Gujarat Board Statistics Class 11 GSEB Solutions Chapter 1 सूचना का एकत्रीकरण Ex 1 Textbook Exercise Questions and Answers.
Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Statistics Chapter 1 सूचना का एकत्रीकरण Ex 1
स्वाध्याय – 1
विभाग – A
निम्न दिये विकल्पों में से सही विकल्प पसंद करके लिखिए ।
प्रश्न 1.
जर्मन शब्द ‘statistik’ सर्वप्रथम किसने प्रयोग किया था ?
(A) ज्होन ग्राउन्ट
(B) विलियम पेट्टी
(C) गोटफिड एलेनवाल
(D) गोस
उत्तर :
(C) गोटफिड एलेनवाल
प्रश्न 2.
संभावना के शास्त्र के प्रारंभिक परिणामों के लिए निम्न में से एक महानुभाव कौन था ?
(A) ज्होन ग्राउन्ट
(B) लाप्लास
(C) फिशर
(D) जे. नेमान
उत्तर :
(B) लाप्लास
प्रश्न 3.
गाणितिय अंकशास्त्र के स्थापक कौन थे ?
(A) कार्लपियर्सन
(B) लाप्लास
(C) महालनोबिस
(D) गोसेट
उत्तर :
(A) कार्लपियर्सन
प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-सा उदाहरण प्राथमिक सूचना का है ?
(A) म्युनिसिपालिटी के रिपोर्ट में से प्राप्त सूचना ।
(B) औद्योगिक के लिए प्रकाशित जर्नल में से प्राप्त सूचना।
(C) वेबसाइट पर से प्राप्त सूचना ।
(D) NSSO द्वारा एकत्रित की गई सूचना ।
उत्तर :
(D) NSSO द्वारा एकत्रित की गई सूचना ।
प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-सा उदाहरण गुणात्मक सूचना का है ?
(A) आय की कम, मध्यम, उच्च ऐसे वर्गों में
(B) उत्पादन (टन में)
(C) कर्मचारियों की उम्र (वर्ष में)
(D) व्यक्तियों की ऊँचाई (मीटर में)
उत्तर :
(A) आय की कम, मध्यम, उच्च ऐसे वर्गों में
प्रश्न 6.
गौण सूचना के लिए निम्न में से कौन-सा विधान सत्य है ?
(A) कभी उपयोग नहि करना चाहिए ।
(B) सावधानीपूर्वक जाँच करने के बाद उपयोग करना चाहिए ।
(C) उसके उपयोग के दौरान उसकी जाच आवश्यक नहीं है।
(D) गौण सूचना ही प्राथमिक सूचना है ।
उत्तर :
(B) सावधानीपूर्वक जाँच करने के बाद उपयोग करना चाहिए ।
प्रश्न 7.
प्राथमिक सूचना के लिए निम्न में से कौन-सा विधान सत्य है ?
(A) प्राथमिक सूचना गौण सूचना की तुलना में अधिक विश्वसनीय है ।
(B) प्राथमिक सूचना गौण सूचना की तुलना में कम विश्वसनीय है।
(C) प्राथमिक सूचना सावधानीपूर्वक एकत्रित की गई है या नहीं उस पर आधारित है ।
(D) प्राथमिक सूचना प्रकाशित हुए सरकारी प्रकाशनों में से प्राप्त की जाती है ।
उत्तर :
(C) प्राथमिक सूचना सावधानीपूर्वक एकत्रित की गई है या नहीं उस पर आधारित है ।
प्रश्न 8.
निम्न में से कौन-सा विधान सत्य है ?
(A) प्रत्यक्ष जांच द्वारा प्राप्त सूचना अधिक विश्वसनीय हो सकती है ।
(B) प्रत्यक्ष जाँच द्वारा प्राप्त सूचना कम विश्वसनीय हो सकती है ।
(C) प्रत्यक्ष जाँच द्वारा सूचना विश्वसनीय नहीं हो सकती ।
(D) ई-मेल द्वारा प्राप्त सूचना प्रत्यक्ष जाच कहलाती है।
उत्तर :
(A) प्रत्यक्ष जांच द्वारा प्राप्त सूचना अधिक विश्वसनीय हो सकती है ।
प्रश्न 9.
सूचना देनेवाले के निजी लक्षणों संबंधित सूचना प्राप्त करने की योग्य पद्धति निम्न में से कौन-सी है ?
(A) डाक द्वारा प्रश्नावली
(B) प्रत्यक्ष जाच
(C) अप्रत्यक्ष जाँच
(D) समाचार पत्रों में से
उत्तर :
(B) प्रत्यक्ष जाच
प्रश्न 10.
जाँचाधीन व्यक्तियों की संख्या अधिक हो और वह विशाल क्षेत्र में फैली हो तब कौन-सी पद्धति अधिक खर्चीली है ?
(A) डाक द्वारा प्रश्नावलि
(B) अप्रत्यक्ष जाच
(C) प्रत्यक्ष जाच
(D) टेलिफोन द्वारा
उत्तर :
(C) प्रत्यक्ष जाच
विभाग – B
निम्न प्रश्नों के एक वाक्य में उत्तर दीजिए।
प्रश्न 1.
भारतीय आंकडाशास्त्रीय संस्था के स्थापक कौन थे ?
उत्तर :
भारतीय आंकडाशास्त्रीय संस्था के स्थापक पी. सी. महालनोबिस थे ।
प्रश्न 2.
समष्टि पारिभाषित करो ।
उत्तर :
आंकडाशास्त्र के अभ्यास सम्बन्धी जाँच के क्षेत्राधीन समग्र इकाईयों की समूह को उस जाँच के लिए समष्टि कहेंगे ।
प्रश्न 3.
