GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप – 1

Gujarat Board GSEB Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप – 1 Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Gujarat Board Textbook Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप – 1

GSEB Class 11 Organization of Commerce and Management धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप – 1 Text Book Questions and Answers

स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प पसन्द करके लिखिए :

प्रश्न 1.
धन्धाकीय साहस का सबसे प्राचीन व सरल स्वरूप कौन-सा है ?
(A) व्यक्तिगत मालिकी
(B) साझेदारी संस्था
(C) सहकारी समिति
(D) कम्पनी स्वरूप
उत्तर :
(A) व्यक्तिगत मालिकी

प्रश्न 2.
धन्धे के कौन-से स्वरूप में मालिक, स्थापक और संचालक एक ही होता है ?
(A) संयुक्त साहस
(B) सरकारी कम्पनी
(C) सहकारी समिति
(D) व्यक्तिगत मालिकी
उत्तर :
(D) व्यक्तिगत मालिकी

प्रश्न 3.
संयुक्त हिन्दू परिवार के धन्धे का संचालन किसके द्वारा होता है ?
(A) मालिक
(B) कर्ता
(C) प्रबन्धक
(D) साझेदार
उत्तर :
(B) कर्ता

प्रश्न 4.
हिन्दू अविभाजित परिवार की संस्था में सदस्य पद कैसे प्राप्त होता है ?
(A) करार से
(B) जन्म से
(C) पूँजी निवेश से
(D) संचालन करने से
उत्तर :
(B) जन्म से

प्रश्न 5.
भारतीय साझेदारी अधिनियम कब अस्तित्व में आया ?
(A) 1932
(B) 1956
(C) 1960
(D) 2013
उत्तर :
(A) 1932

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 6.
साझेदारी संस्था में कम से कम कितने सदस्य होते है ?
(A) 2
(B) 3
(C) 5
(D) 7
उत्तर :
(A) 2

प्रश्न 7.
बैंकिंग साझेदारी में अधिक से अधिक कितने साझेदार होते है ?
(A) 20
(B) 12
(C) 15
(D) 10
उत्तर :
(D) 10

प्रश्न 8.
साझेदारी अधिनियम के अनुसार साझेदारी संस्था का पंजियन कराना ………………………….
(A) अनिवार्य है
(B) अनिवार्य नहीं
(C) लाभदायी नहीं
(D) संस्था के हित में नहीं
उत्तर :
(B) अनिवार्य नहीं

प्रश्न 9.
धन्धा आरम्भ करने के लिए समयमर्यादा के साथ रचित साझेदारी अर्थात् …………………….
(A) सीमित दायित्ववाली संस्था
(B) ऐच्छिक साझेदारी संस्था
(C) निष्क्रीय साझेदारी संस्था
(D) निश्चित समय की साझेदारी संस्था
उत्तर :
(D) निश्चित समय की साझेदारी संस्था

प्रश्न 10.
जिस संस्था का आयुष्य साझेदारों की इच्छा पर आधारित हो ऐसी साझेदारी संस्था अर्थात् ……………………..
(A) निश्चित समय की साझेदारी संस्था
(B) ऐच्छिक साझेदारी
(C) नाम की साझेदारी
(D) निष्क्रिय साझेदारी
उत्तर :
(B) ऐच्छिक साझेदारी

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 11.
सामान्य साझेदारी में अधिक से अधिक कितने सदस्य हो सकते है ?
(A) 10
(B) 20
(C) 30
(D) 50
उत्तर :
(B) 20

प्रश्न 12.
साझेदारी करार कैसा हो सकता है ?
(A) लिखित
(B) मौखिक
(C) लिखित व मौखिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर :
(C) लिखित व मौखिक

प्रश्न 13.
इनमें से कौन-से स्वरुप से आर्थिक सत्ता का केन्द्रीकरण घटा है ?
(A) एकाकी व्यापार
(B) सरकारी कम्पनी
(C) निजी कम्पनी
(D) सहकारी समिति
उत्तर :
(A) एकाकी व्यापार

प्रश्न 14.
इनमें से कौन-सा साझेदार संस्था में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेता ?
(A) अवयस्क साझेदार
(B) सक्रिय साझेदार
(C) नाम मात्र का साझेदार
(D) निष्क्रिय साझेदार
उत्तर :
(D) निष्क्रिय साझेदार

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए :

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत मालिकी (Sole Proprietorship/Individual Proprietorship)
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी अर्थात् एक ऐसा व्यापार जिसकी मालिकी, संचालन और नियंत्रण एक ही व्यक्ति के हस्तक हो । एक ही व्यक्ति पूँजी निवेश करके, धन्धे को आरम्भ करे, क्रय-विक्रय व धन्धे का विकास करे तथा धन्धे के सभी परिणाम लाभ व हानि स्वयं सहन करें ।

प्रश्न 2.
व्यक्तिगत मालिकी में मालिक का दायित्व कैसा होता है ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी में मालिक का दायित्व असीमित होता है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 3.
कर्ता किसे कहते हैं ?
उत्तर :
संयुक्त हिन्दू परिवार नामक संस्था में परिवार के बड़े-बुजुर्ग व्यक्ति के हाथ में संचालन होता है, जिसे कर्ता कहा जाता है ।

प्रश्न 4.
हिन्दू अविभाजित परिवार की संस्था में कर्ता का दायित्व कैसा होता है ?
उत्तर :
कर्ता का दायित्व असीमित होता है ।

प्रश्न 5.
साझेदारी संस्था में निर्णय किस तरह लिए जा सकते है ?
उत्तर :
साझेदारी संस्था में निर्णय लेते समय सम्बन्धित बात पर आवश्यक चर्चा-विचारणा होती है । प्रत्येक साझेदार का मंतव्य जानने के बाद में धन्धे के हित में सर्व सहमति से निर्णय लिया जाता है ।

प्रश्न 6.
साझेदारी संस्था का संचालन कौन करता है ?
उत्तर :
साझेदारी संस्था का संचालन सभी साझेदार संयुक्त रूप से कर सकते है । करार के अनुसार कोई एक या एक से अधिक साझेदार भी संचालन कर सकते है ।

प्रश्न 7.
व्यक्तिगत मालिकी में धंधे का लाभ तथा हानि किसे सहन करने पड़ते है ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी में धंधे के लाभ-हानि में मालिक का कोई भागीदार नहीं होता, लाभ हो या हानि मालिक को अकेले ही सहना पड़ता है।

प्रश्न 8.
अमर्यादित जिम्मेदारी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
धंधे की संपत्ति धंधे का ऋण चुकाने के लिये पूर्ण प्रमाण में न हो तो जितनी रकम कम हो रही हो उतनी रकम मालिक की अपनी निजी संपत्ति बेचकर भी चुकानी पड़ती है ।

प्रश्न 9.
व्यक्तिगत मालिकी में मालिक पूँजी किस तरह एकत्रित करता है ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी में मालिक खुद अपने घर में से या खुद की निजी शान पर मित्रों से, बैंक से या अन्य कहीं से उधार लेकर पूँजी एकत्रित करता है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 10.
व्यक्तिगत मालिकी में मालिक बड़े प्रमाण में साहस करने से क्यों घबराता है ?
उत्तर :
अमर्यादित जिम्मेदारी तथा हानि के भय से व्यक्तिगत धंधे का मालिक बड़े साहस करने से डरता है ।

प्रश्न 11.
व्यक्तिगत मालिकी में धंधे का संचालन किस तरह होता है ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी में धंधे का मालिक खुद आवश्यकता पड़े तब परिवार के सदस्य या कर्मचारियों की सहायता से सम्पूर्ण धंधे का संचालन करता है ।

प्रश्न 12.
साझेदारी संस्था में अधिक से अधिक कितने साझेदार हो सकते हैं ?
उत्तर :
बैंकिंग धन्धा करनेवाली संस्था में अधिक से अधिक दस और अन्य किसी भी व्यवस्था में अधिक से अधिक बीस साझेदार हो सकते है ।

प्रश्न 13.
साझेदारी का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर :
साझेदारी का मुख्य उद्देश्य धन्धा करके लाभ प्राप्त करना तथा उसका वितरण करना है ।

प्रश्न 14.
साझेदारी का विसर्जन कब होता है ?
उत्तर :
यदि कोई साझेदार पागल हो जाये, उसकी मृत्यु हो जाये या वह दिवालिया हो जाये तो संस्था का विसर्जन हो जाता है ।

प्रश्न 15.
सक्रिय साझेदार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
सक्रिय साझेदार अर्थात् ऐसा साझेदार जो धन्धे में पूँजी लगाता है और लाभ में हिस्सा लेता है तथा धन्धे का संचालन करता है । उसे सक्रिय साझेदार कहते हैं ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 16.
मानद साझेदार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
जिस व्यक्ति ने साझेदार का करार न किया हो, संस्था में पूँजी नहीं लगाई हो तथा लाभ में भी भाग न लेता हो परंतु उसका व्यवहार इस प्रकार का हो कि त्राहित उसे साझेदार समझे ऐसे व्यक्ति को मानद साझेदार कहते हैं ।

प्रश्न 17.
संयुक्त हिन्दू परिवार संस्था में कर्ता कौन होता है ? उसके अन्य सदस्यों की जिम्मेदारी कैसी होती है ?
उत्तर :
संयुक्त हिन्दू परिवार में परिवार का सबसे बड़ी उम्र का सदस्य उसका कर्ता होता है । उसके अन्य सदस्यों की जिम्मेदारी उसके दायित्व तक सीमित रहती है ।

प्रश्न 18.
संयुक्त हिन्दू परिवार की सदस्यता कैसे प्राप्त होती है ?
उत्तर :
परिवार में जन्म लेनेवाला पुरुष व्यक्ति अपने आप संयुक्त हिन्दू परिवार का सदस्य बन जाता है । इसका सदस्य-पद जन्म से प्राप्त होता है।

प्रश्न 19.
साझेदारी में निर्णय किस तरह से लिया जाता है ?
उत्तर :
साझेदारी में सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय सर्वानुमति से लिये जाते हैं, जब कि सामान्य बातों के निर्णय बहुमति से लिये जाते हैं ।

3. निम्न प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त में दीजिए ।

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत मालिकी में असीमित दायित्व मालिक के लिए किस तरह नुकसानकारक है ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी में मालिक का दायित्व असीमित होता है । व्यक्तिगत मालिकी के धन्धे में ऋण या उधार अधिक हो जाने । की स्थिति में सम्पत्तियों को भी बेचकर भरपाई करनी पड़ती है । जिसके कारण समग्र परिवार प्रभावित हो सकता है तथा कई बार बहुत ही अधिक हानि होने की स्थिति में ऐसा व्यापार अधिक प्रभावित होता है क्योंकि मालिक का दायित्व असीमित होता है ।

