावस्था
(क) टीनेजर
(ड) युवा
उत्तर :
(अ) लिबिड़ो
प्रश्न 14.
अमूर्त क्रियात्मक अवस्था में किस शक्ति का विकास होता है ?
(अ) तर्क
(ब) विचार
(क) स्मृति
(ड) कल्पना
उत्तर :
(अ) तर्क
प्रश्न 15.
कोहलवर्ग के नैतिकता के सिद्धांत में दवा की किंमत कितनी बतायी गयी ?
(अ) 1000 डॉलर
(ब) 2000 डॉलर
(क) 3000 डॉलर
(ड) 5000 डॉलर
उत्तर :
(ब) 2000 डॉलर