निदर्श पारिभाषित करो।
उत्तर :
समष्टि में से किसी निश्चित पद्धति द्वारा चयन की गई इकाईयों के समूह को निदर्श कहते हैं ।
प्रश्न 4.
गुणात्मक सूचना पारिभाषित करो ।
उत्तर :
यदि चल लक्षण असंख्यात्मक हो तो उसे गुणात्मक चल कहते हैं, ऐसे गुणात्मक लक्षण को गुणधर्म कहते है और गुणधर्म के समूह को गुणात्मक सूचना कहते हैं !
प्रश्न 5.
संख्यात्मक सूचना पारिभाषित करो।
उत्तर :
यदि चल संख्यात्मक हो तो उसे संख्यात्मक सूचना कहते है और ऐसे संख्यात्मक चल के अवलोकनों के समूह को संख्यात्मक सूचना कहते है ।
प्रश्न 6.
प्राथमिक सूचना पारिभाषित करो।
उत्तर :
जब कोई अधिकृत संस्थान अनुसंधानकर्ता या अन्वेषक स्वयं या अन्य व्यक्तियों या संस्थाओं की सहायता से मौलिक रूप से प्रथमबार सूचना एकत्र करे तो उस जानकारी को प्राथमिक सूचना (Primary Data) कहते है ।
प्रश्न 7.
गौण सूचना पारिभाषित करो ।
उत्तर :
जब कोई एक अधिकृत संस्थान या अनुसंधानकर्ता अन्य किसी व्यक्ति या संस्थान द्वारा एकत्र की गई सूचना का उपयोग करे तब उस अधिकृत संस्थान या अनुसंधान कर्ता के लिए वह सूचना गौण सूचना (Secondary Data) कहलायेगी ।
प्रश्न 8.
प्राथमिक सूचना एकत्रित करने की विधि बताइए ।
उत्तर :
प्राथमिक सूचना एकत्र करने की मुख्य तीन विधियाँ प्रचलित है ।
- प्रत्यक्ष अनुसंधान
- अप्रत्यक्ष अनुसंधान
- प्रश्नावली
विभाग – C
निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
प्रश्न 1.
कौक्षटन और काउटन द्वारा सांख्यिकी की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
कौक्षटन और काउटन के मतानुसार अंकशास्त्र की परिभाषा निम्नानुसार है :
“सांख्यिकी यह विज्ञान है जो अंकशास्त्रीय सूचना का एकत्रीकरण, पृथक्करण और विश्लेषण करता है।”
प्रश्न 2.
सूचना अर्थात् क्या ?
उत्तर :
संख्यात्मक स्वरूप में या गुणात्मक स्वरूप में प्रदर्शित अवलोकनों के समूह को सूचना कहते है । ऐसी सूचना प्राथमिक स्रोत अथवा गौण स्रोत द्वारा प्राप्त की जा सकती है ।
प्रश्न 3.
प्रश्नावलि अर्थात् क्या ?
उत्तर :
जिस विषय सम्बन्धी सूचना प्राप्त करनी हो उस विषय के अनुरूप प्रश्नों की एक सूचि बनाना, उन प्रश्नों को उचित तथा तर्कपूर्ण क्रम में रखकर संबंधित प्रश्नों के सामने ही उत्तर लिखने की जगह वा आयोजन करके एक पत्रिका तैयार की जाती है जिसे प्रश्नावलि कहते हैं ।
प्रश्न 4.
अप्रकाशित सूचना अर्थात् क्या ?
उत्तर :
संस्थाओं द्वारा कुछ आंकडाकीय सूचना प्रकाशित हुई न हो तो ऐसी सूचना को अप्रकाशित सूचना कहते हैं । ऐसी सूचना प्रार्थना से अनुसंधान कर्ता या संशोधन संस्था सम्बन्धित संस्थाओं से प्राप्त करके उसको उपयोग में ले सकते हैं ।
प्रश्न 5.
चल लक्षण अर्थात् क्या ?
उत्तर :
जिस राशि के मूल्य (Value) अलग-अलग इकाईयों के लिए परिवर्तित होते हो उस राशि को चर कहा जाता है । वह संख्यात्मक अथवा असंख्यात्मक लक्षण हो सकता है ।
प्रश्न 6.
गुणधर्म अर्थात् क्या ?
उत्तर :
जो चर लक्षण असंख्यात्मक हो तो उसे गुणात्मक चल कहते है । ऐसे गुणात्मक लक्षण को गुणधर्म कहते है ।
विभाग – D
निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
प्रश्न 1.
भारत में सांख्यिकी के विकास में पी. सी. महालनोबिस का क्या योगदान है ?
उत्तर :
भारत में सांख्यिकी के विकास में आंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठान रखनेवाला प्रो. पी. सी. महालनोबिस का कोलकाता में स्थापित भारतीय सांख्यिकीय संस्थान (Indian Statistical Institute) भारत में आंकडाशास्त्र संशोधन और अभ्यास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
प्रश्न 2.