प्रश्न 2.
व्यक्तिगत मालिकी में रहस्यों की गोपनियता किस तरह सम्भव बनती है ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी के धन्धे में एक ही व्यक्ति सर्वसत्ताधीश होता है । अत: धन्धे का मालिक अपने धन्धे की अमुक बातों गोपनिय रखना अधिक लाभदायी समझता है, जैसे क्रय सम्बन्धी रहस्य, लाभ सम्बन्धी रहस्य, विभिन्न सौदे, हिसाबकिताब एवं व्यापार सम्बन्धी लिए गए निर्णय जब तक अन्य किसी व्यक्ति अथवा संस्था को बताया नहीं जायेगा तब तक रहस्यों की गोपनियता को बनाये रखा जाता है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 3.
असीमित दायित्व किसे कहते हैं ?
उत्तर :
असीमित दायित्व अर्थात् धन्धे की सम्पत्ति धन्धे के ऋण अथवा उधार रकम को चुकाने के लिए पर्याप्त न हो तब जितनी रकम कम हो रही हो उतनी रकम मालिक को अपनी निजी सम्पत्ति (जैसे जमीन, मकान, दुकान, दागिने – गहने अथवा आभूषण आदि) को बेचकर भी उधार/ऋण चुकाना पड़ता है ।

प्रश्न 4.
भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 के अनुसार साझेदारी की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर :
‘साझेदारी ऐसे व्यक्तियों के मध्य का सम्बन्ध है, जो सभी के द्वारा या सभी की ओर से किसी एक के द्वारा चलाया जानेवाला धन्धे का लाभ विभाजन के लिए सहमत हुए होते है ।’

प्रश्न 5.
नाबालिक/अवयष्क व्यक्ति साझेदार कब बन सकता है ?
उत्तर :
अवयस्क व्यक्ति भारतीय कानून के अनुसार साझेदार नहीं बन सकता केवल वयस्क व्यक्ति ही करार के लिए समर्थ है । व वयस्क व्यक्ति ही साझेदार बन सकता है ।

जब किसी साझेदारी संस्था में साझेदार की मृत्यु हो जाए तब उनके नाबालिक बालक को साझेदार बनाया जा सकता है ।

प्रश्न 6.
माना हुआ साझेदार प्रदर्शन द्वारा साझेदार किसे कहते हैं ?
उत्तर :
यदि कोई व्यक्ति ने साझेदारी करार न किया हो, धन्धे में पूँजी न लगाई हो तथा लाभ में हिस्सा भी न लेता हो, परन्तु उनके व्यवहार के आधार पर वोहित/तीसरा व्यक्ति जिन्हें साझेदार के रूप में मान लेता हो, तो उन्हें माना हुआ साझेदार कहा जाता है ।

प्रश्न 7.
साझेदारी करारपत्र (Partnership Deed) अर्थात् क्या ?
उत्तर :
साझेदारी करारपत्र का अर्थ : साझेदारी करार से अस्तित्व में आती है । इस करार में साझेदारी की शर्ते निश्चित की जाती है । साझेदारी करार यह साझेदारों से संबंधित सभी बातों का समावेश करनेवाला दस्तावेज है । इसके द्वारा पेढ़ी के कार्य तथा संचालन से संबंधित बातें जैसे साझेदारों के आपसी अधिकार, फर्ज और जिम्मेदारी वगैरह निश्चित होती हैं । यह करार लिखित, मौखिक या गर्भित हो सकता है । यह करार लिखित होना हितावह है । साझेदारों के बीच मतभेद उत्पन्न होने पर इस करारपत्र के आधार पर उसका निराकरण किया जाता है । इस करार को साझेदारों का आर्टिकल्स या कानून कहा जा सकता है । इस करार को तैयार करते समय विशिष्ट व्यक्तियों की सलाह ली जाती है । अगर यह करार लिखित हो तो स्टैम्प कागज पर इसे तैयार किया जाता है । उस पर सभी साझेदारों की सही होती है ।

प्रश्न 8.
पंजीकृत कराने से आप क्या समझते हैं ? साझेदारी संस्था में पंजीकृत कराने की विधि समझाइए ।
उत्तर :
भारत में साझेदारी पेढ़ी का पंजीकृत कराने की शुरूआत 1932 के भागीदारी कानून के तहत हुई है । इस कानून के अनुसार साझेदारी संस्था को पंजीकृत कराना अनिवार्य नहीं, परंतु ऐच्छिक है । अगर पेढ़ी पंजीकृत न की गई हो तो उससे होनेवाली हानि को सहने की बजाय पंजीकृत करवाकर उसके लाभ प्राप्त करना हितावह है ।

1932 के भारतीय साझेदारी कानून के अंतर्गत कोई भी साझेदारी पेढ़ी उस विस्तार के रजिस्ट्रार से पंजीकृत करवाई जा सकती है । यह रजिस्ट्रार राज्य सरकार के द्वारा साझेदारी संस्था को दर्ज करने के लिये नियुक्त किया गया अधिकारी है । पेढ़ी को पंजीकृत करवाने के लिए एक निश्चित पत्रक में निम्न विवरण जरूरी फीस के साथ रजिस्ट्रार को भेजना पड़ता है :

  1. संस्था का नाम
  2. संस्था का पता अथवा धन्धे का मुख्य स्थान
  3. यदि अन्य स्थानों पर साझेदारी का धन्धा चलता हो तो उन स्थानों के नाम
  4. प्रत्येक साझेदार की प्रवेश तारीख
  5. साझेदारों का पूरा नाम और पता
  6. संस्था का समय
  7. साझेदारों में लाभ व हानि का प्रमाण ।

इस पत्रक पर सभी साझेदारों के हस्ताक्षर होना चाहिए । रजिस्ट्रार उपरोक्त पत्रक मिलने पर उसकी जाँच कर साझेदारी पेढ़ी को पंजीकृत करता है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 9.
साझेदारी संस्था के पंजीकरण से होनेवाले लाभ-हानि बताइए ।
उत्तर :
साझेदारी संस्था के पंजीकरण से लाभ :

  1. साझेदारी पेढ़ी त्राहित पक्ष पर दावा कर सकती है और न्याय प्राप्त कर सकती है ।
  2. संस्था का एक साझेदार दूसरे साझेदार या साझेदारों या संस्था के विरुद्ध दावा कर सकता है ।
  3. नया शामिल होनेवाला साझेदार अपने स्वयं के अधिकार और हिस्से के लिए न्याय माँग सकता है ।
  4. निवृत्त होनेवाला साझेदार सामान्य जनता को सार्वजनिक नोटिस देकर अपनी स्वयं की निवृत्ति के बाद पेढ़ी की जिम्मेदारी से मुक्त हो सकता है ।
  5. बाहरी दुनिया को पेढ़ी के अस्तित्व की जानकारी मिलती है ।

साझेदारी संस्था पंजीकृत नहीं कराने से होनेवाली हानियाँ :

  1. संस्था किसी त्राहित पक्ष के सामने दावा नहीं कर सकती ।
  2. संस्था का कोई भी साझेदार अन्य साझेदार पर दावा नहीं कर सकता ।
  3. कोई भी साझेदार साझेदारी संस्था पर दावा नहीं कर सकता ।

प्रश्न 10.
साझेदारी किन धन्धों के लिये अनुकूल मानी जाती है ? ।
उत्तर : इन धन्धों के लिये साझेदारी अधिक अनुकूल है :

  1. जिसमें व्यक्तिगत मालिकी के धत्थे की अपेक्षा पूँजी की अधिक आवश्यकता पड़ती हो । जैसे – थोकबंद व्यापार
  2. जिसमें अधिक प्रमाण में और विविध कार्यशक्ति की आवश्यकता पड़ती हो और श्रम-विभाजन तथा विशिष्टीकरण की आवश्यकता हो । जैसे – रेडीमेड कपड़ा बनाकर विक्रय करने का धन्धा ।
  3. जो धन्धा स्थापित करने के बाद स्थिर और व्यवस्थित बनने पर लंबा समय न लगता हो ।

प्रश्न 11.
साझेदारी व्यक्तिगत मालिकी की अपेक्षा किन-किन बातों में अधिक अनुकूल है ?
उत्तर :
साझेदारी व्यक्तिगत मालिकी की अपेक्षा निम्न बातों में अधिक अनुकूल है :

  1. व्यक्तिगत मालिकी की अपेक्षा अधिक पूँजी एकत्रित हो सकती है ।
  2. व्यक्तिगत मालिकी की अपेक्षा साझेदारों की कार्य-शक्ति अधिक होती है ।
  3. निर्णय सचोट, परिपक्व और संतुलित होने की संभावना रहती है ।
  4. विविध प्रकार की शक्ति, अनुभव, कुशलता का लाभ प्राप्त किया जा सकता है ।
  5. जिनके पास पूँजी न हो परंतु मात्र कुशलता हो वह भी इसका लाभ उठा सकते हैं ।
  6. श्रम-विभाजन हो सकता है, विशिष्टीकरण का लाभ लिया जा सकता है ।
  7. धंधे का जोखिम अनेक साझेदारों के बीच बाँट जाता है ।

प्रश्न 12.
किन-किन बातों में साझेदारी व्यक्तिगत मालिकी की अपेक्षा कमजोर है ?
उत्तर :
निम्न बातों में साझेदारी व्यक्तिगत मालिकी से कमजोर है :

  1. निर्णय लेने में विलंब होता है, इससे त्वरित निर्णय का लाभ नहीं लिया जा सकता ।
  2. निर्णय सर्वसंमति से लेने से निर्णयों में एकसूत्रता नहीं रहती ।
  3. कोई भी एक साझेदार अधिक मेहनत कर लाभ अकेले नहीं प्राप्त कर सकता । खुद मेहनत करे और लाभ सभी में बँट जाये तो साझेदारों का लाभ करने का उत्साह कम रहता है ।
  4. धन्धे की गुप्तता नहीं रहती ।
  5. मतभेदों की वजह से साझेदारी की आय अस्थिर और कम है ।
  6. धंधे के महत्त्वपूर्ण निर्णय सर्वसंमति से लिये जाते हैं ।

प्रश्न 13.
व्यक्तिगत मालिकी का स्वरूप किन संजोगों में अनुकूल गिना जाता है ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी निम्न संयोगों में अधिक अनुकूल और योग्य है :

  1. जहाँ पूँजी का प्रमाण कम हो
  2. जहाँ व्यापार का संचालन सरल हो
  3. जहाँ जोखिम कम प्रमाण में हो
  4. जहाँ त्वरित निर्णय की आवश्यकता हो
  5. जहाँ ग्राहकों की आवश्यकता, अभिरुचि और फैशन महत्त्व के हो
  6. जहाँ बाजार स्थानिक हो ।

प्रश्न 14.
व्यक्तिगत मालिकी को धन्धाकीय प्रशिक्षण केन्द्र क्यों कहा जाता है ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी में सामान्य व्यक्तियों का अधिक प्रमाण देखने को मिलता है । प्रारंभ में वह एकाकी व्यापार प्रारंभ करते हैं । समय बीतने पर कुशलता प्राप्त करते हैं और अनुभवी बनते हैं । इस तरह, कुशल व्यापारी बनने के लिये व्यक्तिगत मालिकी स्कूल के रूप में प्रशिक्षण देने का कार्य करती है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 15.
व्यक्तिगत मालिकी संस्था किसे कहते हैं ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी एक ऐसी संस्था है कि जिसमें मालिकी और संचालन एक ही व्यवस्था के द्वारा किया जाता है । एक ही व्यक्ति व्यापार का विचार कर, पूँजी का विनियोग कर, व्यापार का प्रारंभ करे और व्यापार के कार्य जैसे क्रय-विक्रय, वसूली वगैरह खुद ही सँभाल कर व्यापार के लाभ या हानि को खुद ही भोगे उसे व्यक्तिगत मालिकी संस्था कहा जायेगा ।