गुणात्मक सूचना और संख्यात्मक सूचना के बीच अंतर बताइए ।
उत्तर :
गुणात्मक सूचना | संख्यात्मक सूचना |
(1) गुणात्मक चर के अवलोकनों के समूह को गुणात्मक सूचना कहा जाता है । | (1) यदि सूचना का माप संख्या के स्वरूप में हो तो उस सूचना को संख्यात्मक सूचना कहा जाता है । |
(2) चल लक्षण अपरिमिति होते है । | (2) चर लक्षण परिमित होते है । |
(3) उदा. व्यक्ति क्षय रोग से पीडित है यह गुणात्मक चर है । | (3) कर्मिकी मासिक आय यह संख्यात्मक सूचना है । |
(4) गुणात्मक सूचना का सिर्फ निरीक्षण किया जाता है । | (4) संख्यात्मक सूचना को किसी इकाई से मापा जा सकता है । |
प्रश्न 3.
प्राथमिक सूचना के उदाहरण दीजिए ।
उत्तर :
प्राथमिक सूचना के उदाहरण निम्न है :
- भारत सरकार प्रति दस वर्ष पर जन-गणना करके जानकारी एकत्र करती है उसे प्राथमिक सूचना कहते हैं ।
- आर्थिक-सामाजिक स्तर की जाच हेतु शिक्षक स्वयं या विद्यार्थियों की सहायता से सूचना एकत्र करे तो वह प्राथमिक सूचना कहलाएगी ।
- डोक्टर अपने रोगी के ब्लडप्रेशर (रक्त दबाव) माप के जानकारी प्राप्त करे वह प्राथमिक सूचना कही जाएगी ।
- शिक्षक कक्षा में विद्यार्थिओं को प्रश्न पूछकर ग्रहणशक्ति का अंदाज प्राप्त करे वह प्राथमिक सूचना कहलाएगी ।
- किसी विस्तार के रहिशों की आर्थिक स्थिति की जाँच हेतु संशोधक स्वयं जाकर या गणक द्वारा सूचना एकत्र करें तो वह प्राथमिक सूचना कहलाएगी ।
प्रश्न 4.
प्रश्नावली की विधि की चर्चा करो।
उत्तर :
विशाल क्षेत्र में से कम खर्च से सूचना एकत्रित करने की यह एक प्रचलित पद्धति है । इस पद्धति में उद्देश्य के अनुरूप प्रश्नों को तैयार करके उनको तर्कबद्ध रीति से क्रम में रखकर संबंधित प्रश्नों के सामने ही उत्तर लिखने की जगह का आयोजन करके एक पत्रिका तैयार की जाती है जिसे प्रश्नावली कहते है । जिस प्रणाली से प्रश्नावली द्वारा सूचना प्राप्त की जाती है उसे प्रश्नावली की विधि कहते हैं ।
जब विशाल क्षेत्र से सूचना एकत्र करनी हो तब यह विधि अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती है । इस विधि में खर्च व समय की बचत होती है । इस विधि का उपयोग अधिकांशतः निजी या सार्वजनिक संस्थाओं में संशोधक या औद्योगिक कंपनी करती है । प्रश्नावली की सफलता का आधार प्रश्नावली तैयार करनेवाले की निपुणता और प्रश्नावली को समझकर उसका लिखित उत्तर दे सके ऐसे सूचको या उत्तरदाता के साक्षरता या शैक्षणिक स्तर समझ व सहयोग की भावना पर निरभर है ।
प्रश्नावली इस प्रकार तैयार करनी चाहिए जो स्पष्ट हो एवं पढ़नेवाले के मन में कोई शंका-कुशंका उत्पन्न न करे ।
प्रश्न 5.
डाक द्वारा प्रश्नावली की विधि की चर्चा करो ।
उत्तर :
इस विधि में जिन लोगों से सूचना प्राप्त करनी हो उन्हें डाक द्वारा प्रश्नावली भेजी जाती है। सूचनादाता को स्वयं प्रश्नावली के उत्तर लिखने होते है । प्रश्नावली के साथ एक विनंती पत्र भेजा जाता है । जिसमें संशोधक का नाम, उद्देश्य का विवरण होता है और सूचनादाता से सहकार की विनंती की जाती है। प्रश्न स्पष्ट, संक्षिप्त, तार्किक व क्रमबद्ध हो तो उत्तरदाता के मन में कोई दुविधा, शंका उत्पन्न नहीं होगी । उत्तरदाता को यकीन दिलाया जाता है कि सूचना गुप्त रखी जाएगी तथा उसका कोई दुरुपयोग नहीं होने पायेगा ।
सूचना भेजनेवाले को डाक खर्च नहीं चुकाना पड़े इसलिए संशोधक के पता (Address) वाला टिकिट लगा हुआ लिफाफा भी प्रश्नावली के साथ भेज दिया जाता है । कई बार उत्तर देनेवाले को प्रोत्साहन मिलता रहे, उस उद्देश्य से प्रश्नावली के साथ उपहार भी भेजा जाता है । इस विधि से विशाल क्षेत्र से सूचना प्राप्त की जाती है ।
प्रश्न 6.
गणक द्वारा प्रश्नावली की विधि की चर्चा करो।
उत्तर :
सूचना एकत्र करने की डाकविधि की मर्यादाओं को दूर करने हेतु गणक विधि का उपयोग किया जाता है । इस विधि में संशोधक सूचना देनेवाले के पास प्रश्नावली को डाक द्वारा नहि भेजता है। परंतु प्रशिक्षित अनुभवी गणकों की नियुक्ति करते है। नियुक्त किए गए गणक को प्रश्नावली संबंधी प्रशिक्षण दिया जाता है । गणक सूचना देनेवाले की प्रत्यक्ष मुलाकात लेकर उसे प्रश्न पूछकर सूचना लिखता है । इस विधि में सूचना की सावधानी का आधार गणकों की निपुणता पर निर्भर रहता है । गणक विवेकशील, उत्साही, अनुभवी, कार्यक्षम और व्यवहारकुशल होना चाहिए, जिससे सूचना सही मिलती है । उत्तर प्राप्त करते समय अनावश्यक विवादों में न उतरकर या उसकी मानहानि न हो उसकी सावधानी गणक को रखना है, इन सभी बातों के लिए गणकों को समझाया जाता है। भिन्न-भिन्न भाषा, रीति-रिवाजवाले व्यक्तियों से सूचना प्राप्त करने हेतु गणकों को उनके भाषा, रीति-रिवाज से जानकारी होनी चाहिए ।
प्रश्न 7.
अप्रकाशित प्राप्तिस्रोत में से गौण सूचना प्राप्त करने की विधि का वर्णन करो।
उत्तर :
कुछ सूचनाएँ अप्रकाशित होती है, परंतु संस्थाएँ अपने संदर्भ हेतु अपने कार्यालय में पंजीकृत रखती है। ऐसी सूचना प्रार्थना से अनुसंधान कर्ता या संशोधन संस्था सम्बन्धित संस्थाओं से प्राप्त करके उसको उपयोग में ले सकते है । उदा. सरकारी, अर्धसरकारी, निजी या सार्वजनिक संस्थाओं के कार्यालय से अप्रकाशित सूचना प्राप्त कर सकते हैं ।
प्रश्न 8.
सांख्यिकी के उपयोगों की चर्चा करो।
उत्तर :
प्राचीन काल से सांख्यिकी का उपयोग होता आया है। राजा-महाराजा भी अपने राज्य का सैनिक दल और शत्रु राज्य का सैनिक दल की सूचना प्राप्त करते थे । 18वीं शताब्दी में आंकडाशास्त्र का उपयोग राज्यों द्वारा सूचना को पद्धतिसर उपयोग के लिए सूचना एकत्रित की जाती थी। 19वीं शताब्दी में विज्ञान, राजकारण, औद्योगिक क्षेत्र में किया गया ।
आधुनिक समय में आंकडाशास्त्र विषय सिर्फ जत्थावाचक सूचना के लिए उपयोग में लिया जाता है उतना नहीं है लेकिन गुणवाचक सूचना के लिए भी होता है । कार्यात्मक संशोधन का उपयोग दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान मिलिटरी प्रोजेक्ट में हुआ था । राष्ट्रीय आयोजन और जाँच के लिए 1953 में 151 कोलकाता में कार्यात्मिक संशोधन की विधि का उपयोग करके पी सी महालनोबिस ने दूसरी पंचवर्षीय योजना का ढाँचा तैयार किया था ।
सरकार को प्रतिव्यक्ति आय प्राप्त करने में औद्योगिक घटक जैसे कर्मचारी, यंत्रों इत्यादि का महत्तम विभाजन निश्चित करने के लिए और निजी, सार्वजनिक क्षेत्रों मे भी अंकशास्त्र का उपयोग होता है ।
विभाग – E
निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए ।
प्रश्न 1.
प्राथमिक और गौण सूचना के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
प्राथमिक सूचना | गौण सूचना |
(1) प्राथमिक सूचना प्रथम बार प्रात की गई मौलिक सूचना है। | (1) गौण सूचना भूतकाल में कोई व्यक्ति ने प्राप्त करने से अधिकांशतः भाग की सूचना मौलिक नहीं होती । |
(2) प्राथमिक सूचना विशाल और अव्यवस्थित स्वरूप में होती है । | (2) गौण सूचना संक्षिप्त और व्यवस्थित स्वरूप में होती है । |
(3) प्राथमिक सूचना प्रथम बार प्राप्त होने से समय, शक्ति और धन अधिक खर्च करना पड़ता है । | (3) गौण सूचना तैयार स्वरूप में प्राप्त होने से समय, शक्ति और धन कम खर्च होता है । |
(4) प्राथमिक सूचना संशोधक अथवा उनके व्यक्तियों प्रारंभिक अवलोकन द्वारा स्वतंत्र पद्धति से एकत्र की गई सूचना होती है । | (4) गौण सूचना अन्य किसी ने स्वयं के उद्देश्य के लिए प्राप्त की होती है । जो संशोधन के संपूर्ण अनुरूप नहीं होती है । |
(5) प्राथमिक सूचना संशोधक अथवा उनके व्यक्तियों ने प्रारंभिक अवलोकन द्वारा स्वतंत्र पद्धति से एकत्र की गई सूचना होती है । | (5) गौण सूचना अन्य किसी व्यक्ति द्वारा एकत्र की गई सूचना होती है और संशोधक उसका पुनः उपयोग करता है । |
(6) प्राथमिक सूचना जाँचधीन इकाईयों पर से एकत्र की जाती है । | (6) गौण सूचना सामयिक और पत्र – पत्रिकाओं या प्रकाशनों द्वारा एकत्र की जाती है । |
(7) प्राथमिक सूचना संशोधक के स्वयं के उद्देश्यानुसार होती है जिससे अधिक विश्वसनीय और स्थिर होती है । | (7) गौण सूचना अन्य कोई व्यक्ति द्वारा उसके उद्देश्य के लिए एकत्र की गई सूचना होती है जो प्राथमिक सूचना होती है, जो प्राथमिक सूचना जितनी विश्वासपात्र नहीं होती । |
(8) पूर्व संशोधन नहीं हुआ हो तो वैसे प्रश्नों से संबंधित प्राथमिक सूचना ही एकत्रित करनी पड़ती है । | (8) इस प्रकार के प्रश्नों से संबंधित जानकारी गौण सूचना से नहीं मिलती है । |
(9) भारत सरकार द्वारा प्रति दस वर्ष पर जनसंख्या की गणना प्राथमिक सूचना का उदा. है । | (9) जनसंख्या की गणना पर से अथवा प्रकाशनों पर से कोई संशोधक सूचना का उपयोग करे तो उसे गौण सूचना कही जाएगी । |