प्रश्न 16.
व्यक्तिगत मालिकी में गलत निर्णय की संभावना क्यों है ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी में व्यापारी को सभी निर्णय खुद ही करने होते हैं । उसे दूसरे का अनुभव या बुद्धि का लाभ नहीं मिल सकता । अर्थात् व्यक्ति चाहे कितना भी होशियार हो इसके बावजूद ऐसे व्यक्तिगत निर्णय भूल से भरे हुए उतावलापनवाले और खामीयुक्त होने से व्यापार के लिये खतरनाक भी होते हैं ।

प्रश्न 17.
व्यक्तिगत मालिकी की स्थापना क्यों सरल है ?
उत्तर :
व्यापारी व्यवस्था के दूसरे भी स्वरुप की अपेक्षा इस प्रकार की धंधादारी संस्था की स्थापना का कार्य खूब सरल है । किसी भी तरह के दस्तावेज तैयार नहीं करने पड़ते । किसी की संमति प्राप्त नहीं करनी होती । किसी कानूनी कार्रवाई से नहीं गुज़रना होता । कोई भी व्यक्ति सामान्य फीस देकर संमति प्राप्त कर कानूनन धन्धा कर सकता है ।

प्रश्न 18.
व्यक्तिगत मालिकी में धंधे के रहस्य गुप्त रखे जा सकते हैं ।
उत्तर :
धंधे की अमुक बातें खुद के प्रतिस्पर्धकों से गुप्त रखना व्यापारी के लिये लाभदायक है । व्यक्तिगत मालिकी में एक ही व्यक्ति सर्वसत्ताधीश है । इससे वह व्यापार के निर्णय, सौदा और हिसाब गुप्त रख सकते हैं । अर्थात् रहस्यों की गुप्तता बनी रह सकती है ।

प्रश्न 19.
व्यक्तिगत मालिकी का धंधा विकसित नहीं किया जा सकता, क्यों ?
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी में विकास के लिये आवश्यक पूँजी, बड़े पैमाने पर कार्यशक्ति, लंबा आयुष्य वगैरह के लाभ प्राप्त नहीं हो सकते तथा अमर्यादित जिम्मेदारी के कारण अन्य व्यक्ति रकम लगाने को तैयार नहीं होते । इस तरह, व्यक्तिगत मालिकी में विकास की संभावना खूब कम रहती है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मुद्दासर दीजिए ।

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत मालिकी का अर्थ बताकर इसके लक्षण की सूची बताइए ।
अथवा
व्यक्तिगत मालिकी की व्याख्या एवं लक्षण समझाइए ।
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी का अर्थ : डॉ. जोन सुबीन के मतानुसार – “व्यक्तिगत व्यापार में एक ही व्यक्ति मालिक होता है और व्यापार खुद के नाम पर चलाता है ।” स्लेडन : “सम्पूर्णत: अपने अपने के लिए, पूर्णत: अपने आप द्वारा ।”

व्यक्तिगत मालिकी की व्याख्या निम्न शब्दों में दी जा सकती है “व्यक्तिगत मालिकी एक ऐसी व्यापारी व्यवस्था है जिसमें मालिकी और संचालन एक ही व्यवस्था के द्वारा किया जाता है । एक ही व्यक्ति व्यापार का विचार कर के पूंजी का विनियोग कर, व्यापार प्रारंभ करे और इस प्रकार खरीदी, विक्रय, वसूली इत्यादि कार्य खुद ही संभालता है तथा व्यापार के लाभ या हानि को खुद ही भोगता है ।

व्यक्तिगत मालिकी धंधेदारी व्यवस्था का सबसे पुराना स्वरूप है । व्यापार के प्रारंभ से ही यह आज तक अस्तित्व में है ।
लुईस हेन्री के मतानुसार : ‘एकाकी व्यापार यह व्यापार-व्यवस्था का एक स्वरूप है, जिसमें मुख्य स्थान पर एक ही व्यक्ति होता है, जो जिम्मेदार होते है, धन्धे के कार्यों की रचना करता है और अकेला ही असफलता की जोखिम उठाता है ।

व्यक्तिगत मालिकी के लक्षण :
व्यक्तिगत मालिकी के मुख्य लक्षण निम्नानुसार हैं :

  • मालिकी : व्यक्तिगत व्यापार में व्यापारी खुद ही धंधे का मालिक होता है । धंधे के सभी अधिकार और सत्ताएँ उसके हस्तक रहती है ।
  • संचालन : व्यक्तिगत मालिकी में मालिक खुद ही धंधे का संचालक होता है । हालांकि आवश्यकता पड़ने पर वह अन्य व्यक्ति की मदद लेता है । परंतु धंधे के संचालन की अंतिम जिम्मेदारी मालिक की गिनी जाती है ।
  • मालिकी और संचालन में एकता : व्यक्तिगत मालिकी में धंधे का संचालन धंधे के मालिक द्वारा ही किया जाता है । अर्थात् उसमें मालिकी और संचालन में एकता देखने को मिलती है । जबकि अन्य धंधादारी संस्थाओं में मालिकी और संचालन के बीच एकता का अभाव होता है ।
  • लाभ-हानि का वितरण : व्यक्तिगत व्यापार में मालिक खुद ही धंधे का परिणाम भोगता है । व्यापार में अगर लाभ हो तो वह उसे ही प्राप्त होता है और यदि हानि हो तो भी उसे ही सहन करना पड़ता है ।
  • कानूनन नियंत्रण : व्यक्तिगत मालिकी के लिए ‘जॉइंट स्टॉक कंपनी’ या ‘भागीदारी’ की तरह कोई खास कानून लागू नहीं पड़ते । देश के सामान्य कानून ही व्यक्तिगत मालिकी को लागू पड़ते हैं ।
  • अमर्यादित जिम्मेदारी : इसमें व्यापारी की जिम्मेदारी अमर्यादित होती है । अमर्यादित जिम्मेदारी अर्थात् अगर व्यापारी का ऋण उसकी मिल्कियत की अपेक्षा बढ़ जाए तो उसे खुद की निजी मिल्कत को बेचकर भी धंधे का ऋण चुकाना पड़ता है ।
  • कार्य की स्वतंत्रता : व्यापारी खुद ही धंधे का अंतिम निर्णायक है । उसे अपने खुद के व्यापार में कार्य करने की संपूर्ण स्वतंत्रता है । कार्य करते समय उसे किसी से भी पूछना नहीं होता । वह किसी भी धंधे को अपना सकता है । धंधे की नीति निश्चित कर सकता है और उसमें इच्छानुसार परिवर्तन कर सकता है ।
  • स्थापना की सरलता : व्यक्तिगत व्यापार में स्थापना विधि अत्यंत सरल है । इसके लिए किसी भी कानुनी बात का पालन नहीं करना होता । सरकार के द्वारा नियंत्रित किए गए या गैरकानूनी धंधों के सिवाय कोई भी धंधा किया जा सकता है।
  • मर्यादित कार्य-क्षेत्र : इसका कार्य-क्षेत्र मर्यादित है । व्यापारी उसकी पूँजी और शक्ति की मर्यादा में रहकर खुद का धंधा चलाता है । वह मुख्यतः क्रय-विक्रय और वसूली से संबंधित कार्य करता है ।
  • पूँजी की मालिकी : धंधे की पूँजी पर संपूर्ण अधिकार व्यापारी का है । वह खुद या अन्य के पास से रकम उधार लाकर धंधा करता है । धंधे के लिए आवश्यक पूर्ति की व्यवस्था खुद करता है ।
  • धंधे का स्वैच्छिक प्रारंभ और अंत : व्यापार का एक अति महत्त्व का लक्षण यह है कि वह अपनी ही इच्छानुसार धंधे का प्रारंभ कर सकता है और उसका अंत भी कर सकता है । इसके लिए कोई भी कानूनी रीति नहीं अपनानी पड़ती ।
  • मालिकी का परिवर्तन : व्यक्तिगत व्यापारी धंधे का परिवर्तन चाहे तो धंधा बेचकर कर सकता है । इसके लिए किसी की सम्मति की आवश्यकता नहीं रहती ।
  • रहस्य की गुप्तता : व्यक्तिगत मालिकी में मालिक खुद ही धंधे का संचालन करता है । परिणामस्वरूप धंधे की गुप्तता संभव है ।

प्रश्न 2.
साझेदारी संस्था का अर्थ व लक्षण की सूची बनाइए ।
अथवा
साझेदारी संस्था के लक्षण समझाइए ।
उत्तर :
साझेदारी संस्था का अर्थ : साधारण शब्दों में साझेदारी दो या दो से अधिक व्यक्तियों का एक समूह है, जो व्यापार द्वारा लाभार्जन करने के उद्देश्य से बनता है ।

दूसरे शब्दों में दो या अधिक व्यक्ति पारस्परिक लाभ के उद्देश्य से मिलकर जब वैध व्यापार करने के लिए सहमत होते हैं तब इसे साझेदारी कहा जाता है ।

साझेदारी संस्था की परिभाषाएँ (Definition of Partnership Firm) :
डॉ. ज्योन शुबिन : “दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी व्यापार को चलाने का संयुक्त दायित्व अपने ऊपर लेकर लिखित या मौखिक करार करके साझेदारी की स्थापना कर सकते हैं ।”

श्री ल्युइस हेन्री : “करार करने में सक्षम हो तथा लाभ के उद्देश्य से संयुक्त रूप से किसी प्रकार का धन्धा करने के लिए सहमत हुए हों ऐसे मनुष्यों के बीच का सम्बन्ध अर्थात् साझेदारी संस्था ।”

किम्बाल तथा किम्बाल के मतानुसार : “साझेदारी जैसा कि प्रायः कहा जाता है कि उन व्यक्तियों का समूह है जिन्होंने किसी धन्धे को चलाने के लिए पूँजी तथा सेवाओं को संयुक्त रूप से लगाया है ।”

भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 के अनुसार : “साझेदारी यह ऐसे व्यक्तियों के मध्य का सम्बन्ध है, जो कि सभी द्वारा या सभी , की ओर से किसी एक द्वारा चलाए जानेवाले धन्धे का लाभ विभाजन हेतु सहमत हुए हो ।”

साझेदारी संस्था के लक्षण (Characteristics of Partnership Firm) :

(1) करार-जन्य सम्बन्ध : साझेदारी संस्था साझेदारी के बीच लिखित या मौखिक करार के आधार पर अस्तित्व में आती हैं । परस्पर एक-दूसरे के प्रति व्यवहार-बर्ताव तथा समझ द्वारा साझेदारी अस्तित्व में आती है ।