(10) प्राथमिक सूचना प्राप्त करते समय रखी गई सावधानी तथा उसकी मर्यादा से संशोधक अवगत होती है । | (10) गौण सूचना किसने प्राप्त की है और किस उद्देश्य के लिए प्राप्त की है उसकी मर्यादा, सावधानी से संशोधक पूरी तरह अवगत नहीं होता है । |
प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष जाँच द्वारा प्राथमिक सूचना प्राप्त करने की विधि की चर्चा करो।
उत्तर :
इस विधि में संशोधक जहाँ से सूचना प्राप्त करते हो वहाँ स्वयं जाकर अथवा गणकों द्वारा सूचनादाता को प्रत्यक्ष रूप से मिलकर उनसे सूचना एकत्रित करते है। जिससे इस तरह की जाँच से प्राप्त परिणाम अधिक विश्वसनीय होता है। जैसे कि किसी शिक्षक पुस्तकालय में विद्यार्थिओं द्वारा पुस्तकें कितनी संख्या में पढ़ी जाती है ? यह जानने हेतु शिक्षक विद्यार्थिओं से सीधा संपर्क करके प्रश्न पूछकर उत्तरों का अनुसंधान करे तो उसे प्रत्यक्ष जाँच कहते हैं । उसी प्रकार कोई एक कारखाना में कारीगरों को असंतोष हो और उनकी जाँच के लिए संचालक अलग अलग कारीगरों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर सूचना एकत्र करे तो उसे प्रत्यक्ष जांच की पद्धति कही जाएगी । जब जाँच का कार्यक्षेत्र मर्यादित हो तब प्रत्यक्ष जाँच की विधि श्रेष्ठ साबित होती है । जब कार्यक्षेत्र विशाल हो तब इस विधि से सूचना प्राप्त करने में समय, शक्ति एवं धन अधिक खर्च होता है । प्रत्यक्ष जाँच की सफलता का आधार संशोधक की व्यक्तिगत कुशलता तथा सूचना देनेवाले व्यक्ति के सहकार पर निर्भर होता है ।
प्रश्न 3.
अप्रत्यक्ष अनुसंधान विधि द्वारा प्राथमिक सूचना एकत्रित करने की विधि की चर्चा करो ।
उत्तर :
जब जाँच का कार्यक्षेत्र अधिक विशाल हो तब प्रत्यक्ष जाँच की विधि उपयोगी नहीं होती, जाँच के कार्यक्षेत्र में आनेवाली इकाईयों के पास से सूचना प्राप्त करने के बदले उनके संपर्क में रहनेवाले व्यक्ति या संस्था द्वारा सूचना प्राप्त करने की विधि को अप्रत्यक्ष विधि कहते है । इस विधि के उपयोग से प्रत्यक्ष अनुसंधान विधि की मुख्य मर्यादाएं दूर हो जाती है । उदाहरण के रूप में पाठशाला का शिक्षक विद्यार्थियों की सूचना प्राप्त करना चाहता हो तो उनके वर्गशिक्षक या स्कूल के जनरल रजिस्टर से सूचना प्राप्त करे तो उसे अप्रत्यक्ष विधि कहते है । लड़के या लड़कियों के विवाह के समय उनके रिश्तेदारों या सूचना से ज्ञात व्यक्ति का संपर्क करके सूचना प्राप्त की जाय तो उसे अप्रत्यक्ष विधि कहते है । इस विधि में समय, शक्ति एवं धन की बचत होती है । यदि सूचना देनेवाली व्यक्ति तटस्थ और बिन पक्षपाती हो तो इस विधि से विश्वसनीय सूचना प्राप्त हो सकती है ।
प्रश्न 4.
गौण सूचना द्वारा प्राप्त करने की विधि की चर्चा करो।
उत्तर :
प्राथमिक सूचना द्वारा प्राप्त की गई सूचना को जब दूसरा व्यक्ति उपयोग में लेता है तब उसके लिए वह सूचना गौण सूचना बनती है । प्राथमिक सूचना प्राप्त करने में समय, शक्ति और धन अधिक प्रमाण में खर्च होता है, सूचना प्रथम बार प्राप्त की जाती है इसलिए सूचना अव्यवस्थित स्वरूप में होती है । जिससे उसे संक्षिप्त स्वरूप देना पड़ता है और वर्गीकरण सारणीयन की रचना करनी पड़ती है। उसके बाद उपयोग में ले सकते है। इन सभी प्रक्रिया के पीछे अधिक समय देना पड़ता है । जबकि, गौण सूचना व्यवस्थित रूप से संक्षिप्त में प्रस्तुत की गई सूचना है । जिसके अभ्यास के लिए साधारण परिवर्तन के साथ उपयोग में ले सकते है इससे समय, शक्ति और धन की बचत होती है ।
गौण सूचना के प्राप्तिस्थान निम्नलिखित है :
- सरकारी संस्था के प्रकाशनों
- अर्धसरकारी संस्था के प्रकाशनों
- अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के प्रकाशनों
- व्यापारिक संघों के प्रकाशनों
- पत्र-पत्रिकाएँ
- स्थानीय स्वराज की संस्थाएँ एवं स्वायत्त शैक्षणिक संस्थाओं के अभिलेख
- अप्रकाशित स्रोत
- अनुसंधान संस्थाओं के प्रकाशन इत्यादि से गौण सूचना प्राप्त होती है ।
प्रश्न 5.
सांख्यिकी के उद्भव और विकास की चर्चा करो ।
उत्तर :
प्राचीन समय में ही आंकडाशास्त्र के क्षेत्र में भारत का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है । मौर्य साम्राज्य (ई.स. पूर्व 321-296) के समय दौरान कौटिल्य रचित अर्थशास्त्र में गाँव और नगरों में हुए कृषि सम्बन्धी, जनसंख्या सम्बन्धी सर्वेक्षण के उल्लेख मिलते है। मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल (सन् 1596-97 में अबुल फझल द्वारा रचित आइने अकबरी मे भी सरकार की प्रशासकीय व राष्ट्रीय सेवाओं के बीच संकलन हेतु उपयोग में ले जानेवाली आंकडाकीय पद्धतियों का उल्लेख स्पष्ट दिखाई देता है ।
18वीं शताब्दी तक आंकडाशास्त्र का उपयोग राज्यों द्वारा सूचना एकत्रित करने के लिए होता था । संभालनाशास्त्र के प्रारंभिक परिणाम 17वी और 18वी शताब्दि में लप्लास और गोस द्वारा प्राप्त किया था ।
19वीं शताब्दि के अंत में और 20वी शताब्दि के प्रारंभ में आंकडाशास्त्र के आधुनिक पहलू का प्रारंभ हुआ था । गेल्टन और कार्लपियर्सन द्वारा गांणितीय आंकडाशास्त्र का उपयोग विज्ञान, औद्योगिक और राजनीति में किया था ।
भारत के प्रख्यात अंकशास्त्री श्री पी. सी. महालनोबिस का आधुनिक आंकडाशास्त्र के प्रसार व विकास में अमूल्य योगदान है। उनके द्वारा सन् 1931 में कोलकाता में स्थापित भारतीय आंकडाशास्त्र संस्थान (Indian Statistical Institute) की स्थापना की । वह एक उच्च कोटि की संस्था गिनी जाती है ।
आधुनिक आंकडाशास्त्र का विकास तीन चरणों में हुआ है, जिसका बीजारोपण राजनीतिज्ञों द्वारा और पौधों का पालनपोषण गणितज्ञों द्वारा हुआ जिससे उसके फलों एवं फूलों की प्राप्ति विज्ञान व वाणिज्य की अलग अलग शाखाओं में से हुई।
आधुनिक युग में आंकडाशास्त्र का एक व्यवहारपरत एवं प्रायोजित विषय के रूप में स्थान प्राप्त हुआ है, तदुपरांत सांख्यिकी के अध्ययन का स्थान वैज्ञानिक पद्धति के एक हिस्से के रूप में भी उतना ही महत्त्व का है।
सन् 1950 में महालनोबिस द्वारा प्रस्तुत किया गया न्यादर्श बोध (National Sample Survey) को सरकार द्वारा मान्य रखा गया । अन्य संस्था भारतीय कृषि विषयक आंकडाशास्त्र संशोधन संस्था (Indian Agriculture Statistics Research Institute – IASRI) का भी आंकडाशास्त्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । कोष्टन और काउटन के मतानुसार आंकडाशास्त्र की परिभाषा – “आंकडाशास्त्र यह विज्ञान है जो आंकड़ाकीय सूचना का एकत्रीकरण, पृथक्करण और अर्थघटन करता है ।”
आधुनिक समय में आंकडाशास्त्र की उपयोगिता की अवगणना नहीं की जा सकती ।
प्रश्न 6.
प्रत्यक्ष जाँच के गुण-अवगुण की चर्चा करो ।
उत्तर :
प्रत्यक्ष जाँच के गुण :
- इस पद्धति में एकत्रित की गई सूचना सही और विश्वासपात्र होती है । क्योंकि संशोधक स्वयं जानकारी एकत्रित करता है।
- संशोधक स्वयं मुलाकात लेकर सूचना एकत्रित करता है, जिससे किसी भी प्रकार की शंका य द्विधा सूचनादाता के मन में हो तो वह उसका निराकरण कर सकता है।
- जब कार्यक्षेत्र सीमित हो और सही सूचनाएँ एकत्रित करनी हो तब यह पद्धति श्रेष्ठ है ।
- सूचनादाता जिस सूचना को देने में संकोच का अनुभव करें उस सूचना को परोक्ष रूप से प्राप्त कर सकते हैं ।
- कठिन प्रश्नों की जांच इस पद्धति के द्वारा सरलता से कर सकते है ।
- परिस्थिति का सीधा अनुभव होने से भविष्य के लिए योग्य मार्गदर्शन मिलता है ।
प्रत्यक्ष जाँच के अवगुण :
- जब विशाल क्षेत्र में से सूचना एकत्रित करनी हो तब यह विधि अनुकूल नहीं होती ।
- इस विधि में समय, शक्ति व धन अधिक खर्च होता है ।
- यदि गणक प्रशिक्षित, अनुभवी, कर्तव्यनिष्ठ और अनुसंधान के उद्देश्य के प्रति इमानदार न हो तो इस विधि से प्राप्त की गई सूचना की विश्वसनीयता घट जाती है ।
- इस विधि द्वारा होनेवाले अनुसंधान पर गणकों के पूर्वग्रहयुक्त रुख का प्रभाव अन्य विधियों की अपेक्षा अधिक हावी होने की संभावना रहती है।
- यदि सूचना देनेवाले का संशोधन के प्रश्नों में उत्साह न हो या पूर्वग्रहयुक्त उत्तर या गलत सूचना दे तो सही जानकारी नहीं मिलती है।
प्रश्न 7.