(2) लाभ का उद्देश्य एवं लाभ का वितरण : साझेदारी संस्था का उद्देश्य धन्धा करना एवं लाभ प्राप्त कर उसका वितरण करना होता है । इसके अलावा दूसरे किसी उद्देश्य के लिए एकत्रित हुए हों तो उसे साझेदारी नहीं कहा जायेगा । जैसे – दो या अधिक व्यक्ति धार्मिक या सेवा के उद्देश्य के लिये मंदिर, क्लब, जीमखाना या लायब्रेरी प्रारंभ करें तो साझेदारी नहीं कहलायेगी ।

(3) धंधा होना अनिवार्य : साझेदारी में कोई भी उद्योग, व्यापार, वाणिज्य, धन्धा, साहस या प्रत्यक्ष सेवा के द्वारा चलाया जा सकता है । अगर साझेदारी किसी धंधे के लिये न चलाई जाये तो उसे साझेदारी नहीं कहेंगे ।

(4) साझेदारों की संख्या पर नियंत्रण : साझेदारी में कम से कम दो और अधिक से अधिक बीस व्यक्तियों की संख्या होनी चाहिए । अगर शराफी कार्य करनेवाली बैंकिंग पेढ़ी हो तो अधिक से अधिक दस साझेदार हो सकते हैं । इस प्रकार एक व्यक्ति से साझेदारी प्रारंभ नहीं हो सकती । अगर साझेदारों की संख्या शराफी सेवा में 10 से बढ़ जाये तो वह साझेदारी कानून की दृष्टि से गैरकानूनी घोषित होती है ।

(5) सभी साझेदार या सभी की तरफ से किसी एक साझेदार के द्वारा संचालन : इसका अर्थ यह हुआ कि प्रत्येक साझेदार दूसरे साझेदार का एजेन्ट और अभिकर्ता (Agent) है । पेढ़ी की तरफ से कार्य करने का उन्हें गर्भित अधिकार है । इस तरह धन्धा चलानेवाले साझेदार जो कार्य करें या जो जिम्मेदारी उठाएँ वह सर्व साझेदारों को बंधनकर्ता है ।

(6) साझेदारों की जिम्मेदारी अमर्यादित : व्यक्तिगत मालिकी के साहस की तरह सभी साझेदारों की जिम्मेदारी अमर्यादित है । अगर पेढ़ी का ऋण उसकी संपत्ति की अपेक्षा बढ़ जाये तो साझेदारों को उसकी निजी और व्यक्तिगत संपत्तियों का विक्रय कर पेढ़ी का ऋण चुकाना पड़ता है । भारतीय कानून के अनुसार पेढ़ी का ऋण चुकाने के लिये हरेक साझेदारों की जिम्मेदारी व्यक्तिगत तथा संयुक्त गिनी जाती है ।

(7) पूँजी : सामान्य रूप से प्रत्येक साझेदार पेढ़ी में निश्चित किये गये प्रमाण में साझेदार पूँजी लगाता है । हालांकि ऐसा बंधन नहीं है कि सभी साझेदार धंधे में पूँजी लगाएँ । कुछ निश्चित व्यक्ति साझेदार होने पर भी पूँजी न लगाएँ ऐसा भी हो सकता है । इसी तरह सभी साझेदार एकसमान पूँजी लगाएँ यह भी जरूरी नहीं है । प्रत्येक साझेदार कितनी पूँजी लगायेगा यह साझेदारी कानून में बताया गया होता है ।

(8) स्थापना-विधि : साझेदारी की स्थापना सरलता से हो सकती है । इसके लिये कानून की अटपटी विधि नहीं है । साझेदारी की स्थापना के लिये मात्र करार होना अनिवार्य है । यह करार लिखित, मौखिक या गर्भित भी हो सकता है ।

(9) मालिकी में परिवर्तन : साझेदारी में साझेदार को खुद के भाग का परिवर्तन करना हो तो सभी साझेदारों की संमति अनिवार्य । है । सभी की संमति के बिना साझेदारी के हिस्से का परिवर्तन नहीं हो सकता ।

(10) धंधे का आयुष्य : साझेदारी का आयुष्य व्यक्तिगत मालिकी की तरह छोटा है । साझेदारी को जोइन्ट स्टॉक कंपनी की तरह कानून के द्वारा अलग व्यक्तित्व नहीं दिया गया है । इससे किसी भी साझेदार की मृत्यु होने पर, दिवालिया होने पर या पागल होने पर साझेदारी का विसर्जन होता है । इसके बावजूद प्रत्येक साझेदार की संमति से किसी भी साझेदार का हिस्सा परिवर्तन किया जा सकता है । परिणामस्वरुप साझेदारी पेढ़ी लंबी आय रखती है।

(11) मालिकी और संचालन में एकता : साझेदारी में व्यक्तिगत मालिकी की तरह ही मालिक और संचालक होते हैं । इस तरह साझेदारी में मालिकी और संचालन में एकता देखने को मिलती है । संचालन कार्यों का वितरण साझेदारों के बीच किया जाता है । प्रत्येक साझेदार को ज्ञान, अनुभव और कुशलता के आधार पर कार्य सौंपा जाता है । इस तरह, विविध व्यक्तियों के ज्ञान, अनुभव और कुशलता का महत्तम लाभ मिलता है ।

(12) कानूनी नियंत्रण : साझेदारी के नियंत्रण के लिये 1932 का भारतीय साझेदारी कानुन अमल में है । इस कानून में साझेदारों के अधिकार, फर्ज, सत्ता, पंजीकरण वगैरह दिया गया है । सभी साझेदार संयुक्त रूप से पेढ़ी के रूप में जाने जाते हैं, इसके बावजूद पेढ़ी को साझेदारों से अलग अस्तित्व प्राप्त नहीं होता ।

(13) निर्णय-शक्ति : साझेदारी में सामान्य बातों के बारे में निर्णय बहुमति से लिया जाता है । इसके बावजूद कोई महत्त्वपूर्ण निर्णय जैसे धंधे में परिवर्तन करना, साझेदार को अलग करना वगैरह सभी साझेदार की संमति से लिया जाता है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 3.
‘व्यक्तिगत मालिकी यह धन्धे की प्रशिक्षण की पाठशाला है ।’ समझाओ ।
उत्तर :
उपरोक्त कथन सत्य है, क्योंकि व्यक्तिगत मालिकी का धन्धा अधिक प्रमाण में देखने को मिलता है । प्रारम्भ में तो एकाकी व्यापार आरम्भ करते है । तथा धीरे-धीरे समय बीतने पर कुशलता प्राप्त करते है व अनुभवी बनते है । व्यक्तिगत मालिकी के व्यापार में मालिक क्रय का कार्य, विक्रय का कार्य, ग्राहकों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने आदि के रूप में विशिष्ट ज्ञान ऐसे व्यापार से मिलता है । इस तरह कुशल व्यापारी बनने के लिए व्यक्तिगत मालिकी का धन्धा प्रशिक्षण की पाठशाला कहलाता है ।

प्रश्न 4.
प्रत्येक साझेदार दूसरे साझेदार का एजेन्ट है । यह विधान समझाइए ।
उत्तर :
उपरोक्त विधान सत्य है क्योंकि साझेदारी संस्था में प्रत्येक साझेदार दूसरे साझेदार का प्रतिनिधि/एजेन्ट कहलाता है तथा एक साझेदार द्वारा किये गये कार्य के लिए दूसरे साझेदार जिम्मेदार होते है । साझेदारी संस्था में कार्यों का विभाजन किया जाता है, कोई क्रय । का कार्य, कोई विक्रय तथा कोई अन्य कार्य व कोई संचालन का कार्य करता है । इस तरह विभाजन होने से साझेदारी संस्था में प्रत्येक साझेदार दूसरे साझेदार का प्रतिनिधि (Agent) कहलाता है ।

प्रश्न 5.
व्यक्तिगत मालिकी और साझेदारी संस्था के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी तथा साझेदारी पेढ़ी :
GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1 1
GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1 2

5. निम्न प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिए :

प्रश्न 1.
संयुक्त हिन्दू परिवार हिन्दू अविभाजित परिवार का अर्थ एवं लक्षण स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
अर्थ : हिन्दू अधिनियम के अनुसार धन्धा वंश परम्परागत है । वारिसदार के रूप में प्राप्त धन्धा अविभाजित हिन्दू परिवार को संयुक्त हिन्दू परिवार (JHF – Joint Hindu Family) अथवा हिन्दू अविभाजित परिवार HUF – Hindu Undivided Family) की संस्था कहा जाता है । परिवार के पुरुष सदस्य इसके सदस्य कहलाते है । ऐसी संस्था का संचालन परिवार के बड़े-बुजुर्ग करते है, जिसे कर्ता कहा जाता है । यदि परिवार में सबसे बड़े व्यक्ति संचालन करना न चाहे तो उनके बाद के व्यक्ति को संचालन सौंपा जाता है । ऐसी संस्थाओं का अस्तित्व भारत व नेपाल में देखने को मिलता है ।

लक्षण :

  1. संयुक्त हिन्दू परिवार की संस्था कानून (हिन्दू अधिनियम) द्वारा अस्तित्व में आती है ।
  2. यह धन्धाकर्ता या परिवार के अन्य सदस्य की मृत्यु होने पर भी धन्धा चालू रहता है । यदि कर्ता की मृत्यु हो जाती है, तो उनके पश्चात् का बड़ा व्यक्ति कर्ता बनता है ।
  3. संयुक्त हिन्दू परिवार का धन्धा परिवार के पिता अथवा परिवार के सबसे बड़े सदस्य के द्वारा चलाया जाता है । उसे ‘कर्ता’ या ‘व्यवस्थापक’ कहा जाता है ।
  4. कर्ता अपनी मर्जी से धंधे का संचालन करता है ।
  5. संचालन में भाग लेने का दूसरे सदस्यों का कोई अधिकार नहीं है । वह सिर्फ मुक्त होने की मांग कर सकते हैं ।
  6. धन्धे के ऋण और जिम्मेदारी कर्ता की निजी मिल्कियत से संबंध रखते हैं, जबकि दूसरे सदस्यों के लिये संयुक्त परिवार की
    मिल्कियत में खुद के हित तक ही जिम्मेदार है ।
  7. कर्ता को धन्धे के लिये करार करने का, मिल्कियत खरीदने का और बेचने का, रकम उधार लेने का हक है तथा अमुक संयोगों
    में धन्धा चालू रखने या बंद करने का निर्णय लेने का अधिकार भी उसी का है ।
  8. कर्ता के द्वारा लिये गये निर्णयों के संदर्भ में कोई भी सदस्य विरोध नहीं कर सकता । अगर उन्हें कर्ता का निर्णय पसन्द न हो
    तो वह अलग हिस्से की मांग कर सकता है ।
  9. साझेदारी संस्था के दिवालिया होने के समय परिवार के बालिग सदस्य को दिवालिया घोषित किया जाता है; लेकिन नाबालिग
    (Minor) सदस्यों को दिवालिया घोषित नहीं किया जाता ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 2.
व्यक्तिगत मालिकी के लाभ व मर्यादाएँ समझाइए ।
उत्तर :
व्यक्तिगत व्यापार की प्रथा पुरानी व्यापारी व्यवस्था का स्वरूप है । औद्योगिक क्रांति के बाद उसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होने . पर भी यह आज तक व्यक्तिगत मालिकी की संस्थाएँ प्रथम हैं । इसके लाभ निम्नानुसार हैं :