अप्रत्यक्ष अनुसंधान विधि के गुण-अवगुण की चर्चा करो ।
उत्तर :
अप्रत्यक्ष विधि के गुण :
- इस विधि में समय, शक्ति और धन की बचत होती है ।
- इस विधि विस्तृत क्षेत्र के लिए अधिक अनुकूल है।
- कितना ही उलझनवाली और तकनीकी जानकारीवाली सूचना जैसे प्रश्नों के लिए यह विधि अनुकूल है ।
- अनुसंधान के लिए प्रश्न-कर्ता और सूचनादाता दोनों अनुभवी, तटस्थ एवं प्राद्योगिक ज्ञान के जानकार हो तो सूचना में शुद्धता की वृद्धि हो सकती है।
अप्रत्यक्ष विधि के अवगुण :
- इस विधि में तीसरे व्यक्ति या संस्थान से सूचना प्राप्त करनी हो वह पूर्वग्रह या पक्षपाती हो सकती है । तब विश्वसनीय सूचना प्राप्त नहीं हो सकती है ।
- इस प्रणाली की सफलता का आधार सूचना प्राप्त करनेवाले गणकों की निपुणता, क्षमता पर निर्भर होती है । संभव है कि सूचना दाता प्रश्नों के उत्तर देने कि लए उदासीन हो या किसी कारणवश असहयोग का रुख अपना रहा हो ।
- कई बार सूचना प्राप्त करनेवाले स्वयं उद्देश्य के अनुरूप प्रश्नों को पूछकर उत्तर प्राप्ति की जानकारी का कौशल्य न रखता हो तो उसे सही व शुद्ध सूचना को प्राप्ति नहीं हो सकती है ।
प्रश्न 8.
आदर्श प्रश्नावली के लक्षण सविस्तार से समझाइए ।
उत्तर :
आदर्श प्रश्नावली में निम्नलिखित लक्षण (विशेषताएँ) का वर्णन किया जा सकता है :
- प्रश्नावली का उचित शीर्षक होना चाहिए । यह आकर्षक एवं स्पष्ट होना चाहिए ।
- प्रश्नों की भाषा द्विअर्थी नहीं होनी चाहिए ।
- प्रश्नों की संख्या पर्याप्त, उद्देश्य के अनुरूप बहुत अधिक या बहुत कम नहीं होनी चाहिए ।
- यदि प्रश्नों की संख्या अधिक हो तो एक से अधिक विभागों में बाटना चाहिए ।
- प्रश्नों का क्रम तर्कबद्ध होना आवश्यक है जिससे उत्तरदाता उसके उत्तर प्रश्नों के आगे-पीछे संदर्भ को देखे बिना सहजरूप से एवं त्वरित दे सकें । कोई भी व्यक्ति से उसके कितने बच्चे है यह प्रश्न पूछने के पश्चात् वह व्यक्ति विवाहित है या अविवाहित ऐसे प्रश्न नहीं पछने चाहिए ।
- हा । ना या अंकों में उत्तर मिले ऐसे संक्षिप्त एवं स्पष्ट प्रश्न पूछने चाहिए ।
- भूतकाल से अधिक सम्बन्धित प्रश्नों को पूछने से बचना चाहिए ।
- उत्तरदाता के निजी जीवन से स्पर्श करनेवाले प्रश्नों को प्रश्नावली में समावेश नहीं करना चाहिए ।
- उत्तरदाता को गणना करना पड़े अथवा लम्बे समय तक विचार करना पड़े ऐसे प्रश्न नहीं पूछने चाहिए ।
- प्रश्नावली को अंतिम स्वरूप देने से पूर्व उसका पहले परीक्षण कर लेना चाहिए ।
- यदि प्रश्नावली डाक द्वारा भेजनी हो तो सूचना देनेवाले को सहकार देने सम्बन्धी सूचनापत्र प्रश्नावली के साथ भेजना चाहिए । और अतिरिक्त खर्च सूचना दाता को करना न पड़े इसके लिए प्रश्नावली के साथ संशोधक का पता तथा योग्य डाक टिकक लगा हुआ लिफाफा भेजना चाहिए ।
प्रश्न 9.
डाक द्वारा प्रश्नावली की विधि के गुण-अवगुण की चर्चा करो ।
उत्तर :
डाक द्वारा प्रश्नावली के गुण :
- विशाल क्षेत्र में से सूचना एकत्रित करने के लिए यह विधि अनुकूल है ।
- दूसरी विधि की अपेक्षा कम समय, शक्ति एवं धन खर्च से विश्वसनीय सूचना शीघ्र प्राप्त कर सकते है ।
- शिक्षित और सहयोग की भावनावाला सूचनादाता हो तो सूचना प्राप्ति के लिए यह विधि अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध होती है ।
- सरकार द्वारा कई बार इस विधि से नियमित और कम खर्च से सही जानकारी मिलती है ।
डाक विधि के अवगुण :
- अशिक्षित और असयोग की भावनावाले उत्तरदाता से सूचना प्राप्त करने में यह विधि असमर्थ बन जाती है ।
- प्रश्नावली पढ़े बिना ही उत्तरदाता प्रश्नावली को पूर्ण करने में बेफिकर हो ऐसा संभव है ।
- उत्तरदाता द्वारा प्रश्नावली के उत्तर अपूर्ण एवं गलत हो यह संभव है ।
- शिक्षित व्यक्ति भी लिखित बंधन में फस जाने के डर से उत्तर सही देते या प्रश्नावली को वापस करने में उदासीनता या उपेक्षा करते दिखाई देते है ।
- सूचनादाता ने सही सूचना दी है या नहीं उसकी जांच करवाना कठिन होता है ।
- आलस या अधूरे पते के कारण या डाक विभाग की बेदरकारी के कारण सूचना की प्राप्ति विलम्ब होने की संभावना निहित है ।
प्रश्न 10.