(1) स्थापना की सरलता : व्यापारी व्यवस्था के दूसरे स्वरूप की अपेक्षा इस प्रकार की धंधादारी संस्था की स्थापना का कार्य खूब सरल है । इसमें किसी भी तरह के कोई दस्तावेज तैयार नहीं करने पड़ते, किसी की संपत्ति प्राप्त नहीं करनी होती । किसी कानूनी कार्रवाई में से गुज़रना नहीं होता । कोई भी व्यक्ति सामान्य फीस भरकर संमति प्राप्त कर कानूनन धन्धा कर सकता है । सिर्फ अमुक प्रकार के व्यापार में ही सरकार की खास संमति प्राप्त करनी होती है ।

(2) त्वरित निर्णय : इसमें सत्ता, जिम्मेदारी, मालिकी और संचालन एक ही व्यक्ति के हाथ में होते हैं । यानी त्वरित निर्णय लिया जा सकता है, कारण कि व्यापारी को किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं रहती । किसी की सलाह के अनुसार नहीं चलना होता । अत: वह सत्ता का केन्द्रीकरण होने से उसका लाभ ले सकता है ।

(3) कम पूँजी-विनियोग : कम पूँजी-विनियोग व्यक्तिगत व्यापार का विशिष्ट लाभ है । व्यापारी कम पूँजी से व्यापार कर सकता है । द्रव्य की अधिक आवश्यकता पड़ने पर पूँजी उधार ला सकता है । उसे वेतन देकर नौकर रखने की भी आवश्यकता नहीं रहती ।

(4) धन्धे की गुप्तता : धंधे की अमुक बातें प्रतिस्पर्धियों से गुप्त रखने के लिये यह लाभदायक है । व्यक्तिगत मालिकी में एक ही व्यक्ति सर्वसत्ताधीश है । इससे व्यापार के निर्णय, सौदा और हिसाब को गुप्त रखा जा सकता है ।

(5) निजी रस और देख-भाल : धंधे को सभी लाभ खुद को ही मिलने से और जिम्मेदारी अमर्यादित होने के कारण व्यापारी धंधे की छोटी-छोटी बातों में निजी रस लेते हैं और हरेक बात की खूब देखभाल करते हैं । निजी रस और देखभाल के कारण उत्पादन-खर्च घटाया जा सकता है । इससे व्यापार में लाभ बढ़ता है और ग्राहकों को सस्ते भाव से वस्तुएँ प्राप्त होती है ।

(6) धंधे में परिवर्तन की सुविधा : व्यक्तिगत व्यापारी अपना निजी धंधा करने के लिये मुक्त है । समयानुसार वह अपने धंधे में परिवर्तन कर सकता है । इसके लिये किसी की सलाह या संमति की आवश्यकता नहीं रहती ।

(7) अधिक ऋण प्राप्त करने की संभावना : व्यक्तिगत व्यापारी की जिम्मेदारी अमर्यादित होने से लेनदार खुद का लेना व्यापारी की निजी संपत्ति में से भी वसूल कर सकता है अर्थात् सरलता से रकम प्राप्त कर सकता है ।

(8) लाभ मालिक का ही : व्यक्तिगत मालिकी में एक ही व्यक्ति मालिक होने से अपनी निजी कार्यक्षमता, कुशलता और ज्ञान के कारण जो लाभ प्राप्त करता है वह उसे अकेले ही भोगता है । अपनी निजी मेहनत का फल उसे ही प्राप्त होता है, दूसरों को नहीं ।

(9) कानूनी नियंत्रणों से मुक्ति : अन्य व्यापारी स्वरूपों की तुलना में व्यक्तिगत व्यापार में किसी भी तरह का सरकारी नियंत्रण तथा व्यापार की स्थापना के समय किसी प्रकार की कानूनी बातों का पालन नहीं करना पड़ता ।

(10) मालिकी में परिवर्तन : व्यक्तिगत मालिकी में मालिक खुद का धंधा कभी भी किसी को भी बेच सकता है और उसमें परिवर्तन कर सकता है । उसे किसी की संमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती ।

(11) संचालन की स्वतंत्रता : व्यक्तिगत व्यापार में धंधे का अंतिम निर्णय व्यापारी खुद लेता है, उसे कार्य करने की पूर्ण स्वतंत्रता है । कार्य करते समय उसे किसी से पूछना नहीं होता । वह किसी भी धंधे को अपना सकता है, खुद धंधे की नीति निश्चित कर सकता है, जरूरत के अनुसार उसमें परिवर्तन भी कर सकता है ।

(12) अन्य लाभ : (अ) अपने निजी व्यापार में तथा व्यापार की व्यवस्था में परिवार के सदस्यों की सेवा और मदद प्राप्त कर सकता है । (ब) स्वयं ही धंधे का लाभ प्राप्त करने से लाभ का धंधे में पुन: विनियोग कर सकता है । (क) व्यक्तिगत व्यापार में प्रारंभ में कम आय पर कम आयकर होता है। (ड) धंधे का विसर्जन आसानी से हो सकता है ।

व्यक्तिगत मालिकी की मर्यादाएँ :
व्यक्तिगत मालिकी धंधेदारी संस्था के दूसरे स्वरूप की तुलना में कुछ खास दृष्टि से बेहतर होने पर भी उसकी कुछ मर्यादाएँ हैं जो निम्नलिखित हैं :
(1) मर्यादित पूँजी : प्रमाण में मर्यादित पूँजी से धंधा किया जा सकता है जो उसकी मर्यादा के स्वरूप में है । व्यक्तिगत व्यापार के पूँजी के साधन मर्यादित हैं । औद्योगिक क्रांति के बाद धंधाकीय इकाई का कद इतना बढ़ गया है कि उसके लिए आवश्यक पूँजी व्यक्तिगत व्यापार पूर्ण नहीं कर सकता । व्यापारी खुद के सभी लाभ व्यापार में रहने दे फिर भी पूँजी की कमी रहती है, उधार रकम भी पूँजी पूर्ण नहीं कर पाता ।

(2) मर्यादित कार्य-शक्ति : कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी कुशल और होशियार हो तो भी मानव-शक्ति की मर्यादा रहती ही है । कोई एक व्यक्ति धंधे के सभी पहलूओं का ज्ञान रखता हो यह संभावना बहुत कम है । व्यापारी अकेला होने से उसकी कार्यशक्ति सीमित हो जाती है । धंधे का मालिक, संचालक और स्थापक के रूप में सारे कार्य उसी को करने होते हैं । धंधे की तमाम बातों पर उसे देखरेख करनी होती है ।

(3) जोखिम : व्यक्तिगत मालिकी के धंधे में जोखिम मालिक को अकेले ही उठाना पड़ता है । भागीदारी या कंपनी की तरह अनेक व्यक्तियों के बीच लाभ-हानि का वितरण नहीं होता ।

(4) भूल भरे निर्णय : व्यक्तिगत व्यापारी को सभी निर्णय खुद ही करने पड़ते हैं । उसे दूसरों के अनुभव या बुद्धि का लाभ नहीं मिल सकता । अर्थात् व्यक्ति चाहे जितना भी कुशल हो इसके बावजूद ऐसे व्यक्तिगत निर्णय कितनी बार भूल से भरे हुए खामीयुक्त होने से व्यापार के लिए भी खतरनाक भी सिद्ध होते हैं ।

(5) बड़े पैमाने पर व्यापार के लाभ का अभाव : व्यक्तिगत व्यापार में पूँजी, कार्य-शक्ति मर्यादित होने से धंधा भी कम पैमाने पर चलता है । बड़े पैमाने पर खरीदी के लाभ, बड़ी रकम की लोन के लाभ, बड़े पैमाने पर विक्रय करने के लाभ, विशेषज्ञ की सेवा का लाभ व्यक्तिगत व्यापारी को प्राप्त नहीं होता या बहुत कम होता है ।

(6) मालिकी में परिवर्तन : व्यक्तिगत मालिकी में भागीदारी की अपेक्षा सरलता से मालिक बदले जा सकते हैं । परन्तु ज्वाइन्ट स्टॉक कंपनी के शेयर की तरह धंधे में परिवर्तन आसानी से नहीं हो सकता ।

(7) विकास के लिये प्रतिकूलता : व्यक्तिगत मालिकी के विकास के लिये आवश्यक पूँजी, बड़े पैमाने पर कार्य-शक्ति, लंबा आयुष्य वगैरह के लाभ प्राप्त नहीं हो सकते तथा अमर्यादित जिम्मेदारी के कारण अन्य व्यक्ति रकम रोकने को तैयार नहीं होते ।

(8) अन्य हानियाँ : (अ) व्यक्तिगत मालिकी में पूँजी और लाभ के मर्यादित प्रमाण के कारण बाजार में उसकी वित्तीय शाख कम रहती है । (ब) कानूनी दृष्टि से व्यक्तिगत मालिकी का महत्त्व नहीं है ।

(9) सीमित आयु : व्यक्तिगत व्यापार की आयु कम होती है, क्योंकि व्यापारी की मृत्यु, पागलपन, दिवालिया हो जाने पर व्यापार बन्द करना पड़ता है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 3.
साझेदारी संस्था (Partership firm) के लाभ समझाइए ।
उत्तर :
साझेदारी संस्था के लाभ (Merits of Partnership) निम्नानुसार हैं :
(1) स्थापना की सरलता : साझेदारी पेढ़ी की स्थापना का कार्य सरल बिनखर्चीली है । इसके लिए कोई कानून की विधि नहीं करनी पड़ती या किसी की मंजूरी नहीं प्राप्त करनी होती । साझेदार खुद की सरलता के लिये जो करार करे वही अस्तित्व में आता है । कानून के अनुसार साझेदारी पेढ़ी का पंजीकरण भी अनिवार्य नहीं है । जितनी सरलता से उसे स्थापित किया जा सकता है उतनी ही सरलता से उसका परिवर्तन या विसर्जन किया जा सकता है ।

(2) अधिक पूँजी की सुविधा : व्यक्तिगत मालिकी की तुलना में साझेदारी में अधिक पूँजी प्राप्त होगी यह स्वाभाविक है । कारण कि एक की अपेक्षा अधिक व्यक्तियों के साधन तो विशाल होंगे ही । भविष्य में धंधे का विकास होने पर जब अधिक पूँजी की आवश्यकता पड़े तब नये साझेदारों को शामिल कर अधिक पूँजी प्राप्त की जा सकती है और साझेदारों से लोन भी ली जा सकती है ।

(3) कार्यक्षमता की उच्च गुणवत्ता : साझेदारी में प्रत्येक साझेदार अपनी कार्यक्षमता बढ़ाने का प्रयत्न करता है । इसका कारण यह है कि संचालन में उसके सक्रिय हिस्से और बदले के साथ सीधा संबंध है । प्रत्येक भागीदार की अमर्यादित जिम्मेदारी के कारण साहसवृत्ति पर अंकुश रहता है, तथा प्रत्येक साझेदार मितव्ययिता पूर्ण संचालन करने के लिये प्रेरित होता है ।