गणकों द्वारा प्रश्नावली की विधि के गण-अवगण की चर्चा करो।
उत्तर :
गणक विधि के गुण :
- गणक एक के बाद एक प्रश्न पूछकर स्वयं प्रश्नावली को भरते है । जिससे भूल रहने की या अपूर्ण सूचना रहने की संभावना होती नहीं है और शुद्ध सूचना प्राप्त होती है ।
- विशाल क्षेत्र में से शुद्धतापूर्ण सूचना निर्धारित समय में प्राप्त हो सकती है ।
- आवश्यक्तानुसार प्राप्त सूचना की जाच की जा सकती है ।
- अनुभवी और कुशल गणकों से आवश्यक जानकारी कम समय में प्राप्त कर सकते है और स्वयं की निपुणता, ज्ञान सोच से सूचना की शुद्धता में वृद्धि होती है ।
- भारत जैसे देशों में निरक्षर व्यक्तियों का प्रमाण अधिक है । वहाँ यह विधि अधिक अनुकूल होती है ।
- प्रश्नावली वापस नहीं मिलने को या अपूर्ण प्रश्नावली मिलने का कोई प्रश्न उपस्थित नहीं होता है ।
- उत्तरदाता के मन में उत्पन्न शंका का निवारण तुरन्त उसी स्थान पर हो जाता है ।
गणक विधि के अवगुण :
- विशाल क्षेत्र में से सूचना प्राप्त करने के लिए अधिक गणकों को रखना पड़ता है, जिससे समय, शक्ति एवं धन अधिक खर्च होता है।
- हमेशां नम्र, विवेकी, प्रशिक्षित, प्रामाणिक गणक नहीं मिलते है । उसे प्रशिक्षण देना पड़ता है । प्रशिक्षण के बाद गणक विशेष बन जाएँगे ऐसा मानना भी योग्य नहीं है ।
- यदि गणक स्वयं पक्षपाती हो, तो पूर्वग्रहों का प्रभाव सूचना की विश्वसनीयता पर पड़ता है ।
- गणकों को सूचनादाता के साथ समय के अनुकूलन की व्यवस्था करनी पड़ती है । इसलिए इस विधि में ढील होने की संभावना रहती है ।
- गणकों का कार्य की प्रमाणिकता और शुद्धता की जाँच के लिए निरीक्षण रखने पड़ते हैं, जिससे खर्च बढ़ता है।
- उत्तरदाता कई बार गणकों को सहकार नहीं देते है । अथवा उनके साथ अपमानजनक व्यवहार रखते है ।
- गणक लापरवाह या आलसी हो तो जिससे सूचना प्राप्त करनी हो उसके बदले अन्य किसी से सूचना प्राप्त कर ले तो सूचना अविश्वसनीय बन जाती है ।
प्रश्न 11.
गौण सूचना का उपयोग करते समय ध्यान में रखने योग्य सावधानियों को बताइए ।
उत्तर :
गौण सूचना का उपयोग करने से पूर्व सावधानीपूर्वक जाँच करना चाहिए क्योंकि ऐसी सूचना दोषयुक्त, उद्देश्य के अनुरूप न हो ऐसी गौण सूचना पृथक्करण या विश्लेषण के लिए उपयोगी नहीं है, इसलिए ऐसी सूचना का उपयोग करते समय निम्न सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए ।
- सूचना किसने प्राप्त की है यह जानना चाहिए । निजी संस्था द्वारा प्राप्त सूचना कम विश्वसनीय होती है । यदि सूचना सरकारी, अर्धसरकारी या स्वायत्त संस्था से प्राप्त किए गए हो तो उसकी विश्वसनीयता अधिक होती है ।
- गौण सूचना प्राप्ति का उद्देश्य की जांच कर लेना चाहिए । यदि अपने उद्देश्य के साथ सुसंगत हो तो ही, उन सूचना का उपयोग करना चाहिए । यदि उद्देश्य में अंतर हो तो ऐसी सूचना का उपयोग नहीं करना चाहिए ।
- सूचना कौन-सी पद्धति से प्राप्त की है उसकी जाँच कर लेना चाहिए ।
- यदि सूचना अनुमानित हो तो उनका उपयोग नहीं करना चाहिए ।
- जिस सूचनाओं का उपयोग करना हो वे प्राथमिक स्वरूप में किस समय प्राप्त की है यह जानना चाहिए । अधिक भूतकालीन प्राप्त सूचना का उपयोग करना लाभदायी नहीं होता है ।
- गौण सूचना का उपयोग करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि प्राथमिक आंकडों का कार्यक्षेत्र क्या है. वे किस क्षेत्र के लिए एकत्र किए है और उसमें उपयोग में लिए गए पद, वर्तमान अनुसंधान के अनुकूल है या नहीं वह जानना आवश्यक है ।
- जिस सूचना को हम उपयोग करना चाहते है ऐसी सूचना अन्य किसी व्यक्ति या संस्था ने एकत्रित की हो तो उसका भी तुलानात्मक अभ्यास कर लेना चाहिए, और जिसमें से अधिक योग्य सूचनाओं का उपयोग करना चाहिए ।