(4) कार्यक्षम व्यवस्थातंत्र : साझेदारी में कार्यक्षम व्यवस्थातंत्र की रचना सरलता से की जा सकती है । जो व्यक्ति जिस कार्य को करने के लिये अधिक लायक हो उसे ही वह कार्य सौंपा जा सकता है । इस तरह, धंधे में श्रम-विभाजन और विशिष्टीकरण का उपयोग कर कार्यक्षमता में वृद्धि की जा सकती है ।

(5) परिपक्व और त्वरित निर्णय : व्यक्तिगत मालिकी में व्यापारी अकेला होने से कई बार भूल से भरे हुए निर्णय ले लेता है, जबकि साझेदारी में सभी साझेदार एकत्रित होकर चर्चा-विचारणा कर निर्णय करने से यह निर्णय समझदारीपूर्वक और परिपक्व होता है, क्योंकि सभी साझेदारों के बुद्धि, कौशल और अनुभव का वह परिणाम होता है ।

(6) धंधे में आसान परिवर्तन : साझेदारी एक स्थितिस्थापक व्यवस्था है । व्यक्तिगत मालिकी की तरह साझेदारी में भी परिवर्तनक्षमता का लाभ देखने को मिलता है । समयानुसार धंधे की नीति में या धंधे में परिवर्तन करने की साझेदारों को छूट है । धंधा लाभदायक न लगे तो साझेदारों की संमति से उसमें परिवर्तन किया जा सकता है ।

(7) अधिक शाख प्राप्त करने की संभावना : साझेदारों की अधिक संख्या और प्रत्येक की जिम्मेदारी अमर्यादित होने से व्यापारी वर्ग पेढ़ी को उधार माल देने या ऋण देने के लिये हमेशा तैयार रहते हैं । लेनदार अपना कर्ज चाहे किसी भी साझेदार से उसकी निजी मिलकत में से वसूल कर सकता है । अर्थात् कम ब्याज पर अधिक रकम पेढ़ी को प्राप्त हो सकती है तथा लंबे समय के लिये व्यापारी उधार माल का विक्रय भी कर सकते हैं ।

(8) रहस्यों की गुप्तता : साझेदारी में धंधे का रहस्य गुप्त रखा जा सकता है, क्योंकि साझेदारों के द्वारा लिये गये निर्णय घोषित नहीं करने होते या पेढ़ी को हिसाब घोषित नहीं करने होते । जब तक साझेदारों के बीच एकता, सहकार और विश्वास का वातावरण होता है तब तक धन्धे के रहस्यों को गुप्त रखा जा सकता है । हालांकि व्यक्तिगत मालिकी में जितनी गुप्तता रहती है उतनी साझेदारी पेढ़ी में नहीं रहती ।

(9) आयकर में राहत : साझेदारी में धन्धे की आय सभी साझेदारों के बीच वितरित हो जाने से प्रमाण में निम्न दर से आयकर भरना पड़ता है । भारत में आयकर कानून में 1992 में हुए सुधार के अनुसार अब यह राहत मिलनी बंद हो गयी है । पेढ़ी की आय इन्कमटैक्स के उद्देश्य के लिये साझेदारों के बीच वितरित नहीं की जाती । परंतु उस पर अलग रूप से महत्तम दर पर आयकर भरना पड़ता है । अर्थात् जब आयकर की दृष्टि से साझेदारी पेढ़ी और जोइन्ट स्टॉक कंपनी में कोई अंतर नहीं रहा ।

(10) जोखिम का बँटवारा : साझेदारी में दो या अधिक साझेदार होने से जोखिम और जिम्मेदारी सबके बीच वितरित हो जाती है । इससे अधिक जोखिमवाले या शाखवाले धन्धे के लिये साझेदारी अधिक अनुकूल है ।

(11) आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण : साझेदारी संस्था में कम पूँजी से दो या दो से अधिक व्यक्ति शामिल होते हैं व छोटे पैमाने पर धन्धा करके लाभ को आपस में बाँटते हैं । जिससे किसी निश्चित व्यक्ति या संस्था के पास आर्थिक सत्ता केन्द्रित नहीं रहती ।

(12) ग्राहकों के साथ ज्वलंत संपर्क : साझेदारी संस्था में ग्राहकों एवं कर्मचारियों की संख्या अन्य बड़ी-बड़ी इकाइयों की अपेक्षा सीमित होती है, परिणामस्वरूप मालिक द्वारा ग्राहकों एवं कर्मचारियों से प्रत्यक्ष सम्पर्क कर उनकी समस्याएँ, उनकी मांग एवं निराकरण आसानी से किया जाता है, जिससे कर्मचारी व ग्राहक संतुष्ट रहते हैं ।

प्रश्न 4.
साझेदारी करार पत्र/साझेदारी संलेख (Partnership Deed) में समाविष्ट बातें बताइए ।
उत्तर :
सामान्य रूप से साझेदारी करारपत्र में निम्नलिखित बातों के बारे में स्पष्टता की जाती है :

  1. साझेदारी पेढ़ी का नाम और पता
  2. सायेदारों का नाम और पता
  3. पेढ़ी का उद्देश्य और धन्धे का प्रकार
  4. साझेदारी का समय (अगर हो तो)
  5. साझेदारों के प्रवेश, निवृत्ति वगैरह बातों के बारे में नियम
  6. प्रत्येक साझेदार के द्वारा लगाई पूँजी तथा पूँजी किस । तरह से लगाई उसका वर्णन
  7. प्रत्येक साझेदार की आहरण की रकम तथा उसकी मर्यादा
  8. साझेदारों के बीच लाभ-हानि के वितरण का प्रमाण
  9. पूँजी और आहरण पर ब्याज की दर
  10. साझेदारों की तरफ से पेढ़ी को लोन तथा उस पर ब्याज की दर
  11. अगर किसी साझेदार को उसकी सेवा के बदले में कमीशन या वेतन देना हो तो उसका विवरण
  12. ख्याति के मूल्यांकन की रीति
  13. पेढ़ी के हिसाब रखने की तथा ऑडिट की व्यवस्था की बातें
  14. व्यापार के संचालन के बारे में अर्थात् साझेदारों के बीच कार्य-वितरण के संबंध की बातें
  15. बैंक में खाता चलाने की पेढी की सत्ता की बातें
  16. साझेदारों के अधिकार और फर्ज
  17. पेढ़ी की तरफ से महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों पर सही करने की सत्ता
  18. साझेदारों के बीच झगड़ा होने पर उसके निराकरण की व्यवस्था
  19. पेढ़ी के विसर्जन की विधि और विसर्जन के बाद हिसाब पूर्ण करने की बातें
  20. कर्तव्य-भंग अथवा गबन के संजोगों में साझेदार को पेढ़ी से हटाने की बातें ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 5.
साझेदारी संस्था की मर्यादाएँ/सीमाएँ (Limitation) समझाइए ।
उत्तर :
साझेदारी संस्था के दोष अथवा मर्यादाएँ (Limitation of Partnership) निम्नलिखित हैं :

(1) सीमित आयुष्य : साझेदारी संस्था का आयुष्य सीमित होता है क्योंकि साझेदारों की निवृत्ति, पागलपन, मृत्यु, दिवालियापन इत्यादि स्थिति में साझेदारी संस्था का अस्तित्व लम्बे समय तक नहीं टिक पाता है ।

(2) असीमित जिम्मेदारी (दायित्व) : इसमें प्रत्येक साझेदार का दायित्व असीमित होता है, जिससे संस्था को अच्छी शान मिलती है, परन्तु साझेदारों के लिए जोखिमभरा होता है । संस्था में अधिक हानि होने पर ऋण की अदायगी करने हेतु साझेदारों को अपनी व्यक्तिगत (निजी) सम्पत्तियों का त्याग करना पड़ता है, जिससे उनका परिवार बेघर भी हो सकता है । असीमित दायित्व के कारण भी वह जोखिम उठाना पसन्द नहीं करता ।

(3) हिरसे के हस्तान्तरण में कठिनाई : साझेदारी संस्था में साझेदार अपना हिस्सा अन्य व्यक्ति को सभी साझेदारों की सहमति के बिना नहीं दे सकता । अर्थात् सहमति लेना अनिवार्य होता है अन्यथा हिस्से का परिवर्तन अन्य व्यक्ति को नहीं कर सकता ।

(4) विसंवादिता की सम्भावना : साझेदारी संस्था में जब तक सभी साझेदारों के मध्य मधुर सम्बन्ध होते हैं तभी तक संस्था का संचालन व्यवस्थित होता है । यदि किसी एक साझेदार के साथ वाद-विवाद (Disput) उत्पन्न हो जाता है तो, साझेदारी संस्था के अस्तित्व के लिए खतरा हो जाता है । जिसका विपरीत असर संस्था पर पड़ता है । इन समस्याओं को दूर करने के लिए साझेदारों की संख्या सीमित की जा सकती है ।

(5) स्वतंत्र व्यक्तित्व का अभाव : कम्पनी की तरह साझेदारी संस्था का अलग स्वतंत्र व्यक्तित्व नहीं होता है । साझेदारी संस्था अपने साझेदारों से अपने नाम से अलग सम्पत्ति नहीं रख सकती । दूसरी संस्था के साथ साझेदारी नहीं कर सकती । इसके अलावा किसी भी कम्पनी में सदस्य भी नहीं बन सकती ।

(6) विश्वास की कमी : साझेदारी संस्था का हिसाब निजी रहता है एवं इसके संचालन पर सरकारी नियंत्रण कम होता है । जिससे बाहरी व्यक्तियों अथवा संस्थाओं को संस्था-सम्बन्धी आवश्यक जानकारी नहीं रहती है । जिससे वे संस्था पर कम विश्वास करते हैं एवं संस्था के साथ व्यवहार सोच-समझकर करते हैं ।

(7) सीमित पूँजी : साझेदारी संस्था में बड़ी इकाईयों अथवा कम्पनियों की अपेक्षाकृत कम पूँजी देखने को मिलती है । कम पूँजी होने से धन्धे का विकास नहीं हो पाता तथा संशोधन जैसे कार्य भी नहीं किये जा सकते है ।

प्रश्न 6.
साझेदारी के प्रकार बताकर प्रत्येक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए । (Kinds of Partners)
उत्तर :
सामान्य रूप से प्रत्येक साझेदार धन्धे में पूँजी लगाता है, संचालन में हिस्सा लेता है तथा लाभ में भी हिस्सा प्राप्त करता है । कितनी बार साझेदार धन्धे में उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं तो कितनी ही बार निष्क्रिय रहकर सिर्फ धन्धे के लाभ में ही भाग लेने में रस रखते हैं । इस तरह, साझेदारों के हित की कक्षा अलग-अलग होती है । साझेदारों के कार्य, गुण और अधिकार के आधार पर उसके निम्नलिखित प्रकार किये गये हैं :

(1) सक्रिय साझेदार (Active Partner) : जो साझेदार पेढ़ी में पूँजी लगाता है, लाभ-हानि को भोगता है और पेढ़ी के संचालन में सक्रिय हिस्सा लेता है उसे सक्रिय साझेदार कहा जाता है । ऐसे साझेदारों की जिम्मेदारी अमर्यादित होती है । इससे पेढ़ी के नुकसान या ऋण के लिये उसे ही जिम्मेदार माना जाता है । आवश्यकता पड़ने पर उसे अपनी निजी मिल्कतों को बेचकर भी ऋण चुकता करना पड़ता है ।

(2) निष्क्रिय साझेदार (Sleeping or Inactive Partner) : जो साझेदार दूसरे साझेदारों की तरह पेढ़ी में पूँजी लगाते हैं, लाभहानि को भी भोगते हैं, परंतु पेढ़ी के संचालन में सक्रिय भाग नहीं लेते, उन्हें निष्क्रिय या सुषुप्त साझेदार कहते हैं । ऐसे साझेदारों का दायित्व असीमित होता है ।

(3) नाममात्र का साझेदार (Nominal Partner) : जो साझेदार पेढ़ी में पूँजी नहीं लगाते, लाभ-हानि नहीं भोगते तथा पेढ़ी के संचालन में भी भाग नहीं लेते, परंतु पेढ़ी को शान प्राप्त हो इस तरह सिर्फ खुद का नाम ही पेढ़ी को देते हैं, उन्हें नाममात्र का साझेदार कहा जाता है । ऐसे साझेदारों का दायित्व भी असीमित होता है । नयी पेढ़ी के लिये ऐसा साझेदार उपयोगी है । वह पेढ़ी के संचालन के साथ सीधे नहीं परंतु अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा रहता है । वह पेढ़ी के नुकसान के लिये अन्य साझेदारों की तरह ही जिम्मेदार गिना जाता है । पेढ़ी के संचालन पर उसका परोक्ष काबू होता है ।

(4) मात्र लाभ का साझेदार : जो व्यक्ति पेढ़ी के धन्धे में पूँजी लगाये या न लगाये परंतु सिर्फ पेढ़ी के लाभ में ही भाग ले, हानि में नहीं, उसे मात्र लाभ का साझेदार कहते हैं । पेढ़ी के मैनेजर या खास कुशलतावाले कर्मचारी को इस तरह से साझेदार बनाया जा सकता है ।

(5) मानद साझेदार : अगर कोई व्यक्ति अपनी वाणी, आचरण या लिखावट से खुद पेढ़ी का साझेदार है ऐसा दिखावा करे और उसके आधार पर कोई त्राहित व्यक्ति पेढ़ी को ऋण प्रदान करे तो वह दिखावा करनेवाला व्यक्ति इस ऋण के लिये मानद साझेदार मान कर जिम्मेदार कहलायेगा । वह पेढ़ी में करार नहीं करता, संचालन में भाग नहीं लेता या लाभ में हिस्सा भी प्राप्त नहीं करता ।

(6) अवयस्क साझेदार : नाबालिग व्यक्ति करार करने में समर्थ नहीं होता । अर्थात् वह साझेदार नहीं बन सकता, परंतु उसे साझेदारी के लाभ के लिये पेढ़ी में शामिल किया जा सकता है । मृत्यु प्राप्त साझेदार के अवयस्क बालक को इस तरह से साझेदारी में शामिल किया जा सकता है । इस तरह उसे पेढ़ी के लाभ में हिस्सा देने के लिये पेढ़ी में शामिल किया जाता है । ऐसे व्यक्ति की निजी मिल्कियत पेढी के ऋण के लिये जिम्मेदार नहीं रहती । ऐसा व्यक्ति अवयस्क साझेदार नहीं कहलाता । हालांकि वयस्क होने पर छ: मास के भीतर अगर उसकी इच्छा हो तो साझेदार बनना पसंद कर सकता है । अगर उसे साझेदार के रूप में न रहना हो तो वयस्क होने पर छ: मास के अंदर
उसे सार्वजनिक नोटिस देनी चाहिए ।

6. अन्तर समझाइए ।

प्रश्न 1.
साझेदारी संस्था और संयुक्त हिन्दू परिवार संस्था :
उत्तर :
GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1 3
GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1 4

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 2.
साझेदारी के विविध प्रकारों को संक्षेप में समझाइए ।
उत्तर :
साझेदारी पेढ़ी करार से अस्तित्व में आती है । करार करनेवाले सभी व्यक्ति साझेदार गिने जाते हैं । साझेदारी पेढ़ी के अलगअलग आधार पर विविध प्रकार माने गये हैं । इसका ख्याल निम्नलिखित चार्ट से आयेगा ।
GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1 5

(अ) अवधि के आधार पर साझेदारी पेढ़ी : इस पद्धति के अनुसार साझेदारी पेढ़ी के तीन प्रकार किये जा सकते हैं :
(1) ऐच्छिक साझेदारी : इस प्रकार के साझेदारी की रचना साझेदारों की इच्छा के अनुसार की जाती है और उसका अंत साझेदारों की इच्छा के अनुसार किया जा सकता है । ऐसी साझेदारी की कोई निश्चित समय-मर्यादा नहीं होती । साझेदारी पेढ़ी के आयुष्य का आधार साझेदारों की इच्छा पर निर्भर है । जबतक साझेदारों के बीच सहकार और एक मत की भावना रहे तब तक साझेदारी का अस्तित्व टिका रह सकता है । ऐच्छिक साझेदारी का विसर्जन करना हो तब 14 दिन पहले नोटिस देकर उसका विसर्जन किया जा सकता है ।

(2) निश्चित कार्यपर्यंत की साझेदारी : किसी निश्चित कार्य के लिए जब साझेदारी की रचना की जाती है, तो उसे निश्चित कार्यपर्यंत की साझेदारी कहा जाता है । वह निश्चित कार्य पूर्ण होने पर साझेदारी का अंत अपने आप हो जाता है । जैसे, रास्ते का निर्माण करने तथा पुल बनाने की साझेदारी । हालांकि अगर सभी साझेदार संमत हों तब पुरानी साझेदारी पुरानी शर्तों पर या नयी शर्तों पर चालू रखी जा सकती है ।

(3) निश्चित समय की साझेदारी : ऐसी साझेदारी निश्चित समय के लिए ही प्रारंभ की जाती है । करार में समय-मर्यादा पहले से ही बताई गई होती है । ऐसी साझेदारी को निश्चित समय की साझेदारी कहा जाता है । इसका समय पूर्ण होने पर अपने आप साझेदारी का अंत हो जाता है । समय-मर्यादा पूर्ण होने पर सभी साझेदारों की संमति से ही नये करार से साझेदारी के समय में वृद्धि की जा सकती है ।

(ब) दायित्व के आधार पर साझेदारी पेढी : दायित्व के संदर्भ में दायित्य के दो भाग किये जा सकते हैं :

(1) असीमित दायित्ववाली साझेदारी : इस प्रकार की साझेदारी में प्रत्येक साझेदार की जिम्मेदारी असीमित होती है । अगर पेढी का ऋण उसकी मिल्कियत की अपेक्षा बढ़ जाये तो प्रत्येक साझेदार अपनी निजी मिल्कियत बेचकर भी पेढ़ी का ऋण चुकता करता है । भारत में सभी साझेदारी पेढ़ियों का दायित्व असीमित है ।

(2) सीमित दायित्ववाली साझेदारी : साझेदारी का यह एक विशिष्ट स्वरूप या प्रकार हैं । सीमित साझेदारी साझेदारी का एक ऐसा प्रकार है, जिसमें कम-से-कम एक साझेदार की जिम्मेदारी अमर्यादित होती है और बाकी के साझेदारों की जिम्मेदारी उसके द्वारा पेढ़ी में लगाई गई रकम तक मर्यादित होती है । सीमित साझेदारी प्रथा का प्रारंभ इटली में हुआ था । यु. एस. ए. तथा इंग्लैंड में कानून ने इस प्रथा को मान्यता दी है । परंतु भारत में कानून सीमित साझेदारी को छूट नहीं देता ।

(क) धन्धे के आधार पर साझेदारी पेढ़ी : कंपनी कानून में धन्धे के आधार पर साझेदारी पेढ़ी के दो प्रकार हैं :
(1) बैंकिंग संस्था : जिसमें 10 से अधिक साझेदार न हो सकें ऐसे बैंकिंग के धन्धे के लिये की गई साझेदारी को बैंकिंग साझेदारी कहते हैं । ऐसी साझेदारी पेढ़ी बैंक की तरह सार्वजनिक जनता से उनकी बचतों को स्वीकार करती है और जरूरत के अनुसार व्यक्ति या संस्था को ऋण देती है ।

(2) सामान्य संस्था : बैंकिंग के सिवाय अन्य धन्धे के लिये साझेदारी सामान्य साझेदारी के रूप में जानी जाती है । ऐसी पेढी में अधिक से अधिक 20 साझेदार हो सकते हैं ।
(ड) पंजीयन के आधार पर साझेदारी पेढ़ी : पंजीयन के आधार पर साझेदारी पेढ़ी के दो प्रकार हैं :
(1) पंजीकृत साझेदारी : साझेदारी पेढ़ी का पंजीकरण साझेदारी कानून के तहत पेढ़ी के रजिस्ट्रार से कराया जा सकता है । हालांकि साझेदारी का पंजीकरण करवाना अनिवार्य नहीं है, परंतु वह हितावह है । पंजीकृत पेढ़ी खुद के ऋण को वसूल करने के लिये अदालत का सहारा ले सकती है ।

(2) अपंजीकृत साझेदारी : अगर साझेदारी पेढ़ी का पंजीकरण साझेदारी पेढ़ी के रजिस्ट्रार के समक्ष न किया गया हो तो उसे अपंजीकृत साझेदारी कहते हैं । भारत में साझेदारी पेढ़ी का पंजीकरण अनिवार्य नहीं, परंतु हितावह जरूर है । पेढ़ी का पंजीकरण न कराने से पेढ़ी . को खुद के ऋण वसूल करने में कठिनाई होती है ।

7. निम्नलिखित विधानों को समझाइए ।

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत मालिकी स्वरोजगार की संस्था है ।
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी की स्थापना-विधि सरल और सुगम होने के कारण पूँजी, व्यवस्था-शक्ति और जोखिम कम होने के कारण समाज का कोई भी व्यक्ति कम पूँजी से धंधा प्राप्त कर सकता है और अमुक अंश में समाज का भार कम करता है । इस तरह व्यक्तिगत मालिकी स्वरोजगार की संस्था है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 2.
व्यक्तिगत मालिकी में व्यापारी की ख्याति अधिक होती है ।
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी में धंधे के मालिक की अमर्यादित जिम्मेदारी के कारण लोग उसे ऋण देने के लिए तैयार रहते हैं । उन्हें विश्वास रहता है कि मालिक आवश्यकता पड़ने पर खुद की निजी संपत्ति बेचकर भी ऋण को चुका देगा । इससे लोग उसकी शान पर रकम उधार देते हैं । इससे व्यक्तिगत मालिक की शाख अधिक होती है ।

प्रश्न 3.
व्यक्तिगत मालिकी के दायित्व अमर्यादित होते हैं ।
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी में व्यापारी की जिम्मेदारी अमर्यादित होती है । अमर्यादित जिम्मेदारी अर्थात अगर व्यापारी का ऋण उसकी संपत्ति की अपेक्षा बढ़ जाये तो वह खुद की निजी संपत्ति को बेचकर ऋण की अदायगी करता है ।

प्रश्न 4.
व्यक्तिगत मालिकी में संचालक का ग्राहकों तथा कर्मचारियों के साथ जीवंत संपर्क रखा जा सकता है ।
उत्तर :
व्यापार का क्षेत्र मर्यादित होने के कारण तथा ग्राहकों की संख्या कम होने के कारण एकाकी व्यापारी ग्राहकों के सीधे संपर्क में आ सकता है । इससे वह ग्राहकों की आवश्यकता, माँग, रुचि, फैशन वगैरह समझ सकता है और उसके अनुसार व्यक्तिगत ध्यान तथा सेवा दे सकता है । इसी तरह, कामगारों और कर्मचारियों के साथ निजी संपर्क रख सकता है । उसकी मुश्किलें तथा आवश्यकता को आसानी से समझ सकता है ।

प्रश्न 5.
व्यक्तिगत मालिकी की आयु का प्रमाण कम है ।
उत्तर :
व्यक्तिगत मालिकी के धंधे की आयु मर्यादित होती है । व्यापारी दिवालिया, पागल, अशक्तिमान बनने पर या उसकी मृत्यु होने पर धंधे का अंत होता है, कारण कि कई बार उसके वारिस को धंधा चलाने की इच्छा नहीं होती या कुशलता नहीं होती । इसलिए व्यक्तिगत मालिकी की आयु का प्रमाण कम है ।

प्रश्न 6.
व्यक्तिगत मालिक धंधे में निजी रस और देख-भाल रखते हैं ।
उत्तर :
घंधे का सभी लाभ खुद को ही प्राप्त होने से और जिम्मेदारी अमर्यादित होने के कारण एकाकी व्यापारी धंधे की छोटी-सीछोटी बातों में निजी रस लेते हैं और प्रत्येक बात को खुद ही देखभाल करते हैं । निजी रस और देखभाल के कारण उत्पादन-खर्च या व्यवस्थाकीय खर्च घटाया जा सकता है जो दोनों पक्षों के लिये लाभदायक है । व्यापारी का लाभ बढ़ता है और ग्राहकों को सस्ते भाव से माल मिलता है । निजी रस और देखभाल के कारण व्यापार में कार्य-क्षमता और मितव्ययिता की उच्च गुणवत्ता बनी रह सकती है ।

प्रश्न 7.
व्यक्तिगत मालिकी सामाजिक दृष्टि से लाभदायक है ।
उत्तर :
सामाजिक दृष्टि से देखने पर व्यक्तिगत मालिकी आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण करता है । कम पूँजी से कोई भी व्यक्ति छोटे पैमाने पर धंधा प्रारंभ करके आधारभूत हो सकता है । व्यक्तिगत मालिकी का धंधे के अनुभव प्राप्त कर व्यक्ति बड़े पैमाने पर औद्योगिक या व्यापारी प्रवृत्ति प्रारंभ कर सकता है । व्यक्तिगत मालिकी देश के दूर-दूर विस्तारों में ग्राहकों को योग्य कीमत पर चीज-वस्तु और सेवा पूर्ण करता है । इस तरह लोगों का जीवन-स्तर सरल बनाता है ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

प्रश्न 8.
व्यक्तिगत मालिकी का स्वरूप बड़े पैमाने पर धंधे के लिये अनुकूल नहीं है ।
उत्तर :
पूँजी और कार्यशक्ति की मर्यादा के कारण, अमर्यादित जिम्मेदारी के कारण तथा अल्प और अस्थिर आयु-मर्यादा के कारण धंधा अच्छी तरह चलने के बावजूद विकास और विस्तार की अनुकूलता नहीं रहती । इससे इस प्रकार के धंधे का कद छोटा और मध्यम . रहता है । बड़े पैमाने पर धंधे के लिये इस प्रकार की संस्था का स्वरूप अनुकूल नहीं है ।

प्रश्न 9.
व्यक्तिगत मालिकी में कार्य-शक्ति मर्यादित होती है ।
उत्तर :
कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी कुशल और होशियार हो उसके बावजूद मानव-शक्ति की सहज मर्यादा तो रहती है । एक व्यक्ति धंधे के सभी पहलूओं का ज्ञान रख्ने इसकी शक्यता बहुत ही कम है । एकाकी व्यापारी अकेला होने से उसकी कार्य-शक्ति सीमित बन जाती है । धंधे का मालिक, संचालक और स्थापक के रूप में सभी कार्य खुद ही करता है । धंधे की तमाम बातों पर खुद ही देखरेख रखता है । धंधे की सभी बातों या पहलूओं को सँभालने के लिए ज़रुरी समय और शक्ति एक ही व्यक्ति में कभी-कभी ही देखने को मिलते हैं ।

प्रश्न 10.
साझेदारी संस्था के धन्धे में परिवर्तनशीलता अधिक है ।
उत्तर :
साझेदारी एक स्थितिस्थापक व्यवस्था है । व्यक्तिगत मालिकी की तरह साझेदारी में भी परिवर्तनशीलता का लाभ देखने को मिलता है । समयानुसार धंधे की नीति में या धन्धे में परिवर्तन करने की साझेदारी में छूट है । धन्धा लाभदायक न लगे तो साझेदारों की संमति से उसमें परिवर्तन किया जा सकता है । इसलिए साझेदारी संस्था के धन्धे में परिवर्तनशीलता अधिक है ।

प्रश्न 11.
साझेदारी का करारपत्र लिखित होना अनिवार्य है ।
उत्तर :
साझेदारी करार अगर मौखिक हो तो चल सकता है, इसके बावजूद यदि वह लिखित हो तो अधिक हितावह है । करार अगर लिखित हो तो महत्त्वपूर्ण बातों के बारे में पहले से स्पष्टता हो सकती है, मतभेद कम रहता है और मतभेद के समय लिखित प्रमाण मौजूद रहता है । अगर साझेदारों के बीच झगड़ा हो तो लिखित करार समाधान के रूप में उपयोगी होता है । मौखिक करार किया गया हो तो उसे भूला जा सकता है, या उसका गलत अर्थ किया जा सकता है । इसलिए करारपत्र लिखित होना अनिवार्य है ।

प्रश्न 12.
साझेदारी संस्था का पंजीकृत करवाना अनिवार्य नहीं, परंतु इच्छनीय है ।
उत्तर :
साझेदारी संस्था का पंजीकृत करवाना अनिवार्य नहीं, परंतु इच्छनीय है । इसके निम्न कारण हैं :

  1. साझेदारी पेढ़ी त्राहित पक्ष पर दावा कर सकती है और न्याय प्राप्त कर सकती है ।
  2. पेढ़ी का एक साझेदार दूसरे साझेदारों या पेढ़ी के सामने दावा कर सकता है ।
  3. नये शामिल होनेवाले साझेदार खुद का अधिकार और हिस्सा प्राप्त कर सकते हैं ।
  4. निवृत्त होनेवाला साझेदार सामान्य जनता को सार्वजनिक नोटिस देकर खुद की निवृत्ति के बाद की पेढ़ी की जिम्मेदारी से मुक्त हो सकते हैं ।
  5. बाहरी दुनिया को पेढ़ी के अस्तित्व की जानकारी मिलती है ।
    इसलिए साझेदारी संस्था का पंजीकृत करवाना अनिवार्य नहीं, परंतु इच्छनीय है ।

प्रश्न 13.
नाममात्र का साझेदार संस्था के संचालन पर नियंत्रण रखता है ।
उत्तर :
नाममात्र के साझेदार की जिम्मेदारी अमर्यादित होती है । नई पेढ़ी के लिये ऐसा साझेदार उपयोगी है । वह पेढ़ी के संचालन के साथ सीधे नहीं, परंतु परोक्ष रूप से जुड़ा रहता है । वह पेढ़ी के नुकसान और ऋण के लिये साझेदारों की तरह जिम्मेदारी निभाता है । पेढ़ी के संचालन पर परोक्ष रूप से उसका काबू होता है ।

प्रश्न 14.
साझेदारी संस्था रोजगारी के अवसर प्रदान करती है ।
उत्तर :
समाज के बेकारी का प्रश्न हल करने में व्यक्तिगत मालिकी की तरह साझेदारी का भी अपना महत्त्व है । कम बचत रखनेवाले दो-चार व्यक्ति एकत्रित होकर धन्धा प्रारंभ करें तो वे अपनी रोजगारी का प्रश्न हल कर सकते हैं और आपस में अन्य लोगों को भी रोजगारी प्रदान कर सकते हैं । इस तरह बेकारी की समस्या हल हो सकती है ।

प्रश्न 15.
प्रत्येक साझेदार को लाभ मिलना ही चाहिए ।
उत्तर :
साझेदारी पेढ़ी धन्धाकीय प्रवृत्ति करती है । साझेदारी का उद्देश्य कानूनी रूप से चलनेवाले धन्धे का लाभ बाँटना है । लाभ का वितरण करार में निश्चित किये गये अनुसार किया जाता है । अगर करार में निश्चित न किया गया हो तो लाभ सभी साझेदार के बीच समान हिस्से में बाँट लिया जाता है । प्रत्येक साझेदार को लाभ मिलना चाहिए ।

GSEB Solutions Class 11 Organization of Commerce and Management Chapter 5 धन्धाकीय व्यवस्था के स्वरूप - 1

8. निम्न विधान सही हैं या गलत कारण सहित बताइए ।

प्रश्न 1.
साझेदारी की स्थापना के लिये साझेदारों के बीच करार लिखित होना चाहिए ।
उत्तर :
यह विधान गलत है । करार लिखित, मौखिक या गर्भित कुछ भी हो सकता है ।

प्रश्न 2.
साझेदारों को उसके सदस्यों की अपेक्षा अलग व्यक्तित्व दिया जाता है ।
उत्तर :
यह विधान गलत है । साझेदारों को उसके सदस्यों की अपेक्षा अलग व्यक्तित्व नहीं दिया जाता ।

प्रश्न 3.
प्रत्येक साझेदार को पेढ़ी के संचालन में भाग लेना ही पड़ता है ।
उत्तर :
यह विधान गलत है । धन्धे का संचालन कोई एक साझेदार अथवा सभी साझेदार मिलकर कर सकते हैं ।

प्रश्न 4.
साझेदारी के लाभ में हिस्सा लेनेवाला प्रत्येक व्यक्ति साझेदार है, ऐसा नहीं कहा जा सकता ।
उत्तर :
यह विधान सही है । अवयस्क साझेदार संस्था के लाभ में हिस्सा तो लेते हैं, परंतु उन्हें साझेदार नहीं गिना जाता ।

Leave a Comment

Your email address will not be published.